प्यार को क़ाफ़िया क्यों बनाया नहीं,
गीत लिख कर सही पर सुनाया नहीं।
धीरे-धीरे ज़हर पी गए आप भी
देखना है असर कुछ हुआ या नहीं।
हाशिये पर रखा है मुझे शुक्रिया,
नाम अब तक हमारा मिटाया नहीं।
टूट कर के बिखरना नहीं चाहता,
इसलिये मैं कभी लडखडाया नहीं।
हर क़दम पर मिला बेवफ़ा आदमीं,
प्यार करता गया कसमसाया नहीं।
आँधियों ने बुझाये दिये रात भर,
पर चिरागों का लौ थरथराया नहीं।
जैसी चाही तराशी गई ज़िन्दगी,
आज तक लौटकर आजमाया नहीं।
मांग ली आपने भी हमारी अना,
यार पहले कभी हक़ जताया नहीं।
जिस्म के पुर्जे-पुर्जे फ़ना हो गये पर,
चाल शै-मात की जान पाया नहीं।