मैं अद्वितीय हूॅं। मेरी व्यथा अंतरराष्ट्रीय स्तर की है। जबकि सौभाग्यवश मैं अद्भुत योद्धा, निडर लेखक एवं पत्रकार, आलोचनात्मक समीक्षक, राष्ट्रीय विधिक ज्ञाता, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक, राष्ट्रीय चिंतक, पर्यवेक्षक, मौलिक कर्तव्यों की चुनौतियों से परिपूर्ण, अकल्पनीय याचिकाकर्ता और अविश्वसनीय संवैधानिक कर्तव्यनिष्ठ हूॅं। अटल रत्न सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित, अनेकों विश्व कीर्तिमानों से सुसज्जित, राष्ट्रीय कैडेट कोर का प्रमाणपत्र धारक होने से गौरवान्वित भी हूॅं। मैं सच को "सच" और झूठ को "झूठ" कहने में भी सक्षम हूॅं और उपरोक्त चुनौतियों का नितांत अकेले सामना करने हेतु प्रायः तत्पर रहता हूॅं।
परन्तु मेरा सौभाग्य है कि मैं "पंडित विद्या रत्न 'आसी' " न होकर "इंदु भूषण बाली" हूॅं और ना ही मैं चाहता हूॅं कि जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी, साहित्य अकादमी या किन्हीं अन्य साहित्यिक संस्थाओं द्वारा मेरे मरणोपरांत मुझे श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु "संगोष्ठियां" आयोजित कर लाखों रुपए खर्च किए जाएं। जिन्होंने उनके जीवित रहते उनकी पुस्तक को भी तिलांजलि दे दी थी। मैं दिनांक 19-07-2023 को कल्चरल अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित संगोष्ठी में आमंत्रित डोगरी संस्था जम्मू के अध्यक्ष एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रोफेसर ललित मंगोत्रा जी के उक्त कथन से भी संतुष्ट नहीं हूॅं कि स्वर्गीय पंडित विद्या रत्न'आसी' जी की पुस्तक को मात्र "कल्चरल अकादमी के समीक्षकों" ने तिरस्कृत किया था।
चूंकि मैं अकादमी के समीक्षकों की दोषपूर्ण राय को अकादमी का ही दोष मानता हूॅं। कहने का अभिप्राय यह है कि अकादमी के कर्मचारीयों या अधिकारीयों के दोषों को अकादमी से पृथक कैसे माना जा सकता है? स्पष्ट शब्दों को निडरता से कहूं तो मैं डुग्गर रत्न ग़ज़लकार स्वर्गीय श्री वेदपाल "दीप" जी की भांति अपनों के तिरस्कार से विक्षप्त होकर मदिरापान भी नहीं करना चाहता हूॅं। मैं इस बात से भी कतई सहमत नहीं हूॅं कि कलीठ के राज परिवार से संबंधित डोगरी के "शिव कुमार बटालवी" कहे जाने वाले स्वर्गीय पद्मदेव सिंह निर्दोष की पुस्तक को मात्र इस आधार पर तिरस्कृत कर दिया जाए कि उस पुस्तक के पृष्ठ निर्धारित मापदंड से कम थे।
मुझे साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा मनोनीत डोगरी परामर्श बोर्ड के सदस्यों द्वारा साहित्यिक गतिविधियों पर आलोचना या समालोचना करने वाले साहित्यकार को तिलांजलि देते हुए उन्हें किसी भी आयोजित कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं करने पर भी कड़ी आपत्ति है। जैसे कि डोगरी भाषा के कन्वीनर श्री दर्शन दर्शी डीके वैद जी के कार्यकाल में मेरा तिरस्कार किया गया था। जो निंदनीय ही नहीं बल्कि साहित्यिक अपराध की श्रेणी में आता है। जिसका खुला विरोध करना मेरे संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों में से एक है। चूंकि मौलिक अधिकारों को प्राप्त करने से पहले मैं सदैव अपने मौलिक कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करता हूॅं।
