ग़ज़ल
सीने में धधकते शोले जगमगाते रहो।
जागते रहो और अन्य भी जगाते रहो।।
यूं ही दूसरों के गालों को सहलाओ न।
दरिया आग की ऑंच का बहाते रहो।।
शव सभी बिखरे हुए, पर जिंदा हैं हम।
क्रोध छोड़ो न दीप रक्त से जलाते रहो।।
अग्नि बाण की धनुष पर प्रत्यंचा देखें।
पर क्षमा कर उनके गाल सहलाते रहो।।
देशवासियो देशभक्ति मेरा सौभाग्य है।
तुम धर्मानुसार शिवलिंग नहलाते रहो।।