इक मरमरी चट्टान पर उभरा हूँ मैं,
तुम में से एक शख्स का चेहरा हूँ मैं,
जागी है प्यास तो आकर बुझाइये,
हाँ एक मीठी झील सा गहरा हूँ मैं।
अब तक ठोकरों ही अपना नसीब थीं,
मुझको तराशा आपने तेरा हूँ मैं।
कोशिश नहीं तो क्या हमको बताइए,
शतरंज की बिसात का मोहरा हूँ मैं।
जलता हुआ दरिया मिला जब रेत पर,
मुद्दत से एक आग हूँ सहरा हूँ मैं।
आसां नहीं है आज भुलाना हुज़ूर,
तेरे लहू का रंग हूँ क़तरा हूँ मैं।
मासूम ज़िन्दगी की तिजारत न कीजिए,
चौखट पे मुंडेरों पे पहरा हूँ मैं।
रिश्तों नए दौर में स्वागत है आपका,
खुशबू के रंग-रूप सा बिखरा हूँ मैं।
'अनुराग' मुझे अपना एहसास दीजिए,
अब भी तेरे गगन का तारा हूँ मैं।