अंततः मैं चुप रहने वालों में से भी नहीं हूॅं। इसलिए कल्चरल अकादमी जम्मू के आदरणीय मृदुभाषी सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी से मेरा विनम्र आग्रह है कि वे असाधारण लेखकों का प्राथमिकता के आधार पर प्रोत्साहन करें। क्षेत्र के तिरस्कृत एवं भूले बिसरे कलमकारों का उद्धार करें। दबे कुचले सृजनकर्ताओं को भी "लेखक से मिलिए श्रृंखला" में प्राथमिकता दें और मंचासीन करने से पहले यह तय कर लें कि "मंच" किसी की पैतृक संपत्ति नहीं है। जिसपर कुछ गिने चुने लोगों को ही बारम्बार विराजमान किया जाए। सचिव जी के ध्यान में यह भी लाना चाहता हूॅं कि वह अति संवेदनशील, अनोखे, दयनीय व्यक्तित्वों को जीवित रहते हुए ऐसे सुअवसर प्रदान करें कि वह अपना उपनाम "आसी" न रखें और प्रधानमंत्री आवास योजना के होते हुए भी "आसी" जैसा कोई अन्य महान लेखक "घर विहीन" न रहे। इसके अलावा कोई पीड़ित प्रताड़ित रचनाकार सारा जीवन "भ्रष्ट तंत्र" की चक्की में पिसते हुए सिसकता न रहे और मरणोपरांत दूसरों के लिए साहित्यिक व्यापार न बन जाए।
अर्थात वास्तविकताओं का जमाजोड़ यह है कि "आसी" जी का सारा जीवन "बेघर" रहना और "बेघर" ही मृत्यु को प्राप्त हो जाना, भारतीय साहित्य कला संस्कृति एवं भाषा के गाल पर ऐसा साहित्यिक थप्पड़ है। जिसकी पीड़ा अनंत काल तक अनुभव की जाएगी। जिस पीड़ा को उजागर करने का श्रेय श्री शाहनवाज़ जी और भरथ सिंह मन्हास जी को सादर जाता है। जिसके लिए स्वर्गीय पंडित विद्या रत्न'आसी' जी की आत्मा उन्हें ईश्वरीय आशीर्वाद अवश्य देगी।
अतः जम्मू और कश्मीर कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी जम्मू द्वारा आयोजित "पंडित विद्या रत्न'आसी' जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने में आयोजित दिनांक 19-07-2023 के कार्यक्रम के लिए मैं हृदय तल से सर्वप्रथम आदरणीय श्री राजकुमार बहरूपिया जी, श्री खालिद हुसैन जी, मुख्य अतिथि प्रोफेसर सुरेंद्र शर्मा जी, डॉ शाह नवाज़ जी, श्री सुधीर महाजन जी और सचिव श्री भरथ सिंह मन्हास जी सहित के एल सहगल सभागार में उपस्थित समस्त अतिथियों को साधुवाद देता हूॅं और उन्हें अभिनंदन एवं शुभकामनाओं सहित उनका हार्दिक आभार भी प्रकट करता हूॅं। जिन्होंने उक्त कार्यक्रम में आमंत्रित कर समस्त विद्वानों का मान और सम्मान बढ़ाते हुए नई साहित्यिक उर्जा के संग "श्री धर्मेश नरगोत्रा जी" के सुरीले सुनेहरे संगीतमय कार्यक्रम का प्रत्यक्ष साक्षी भी बनाया। जय हिन्द। सम्माननीयों ॐ शांति ॐ
प्रार्थी
इंदु भूषण बाली
व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता (पिटीशनर इन पर्सन)
वरिष्ठ लेखक व पत्रकार, राष्ट्रीय चिंतक, स्वयंसेवक, भ्रष्टाचार के विरुद्ध विश्व की लम्बी ग़ज़ल, राष्ट्रभक्ति एवं मौलिक कर्तव्यों के नारों में विश्व कीर्तिमान स्थापितकर्ता
एवं
भारत के राष्ट्रपति पद का पूर्व प्रत्याशी,
वार्ड अंक 01, डाकघर व तहसील ज्यौड़ियां, जिला जम्मू, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर, पिनकोड 181202।