काली अँधेरी रात की गहराइयों को नाप लो,
गर हो सके तो तुम मेरी तन्हाइयों को रोक लो।
जागकर थकहार कर सोने की ज़िद करने लगा,
तुम मेरी आँखों की हो परछाइयों को जांच लो।
अपनी जां का वास्ता देकर मुझे रोका न कर तू,
ये अपने-अपने दर्दे-गम कुर्बानियों को बाँट लो।
अब तू अकेला ही मेरा है इस शहर में हमसफ़र,
साथ चल दो-चार पल खामोशियों को थाम लो।
छोटे-छोटे ख्वाब बनती ज़िन्दगी फिर खिल उठी है,
खुल के जी एहसास फिर बेचैनीयों को मोड़ दो।
आ मेरे नजदीक फिर बाहों में तुम भरलो मुझे,
ये हवाओं आज फिर तुम पुरवाइयों को ओढ़ लो।
फिर खिलेगी धूप दिन महकेगीं रातें खुशगवार,
'अनुराग'सब कुछ समय की अंगड़ाइयों पे छोड़ दो।