पुष्प सारे खिल गए सोचता हूॅं।।
जो समझाते रहे यूं जीवनभर।
मन उनके हिल गए सोचता हूॅं।।
मैं तो पहले सा ही हूॅं माननीयों।
हार तुम्हारे दिल गए सोचता हूॅं।।
शादी के बंधन में बंधे थे परंतु।
होंठ कैसे सिल गए सोचता हूॅं।।
आहत ना किया फिर क्यों मेरे।
प्राण तिल-तिल गए सोचता हूॅं।।