चक्रव्यूह आज भी रचाए जा रहे हैं।
अभिमन्यु भी पुनः फंसाए जा रहे हैं।।
सत्य मेव जयते हमारी सभ्यता पर।
महाभारत से कर्म कराए जा रहे हैं।।
समय का चक्कर कभी रुकता नहीं।
बल पूर्वक अशक्त दबाए जा रहे हैं।।
बहुत हो चुका अब नहीं होने दूंगा।
तुम्हारे रचे कुचक्र बताए जा रहे हैं।।
क्यों बसने नहीं दे रहे मेरा घर भाई।
अर्धांगिनी को यूंही लड़ाए जा रहे हैं।।
दिखाई नहीं देता कि मैं प्रताड़ित हूॅं।
ऊपर से वही दोष दोहराए जा रहे हैं।।
परिचय मेरा तुम क्या बताओगे कि।
दिव्यांग बता झूठ फैलाए जा रहे हैं।।
प्रकृति से ना टकराओ टूट जाओगे।
सच छुपाकर यूंही सताए जा रहे हैं।।
क्षमा प्रार्थी हूॅं आग में घी मत डालो।
परिवार के परिवार जलाए जा रहे हैं।।