***ग़ज़ल***
ज़िन्दगी है तो अँधेरे उजाले मिलेंगे,
है सफर पांव में कुछ तो छाले मिलेंगे।
कोशिशों की ज़मीने कुरेदोगे तुम जब ,
पेट भरने के लिए फिर निबाले मिलेंगे।
तुम मिले और क्या चाहिये ज़िंदगी से,
मेरे सुख -दुःख तुम्हारे हवाले मिलेंगे।
आज अपना ही करम अपना धरम है फिर,
साथ मस्जिद न गिरजा,ना शिवाले मिलेंगे।
मुश्किलें,राहतें मंज़िल से भटकाएंगी हमको,
हर मोड़ पर ठोकर,नदी,नाले,मिलेंगे ।
मत बढ़ाओ फासले ये दूरिया यारों,
अजनबीं बन कर हमसे हमारे मिलेंगे।
वक़्त कब किसका बदल जाए नहीं कोई पता,
पुल बनेगा तो नदी के किनारें मिलेंगे।