***ग़ज़ल***
बुझ गए हैं तो फिर से जला दो,
रौशनी को नया हौंसला दो।
आँधियों की खता कुछ नहीं है,
है घुटन ताज़ा-ताज़ा हवा दो।
दरमियां आ गईं हैं दीवारें,
सीढ़ियों का मुकद्दर बना दो।
मंज़िलें खुद-ब-खुद ढूंढ लेंगीं,
अपने क़दमों को तुम रास्ता दो।
मुश्किलें आती - जाती रहेंगी,
अपना दिल खोलकर मुस्कुरा दो।
क्या खबर हो-न-हो कल तुम्हारा,
आज खुशियों की महफ़िल सजा दो।
दिल दुखाना नहीं है किसी का,
सबको 'अनुराग' जी भर दुआ दो।
अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'Dt.28032016/CCRAI/OLP/Docut.