उठाओ अब जागरण की मशालों को जलाओ,
हमारे राष्ट्र-गौरव को विभाजन से बचाओ।
उजालों में अंधेरों की सही पहचान करलो,
जलाओ रोज दीवाली सभी मिल के मनाओ।
भरो संकल्प की पिचकारियां रंग दो हवाओं को,
गेरुआ, भगवा, बसंती रंग के चोले पिनाहो।
मदरसे,पाठशालाएं,शिवालय एक सुर में हों,
माँ भारती की जय! वंदे मातरम बोलें बुलाओ।
अगर परहेज है तो मत खोलिए अपनी जुबान,
मुखालफत सह नहीं सकते वतन के नौजवाओं।
खुली आज़ाद है आब-ओ-हवा अहल-ए-वतन की,
किया आबाद देकर जां ,फिजां, गुलशन ,लताओं।
मेरे दिल से करूँ स्वागत तुम्हारा सरफरोशों,
हमारी आबरू हो ,शान हो,दिल की दुआओं।
अवधेशप्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.07042016/CCRAI/OLP/Doct