जो कुत्ते भौंकते हुए काटने को आते थे एक पग उठाने पर।
समय परिवर्तित होते ही दुम हिलाते थे एक पग उठाने पर।।
हालांकि शब्दावली पहले की भांति अद्वितीय है अभी भी।
परन्तु भाग्य बदलते ही दूध पिलाते थे एक पग उठाने पर।।
चिंता नहीं है शीघ्रता से मृत्यु की आगोश में समाने की भी।
सिंह गर्जना बिन कहां न्याय दिलाते थे एक पग उठाने पर ।।
जीवन जिंदा दिली का नाम भले पर भूखे भजन नहीं होते।
पर मानते हैं वो जो झूठे पाठ पढ़ाते थे एक पग उठाने पर।।
कठिन समय सिखाता है सच्चाइयों पर चलने का मार्ग भी।
भले दिनों में सच्चे झूठी राह दिखाते थे एक पग उठाने पर।।
हम भी वही हैं और पालनहार भी नारायण ही हैं निःसंदेह।
वो अमृत के भेष में विष पिला जाते थे एक पग उठाने पर।।
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।