मां के गर्भ से स्वतंत्रता पाकर मैं अत्यंत रोया था। जिसके उपरांत मेरा दावा है कि अपने जीवन चक्र में रोते हुए जीवनयापन करने का अनुभव मेरे से अधिक किसी को नहीं होगा? चूंकि मैं पृथ्वी पर ईश्वरीय दंड को भोगने आया हूॅं। मैं ईश्वर से बिछड़ कर ईश्वरीय दंड भोगने के लिए विवश था और अब भी हूॅं। परन्तु ईश्वरीय आदेश का विरोध करना भी मेरे वश में नहीं था। इसलिए मैं नाशवान शरीर के साथ नाशवान संसार में सदैव दुःखी रहा हूॅं। परन्तु ईश्वरीय आदेश के प्रति सदैव निष्ठावान एवं सजग भी रहा हूॅं। जिसके मेरे पास साक्ष्य भी असंख्य हैं और यह भी तय है कि दण्ड की निर्धारित अवधि समाप्त होते ही मैं पुनः परमपिता परमेश्वर में समा जाउंगा।
ईश्वरीय आशीर्वाद का साक्ष्य यह है कि वर्तमान समय में साठ वर्षों के निरंतर कष्टों को झेलने के उपरांत परमपिता परमेश्वर के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त कर मैं गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूॅं। जिससे मैं अत्याधिक प्रसन्नचित भी हूॅं। गौरवान्वित एवं प्रसन्नचित होने का आधार भी स्पष्ट है। चूंकि इकासठ की आयु में इक्कीस वर्ष की आयु के यौवन का जोश प्रत्येक मानव का सौभाग्य नहीं बनता। जिसे ईश्वरीय कृपा न कहूं तो और क्या कहूं?
मेरी उपरोक्त "ईश्वरीय कृपा प्राप्ति" के पीछे मेरी देवी स्वरूप धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली का तप और तपस्या है। जिसमें मेरे बच्चों का भी योगदान सराहनीय है। जिनके बिना मेरा दुर्भाग्य "सौभाग्य" में परिवर्तित होना संभव ही नहीं था। कड़वा सत्य यह भी है कि असंभव को संभव करने की चुनौतियों का सामना करते हुए उनका समाधान करना ही मेरा ईश्वरीय दंड है। जो अब वरदान बनने वाला है। क्योंकि सफलताओं की आहट स्पष्ट सुनाई दे रही हैं। जिनकी गूंज की ध्वनि कल्चरल अकादमी जम्मू से लेकर माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में भी बुलंद हो रही है।
उल्लेखनीय है कि मेरा जन्म ही असत्य पर सत्य की जीत प्राप्ति हेतु हुआ था। मुझे ईश्वरीय आदेश भी यही था कि मृत्युलोक में फैले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाऊं। जिसके लिए मैं सदैव प्रयासरत भी रहा हूॅं और अब मेरी यात्रा सम्पन्न होने वाली है। उपरोक्त यात्रा तय करना लोहे के चने चबाने से कम नहीं है। जिसे मैंने अपनी असाधारण सुयोग्य धर्मपत्नी श्रीमती सुशीला बाली और अपने सुशील एवं विद्वान बच्चों के अदम्य साहस एवं सहयोग से परिपूर्ण किया है। जिसके लिए मेरी देवी स्वरूप धर्मपत्नी और बच्चे साधुवाद के पात्र हैं।
वर्णनीय यह भी है कि मेरी धर्मपत्नी अभी राक्षसों के चंगुल में फंसी हुई है। जिसको छुड़ाना अति आवश्यक ही नहीं बल्कि मेरा मौलिक पतिधर्म है। सर्वविदित है कि राक्षस प्रत्येक युग में देवी देवताओं का भक्षण करने हेतु सशक्त रहे हैं और वर्तमान कलियुग में भी सशक्त ही हैं। जो अपनी राक्षसवृति से प्रायः मुझे हानि पहुंचाते रहे हैं। परन्तु ईश्वरीय कृपा और कड़े परिश्रम से मैं पुनः उभर आता था। जिसके चलते उक्त राक्षस मेरा कुछ भी उखाड़ नहीं सके थे।
विडंबना यह है कि जब राक्षस मेरा कुछ भी बिगाड़ने या उखाड़ने में सफल नहीं हुए तो उन्होंने मेरी धर्मपत्नी पर विभिन्न रूपों में प्रहार करना आरम्भ कर दिया। परन्तु मेरी धर्मपत्नी कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मेरे साथ अडिग खड़ी रही। वह लेशमात्र भी टूटी नहीं थी। परन्तु राक्षस भी हार कहां मानने हैं? इसलिए राक्षसों ने अपनी राक्षसी रणनीति के अंतर्गत मेरे बेटे को उकसाना और फुसलाना आरम्भ कर दिया। जिसके चलते उन्होंने मुझे पागल और मेरे बेटे को अत्यंत बुद्धिमान कहना आरंभ कर दिया। जिसके बावजूद मेरा घर परिवार बना रहा। कहने का अभिप्राय यह है कि उक्त राक्षसों का कोई दुष्प्रभाव मेरे पारिवारिक जीवन पर नहीं पड़ा था।
परन्तु ईश्वरीय आशीर्वाद से एक दिन राक्षसों को सफलता प्राप्त हुई और मेरा परिवार बिखर गया। जिसमें मेरा एक परिवार दो भागों में बंट गया था। जिसके सुखद परिणाम इस प्रकार सामने आए कि मेरा बेटा तरूण बाली धन कमाने में सफल हो गया था। जिसे राक्षसों ने एक ओर खूब सराहा और दूसरी ओर मेरा सौभाग्य माननीय जम्मू और कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में स्वतः सुनवाई से चमक उठा था। मेरी सुनवाई करने वाले माननीय न्यायाधीश मेरी याचिकाओं एवं प्रकाशित पुस्तकों के आधार पर मुझे विद्वान कहना आरम्भ कर चुके थे। अर्थात हम बाप-बेटा एक ओर दोनों कमाने लगे और दूसरी ओर विद्वान कहलाने लगे थे। जहां मुझे पूज्य गुरु नानक देव जी द्वारा सेवकों को "उजड़ने" के आशीर्वाद का रहस्योद्घाटन हुआ। इसलिए मैं अपने उज्जवल भविष्य का आधार "उजड़ने" को ही ईश्वरीय कृपा मानता हूॅं।
अतः अब तक ईश्वर ने जब इतनी कृपा की है। तो मेरा विश्वास है कि वह आगे भी मुझे सद्बुद्धि और शक्ति प्रदान करेंगे। जिस शक्ति से राक्षसों की राक्षसवृति अशक्त होकर क्षीण होगी और मेरी सत्यमेव जयते से प्रभावित होकर माननीय न्यायालय में विजयश्री प्राप्त होगी। जिससे मैं और मेरी पतिव्रता धर्मपत्नी एक होकर अपने बच्चों का भविष्य सुखमय बनाएंगे। जिसकी पुष्टि एवं सकारात्मकता की पूर्ति हेतु मेरी प्राणप्रिया चलो तुम्हारी इच्छा अनुसार किसी धार्मिक समारोह, तीर्थ यात्रा, विदेश यात्रा पर अभिनंदन करें या अपने मित्रों के आमंत्रण पर उड़ीसा सहित चार धामों की यात्रा कर आएं। जय हिन्द सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।