मिले थे आप ख्यालों की तरह,
जुदा हुये तो सवालों की तरह।
बहुत रोका किनारे टूट गये,
दर्द बह निकला पनालों की तरह।
वक़्त से फासले मिटे ही नहीं,
हम जले खूब मशालों की तरह।
आदमीं सोच से ज्यादा निकला,
सब्र था ज़हर के प्यालों की तरह।
आग हर ओर लगाई उसी ने,
जिसको समझा उजालों की तरह।
ये हरी शाख है आओ यारों,
मिलके काटें हलालों की तरह।
आप बैचैन हैं मेरी खातिर,
पुर्जा-पुर्जा हूँ निबालों की तरह।
वो वफ़ा रिश्ता निभाने के लिए,
लोग आएंगे दलालों की तरह।
तोड़ो मत थोड़ा मुख़्तसर करलो,
आजमाएंगे मिशालों की तरह।