मेरी ऑंखों के समंदर से मोतिया निकलता है।
तेरी क्रूरता अटल मुख से वाह वा निकलता है।।
सितारे कैसे तोड़ लाऊं मैं तेरे लिए आकाश से।
घुटन पीड़ा आंतों के क्षय से दरिया निकलता है।।
बुलंदियों पर पहुंचना है तो हौंसले बुलंद कर।
शिखर सम्मेलनों में आगे मिल्खा निकलता है।।
सिंह की दहाड़ से कांप जाती है सम्पूर्ण धरा।
कुत्तों के भौंकने पर क्या धनिया निकलता है।।
सिकुड़ जाते ऊंची उड़ानों के पंख सदा मेरे कि।
युद्धों में योद्धाओं से लाल सा क्या निकलता है।।