इसमें कोई दोराय नहीं है कि जब राष्ट्रहित में न्यायिक युद्ध में सम्पूर्ण सफलता प्राप्ति हेतु मैं समाचारपत्र विक्रेता के रूप में गलियों से गुजरता था। तो उन विपरीत निर्णायक परिस्थितियों में भी गली के कुत्ते निस्संदेह मुझे भौंकते थे और जो भौंकने में असमर्थ थे वे अद्भुत दांत दिखाते हुए गुराते थे। जिसके प्रत्यक्षदर्शियों में से एक जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू के वर्तमान सह सम्पादक श्री यशपाल निर्मल जी भी हैं। जबकि दोराय इसमें भी नहीं है कि वर्तमान अनुकूल परिस्थितियां में मेरे उत्कृष्ट प्रदर्शन के प्रभावशाली पहनावे में आए अद्वितीय बदलाव से भी अत्याधिक कुत्ते प्रभावित होकर मुझे भौंक रहे हैं और मेरी टाई को देख देखकर गुराते भी हैं। इसके अलावा कुछ कुत्ते 180 डिग्री घूमकर यह सुनिश्चित करते हैं कि मैं वही समाचारपत्र विक्रेता हूॅं या कोई और हूॅं। जिसका दुष्प्रभाव अकादमी में मेरे विशेष आलेखों का भी सामने आ रहा है और सर्वविदित है उसके दूरगामी प्रभाव को भी श्री यशपाल निर्मल जी अपनी खुली ऑंखों से देख रहे हैं। जिसके आधार पर वे भलीभांति समझ गए हैं कि कुत्ते अब तत्कालीन समाचारपत्र विक्रेता का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते, भले वह कितना भी भौंक लें?
उल्लेखनीय है कि उस समय मेरे मस्तिष्क में उत्पन्न अकल्पनीय विद्युत तरंगें अनियंत्रित होकर विद्रोह कर देने के लिए लालायित हो जाती हैं। परन्तु सौभाग्यवश मैं उक्त तरंगों को सावधानीपूर्वक नियंत्रित करते हुए भारीभरकम मस्त हाथी की भांति चलता रहता हूॅं। जिसपर कुत्तों के भौंकने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। चूंकि हाथी पर कुत्तों के भौंकने का कोई महत्वपूर्ण असर नहीं होता और ना ही मस्त हाथी अपना संतुलन खोकर कुछ आवारा और पट्टाधारी कुत्तों के पीछे भागता है।
उसी मस्त हाथी की प्रेरणा से प्रेरित होकर मैं नई सुबह की नई किरणों के प्रकाश में, संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, प्रसन्नचित अपने उज्जवल भविष्य को संवारने हेतु योजनबद्ध ढंग से कार्य करते हुए अग्रसर हो रहा हूॅं। जिसमें सौभाग्यवश अपने पारिवारिक सदस्यों का यथार्थ के आधार पर आर्थिक, शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक गरिमामय पुनर्वास को प्राथमिकता देते हुए शुभारम्भ कर चुका हूॅं। जिसके शुभ संकेत ही नहीं बल्कि शुभ न्यायिक परिणाम भी शीघ्र ही सार्वजनिक रूप से स्पष्ट होकर श्रीगणेश करते हुए दिखाई देंगे।
यूं भी सर्वविदित है कि मैं तथाकथित "मानसिक दिव्यांग" अपनी लेखन प्रतियोगिताओं के आधार पर विद्वता से परिपूर्ण, आर्थिक सम्पन्नता, शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य परीक्षाओं में ठोस सफलता प्राप्त कर चुका हूॅं। इसके अलावा 15 दुकानों के किराएदारों सहित 40 कमरों में रह रहे 120 से अधिक परिश्रमिकों की व्यवस्था करने और उन्हें नियंत्रित रखने का दायित्व निभा चुका हूॅं। इसके अतिरिक्त साहित्य में छः विश्व कीर्तिमानों सहित स्वःयाचिकाकर्ता के रूप में जम्मू कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी में