दिनांक 21-10-2023 की महत्वपूर्ण सुबह के पॉंच बज गए हैं। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर मैं लेखन कार्य में व्यस्त हूॅं। चूंकि सत्यमेव जयते के रणक्षेत्र में मेरा न्यायिक युद्ध चल रहा है और माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में आज माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री पुनीत गुप्ता जी की न्यायालय में मेरी सुनवाई है। जिन्होंने गत सुनवाई में मौखिक रूप से हंसते हुए कहा था कि विभागीय अधिकारी लाइन पर आ रहे हैं। संभवतः आज की सुनवाई में मेरी झोली में कुछ न्यायिक प्रसाद पड़े। ऐसी मेरी आशा है। क्योंकि न्यायिक युद्ध में अब मेरे पास ऐसा कुछ नहीं है जो वह मेरे से छीन सकें।
उल्लेखनीय है कि छीनने वालों ने मेरा यौवन छीन लिया, मेरा सौभाग्य दुर्भाग्य में परिवर्तित कर ईश्वर को दोषी ठहराया, धन के रूप में मेरा वेतन बन्द कर दिया, परिवार रूष्ट हो गया, भाई-बंधुओं, सगे-संबंधियों और मित्रों के स्वार्थी मुखौटे खुलकर सामने आए, अंतड़ियों की तपेदिक ने ज्यौड़ियां चिकित्सालय से ले विश्व स्वास्थ्य संगठन की सत्यता माननीय न्यायालय में आई, तथाकथित विद्वान अधिवक्ताओं की दलीलों के स्थान पर उनकी दलाली प्रकट हुई और भ्रष्ट न्यायाधीशों की कालाबाजारी भी विश्व चैंपियन बनीं। ऐसे ही एक ओर गुरु-शिष्य के संबंध प्रश्नों के कटघरे में खड़े हुए और दूसरी ओर शिष्यों ने गुरू बनकर गुरूघंटाल का रूप धारण कर लिया है। जिन्हें सम्पूर्ण शिक्षा देनी अभी शेष है।
वर्णनीय है कि सामाजिक तिरस्कार के तांडव नृत्य कर्ताओं के स्वार्थियों, भ्रष्टाचारियों, रिश्वतखोरों, झूठे और मक्कारों ने मुझे मूर्ख, सनकी और पागल की संज्ञा देकर कलंकित किया था। उनमें से कुछ विद्वान मनोवैज्ञानिकों अर्थात डॉक्टरों को न्यायिक कटघरे में खड़ा कर चुका हूॅं और कुछेक विद्वानों, साहित्यकारों को, साहित्य अकादमी और पद्मश्री पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं, सम्पादकों एवं मौलिक कर्तव्यों की आड़ में दुष्टता कर रहे कर्तव्यहीनों को शीघ्र ही कटघरे में खड़ा करूंगा। तभी मेरा जीवन सफल होगा।
क्योंकि हिंदु धर्म के ग्रंथों अनुसार मरणोपरांत प्रत्येक व्यक्ति को वैतरणी नदी पार करनी पड़ती है। परन्तु दुर्भाग्यवश मैंने अपने जीवनकाल में ही ऐसी कई वैतरणी नदियों को पार किया है और अंत में पूज्य यमराज की न्यायालय से पूर्व माननीय न्यायालय में पहुंचा हूॅं। जहॉं विभिन्न माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्तियों के रूप में मेरी सुनवाई कर रहे हैं। जिसके फलस्वरूप मैं अपनी याचिका लेखन आविष्कारक विधा पर गौरवान्वित होते हुए अपनेआपको सौभाग्यशाली मानता हूॅं। क्योंकि माननीय न्यायालय में याचिका लेखन विधा के समक्ष कोई भी साहित्य विधा टिक नहीं पाएगी और साहित्यकारों को जन्मजात नंगा कर देगी।
जिसका कड़वा सच यह है कि मेरी उपरोक्त बर्बादियों का आधार किसी न किसी रूप में इन विद्वान होनहार साहित्यिक महानुभावों का हाथ अवश्य ही है। इन्हीं तथाकथित अच्छे लोगों की अच्छाइयां ही इन बुराइयों की जड़ हैं। जिन आधारभूत बुराइयों को जड़ से समाप्त करना आवश्यक है। जिसके लिए उन्हें माननीय न्यायालय में खड़ा करना अति आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। जिसके लिए मेरी वर्षो से की जा रही "याचिका लेखन विधा" रूपी साधना कारगर सिद्ध होगी और दुष्ट जुगाड़ियों के जुगाड़ों की पोल खुलेगी। सम्माननीयों जय हिन्द
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पीटीशनर इन पर्सन)।
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।