**ग़ज़ल**
आसमां के सितारे ज़मीं पर,
महर करदे जरा आदमीं पर।
आंधियां तेज हैं रौशनी ग़ुम,
नूर दिखता नहीं है कहीं पर।
गर्दिशों में हैं दिन-रात मेरे,
है भरोसा नहीं ज़िन्दगी पर।
टूट करके बिखर जायेंगे हम,
आँख रोती रहेगी नमीं पर।
सच नहीं बोलता आइना भी,
आज हंसने लगा है हमीं पर।
फासले भी सिमट जाएगे कल,
पुल बनाओगे जब तुम नदी पर।
मैं जीने के क़ाबिल नहीं हूँ,
कोई अपना नहीं है ज़मी पर।
हाशिये पर हमारा मुक़द्दर,
हक़ बचा ही नहीं है ख़ुशी पर।
कीजिएगा चिरागों को रोशन,
जान दे दूंगा वर्ना यहीं पर।
अवधेश सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.26032016/CCRAI/OLP/Doct.