ये ज़िन्दगी यार मेहरबानी है,
आग समझा था पानी-पानी है।
हालात ने बेवक़्त सजा दी हमें,
मौसम-ए-गुल पे नई जवानी है।
आयेगा कत्ल का इल्जाम भी नहीं,
बेवफ़ा कह दो जान मर जानी है।
ताकीद नहीं करता गुनाहों की,
सच नहीं बोलेगा बेजुबानी है।
पाँव का काँटा निकाला तो नहीं,
डाल दी मुश्किलों में जिंदगानी है।
यूँ मेरे प्यार का तमाशा न बना,
तुम्हें एक दिन तो कीमत चुकानी है।
और भी गहरे हुए हैं फासले,
दुःख भरी दास्ताँ काफी पुरानी है।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.06042016/CCRAI/OLP/Docut