भूल पिछली बातों को वर्तमान देख।
क्यों हुई ऐसी दशा अपनी जान देख।।
कहते जिसे तुम सब मिलकर पागल।
अपनी दुर्दशा और उसकी शान देख।।
भरोसा था उसे अपने ईश्वर पे देखो।
मरने से पहले उसे मिला वरदान देख।।
मान सम्मान बढ़े चाहता है हर कोई।
पर निठल्ले बैठकर न भगवान देख।।
हर हर महादेव कहते हुए बढ़ आगे।
सम्पूर्ण न्याय पाने का परवान देख।।
करोड़ों की संपत्ति यूं ही नहीं बनती।
परिश्रम पसीने से प्राप्त सम्मान देख।।
तपस्या त्याग ब्रह्मचर्य बलिदान कैसा।
सर्वप्रथम धर्मपत्नी में डूब संतान देख।।
मानवता ही जब समाप्त हो चुकी है।
तो तू भी अपना अद्वितीय मान देख।।
योद्धा हूॅं युद्ध की ही सोचूंगा अंततः।
प्रत्यक्ष खड़ा हूॅं मेरा तीरकमान देख।।
महाभारत सा नहीं चाहता प्रतिद्वंद।
परंतु विकल्प नहीं धर्म विज्ञान देख।।
अपने न बनें तो छोड़ उनको 'बाली'।
ढूंढ वो प्राणी जो करें सेवा दान देख।।
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।