ही नहीं बल्कि माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के कर्मठ विद्वान ईश्वरीय शक्तियों से संपन्न ईश्वरीय स्वरूप न्यायाधीशों के समक्ष विनम्रतापूर्वक मानवीय मूल्यों पर आधारित चुनौतियों का सामना करते हुए निडर खड़ा हूॅं। जहां अपने सहित अपनी देवी स्वरूप धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली एवं बच्चों पर हुई अद्वितीय क्रूरता का साक्ष्यों के आधार पर राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण न्याय प्राप्त करूंगा।
उपरोक्त करुणामय हृदय विदारक सत्य के अलावा मेरे देश के सभ्य नागरिकों द्वारा प्रायः सार्वजनिक पूछे गए प्रश्नों का सार्वभौमिक उत्तर देना भी अत्यंत आवश्यक ही नहीं बल्कि अपना मौलिक कर्तव्य मानता हूॅं। जिसमें बताना चाहता हूॅं कि लोकतांत्रिक सरकारी व्यवस्था में नागरिक देश के स्वामी होते हैं और सरकार के समस्त वेतनभोगी स्वामीभक्त होते हैं। जिसे संविधान में लोकतंत्र की परिभाषा को परिभाषित करते हुए एक वाक्य में स्पष्ट बताया गया है कि "लोगों के लिए, लोगों की, लोगों द्वारा" शासन व्यवस्था की जाएगी। जिसके अंर्तगत नागरिक "मालिक" और वेतनभोगी "नौकर" माने जाते हैं। जिसके आधार पर वेतनभोगियों को लोकसेवक (पब्लिक सर्वेंट) कहा जाता है। यही कारण है कि देश के वर्तमान माननीय सशक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने मौलिक कर्तव्यों को निष्ठापूर्वक पूर्ण करते हुए स्वयं को कभी चौकीदार और कभी सेवक कहते हुए राष्ट्रीय पर्वों (त्यौहारों) पर देश और देशवासियों को संबोधित करते हुए राष्ट्र के नाम संदेश देते हैं कि मैं और मेरी सम्पूर्ण सरकार स्वामीभक्त है। जिसपर कुछ विपक्षी भ्रष्ट शीर्ष राजनेतिक नेता छींटाकशी करने से बाज नहीं आते हैं। जो वर्तमान समय में "आपराधिक मानहानि" के चक्रव्यूह में पिसते हुए माननीय न्यायालयों के चक्कर काटते प्रायः देखे जा रहे हैं।
रही बात माननीय न्यायालय में मेरे अपने स्वयं के चक्करों की तो उन्हें बताना अपना मौलिक दायित्व ही नहीं बल्कि सौभाग्य मानते हुए गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूॅं। चूंकि सर्वविदित है कि मेरे पैतृक विभाग के कतिपय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने मुझे भरे यौवन में बूढ़ा कर दिया था। हालांकि कि बूढ़े के रूप में मुझे झुककर चलते हुए असंख्य नागरिकों ने देखा भी है। सौभाग्यवश उनमें कई नागरिक अब मेरे 90 डिग्री अर्थात सीधा चलने के भी साक्षी बने हैं। जबकि "नृत्य" करते हुए आप सब फेसबुक पर मुझे देख ही रहे हैं। जिसके आधार पर मैं छाती ठोककर कह सकता हूॅं कि माननीय न्यायालयों के चक्कर काटने पर माननीय न्यायालयों के वर्तमान विद्वान ईश्वरीय शक्तियों से सम्पन्न माननीय न्यायाधीशों ने मेरी संघर्षशीलता और मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली की घोर तपस्या के फलस्वरूप अकल्पनीय ईश्वरीय आशीर्वाद के रूप में "बुढ़ापे में यौवन" देकर हमें प्राकृतिक सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व के सम्मान से सम्मानित किया है। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।