*सनातन धर्म पर विशेष भगवत्कृपा है* इसका अनुभव करने की आवश्यकता है ! *सनातन धर्म पर भगवत्कृपा* के कुछ उदारहरण प्रस्तुत है :-- वेदों में एकमात्र *सनातन धर्म* का ही प्रतिपादन हुआ है ! यह *निर्हेतुकी कृपा* केवल *सनातन धर्म* को प्राप्त हुई है ! सनातन धर्म पर *पहली भगवत्कृपा है !*
*सनातन धर्म* की रक्षा के लिए समय-समय पर भगवान अवतरित होते हैं ! यह सौभाग्य भी *सनातन धर्म* को ही प्राप्त है ! यह सनातन धर्म पर *दूसरी भगवत्कृपा* का विशेष दर्शन है !
*सनातन धर्म* के अतिरिक्त प्राय: सभी मताभिमानी सज्जन ईश्वर के चाक्षुष साक्षात्कार में सर्वथा असमर्थ हैं ! वे लोग अपनी असमर्थता को भगवान के निराकार होने का बहाना बनाकर शब्द जाल में छुपाने का प्रयत्न करते हैं ! परंतु *सनातन धर्म* समस्त बुद्धिजीवी प्राणियों को ईश्वर के साक्षात्कार रूप दर्शन का खुला निमंत्रण देते हैं ! यह धर्म ईश्वर दर्शनाभिलाषी व्यक्ति को महर्षि पतंजलि के विद्यालय में प्रविष्ट होकर यम , नियम , आसन , प्राणायाम , धारणा , ध्यान , समाधि , आदि अष्टांग योगों का अनुष्ठान करते हुए हस्तामलक की भांति स्वयं भगवत्साक्षात्कार कर सकने का अवसर प्रदान करता है ! *यह सनातन धर्म की तीसरी भगवत्कृपा है !*
अन्यान्य मतावबियों की मान्यता के अनुसार उनके बताए हुए मार्ग पर चलता हुआ मनुष्य अंत में स्थान विशेष तक ही पहुंच सकता है , किंतु जन्म मरण के बंधन से सर्वथा छूटकर मुक्त नहीं हो सकता ! इस प्रकार अन्यान्य मतवादी सदा सदा के लिए मोक्ष के अधिकारी नहीं बन सकते , परंतु *सनातन धर्म* की पद्धति का अनुसरण करते हुए जीव समस्त लोक लोकांतरों को लांघ कर उस परमपद को प्राप्त हो जाता है जहां से उसे पुनः कभी लौटने की आवश्यकता नहीं पड़ती ! *यह सनातन धर्म पर चौथी भगवत्कृपा है !*
अन्य मतों में व्यक्ति विशेष की योग्यता का कुछ भी ध्यान न रखकर सर्वसाधारण के लिए एक समान मार्ग की व्यवस्था है परंतु *सनातन धर्म* में व्यक्तिगत योग्यता के तारतम्य से सात्विक राजस और तामस सभी प्रकार के अधिकारियों के लिए श्रवण , कीर्तन , स्मरण , पादसेवन , अर्चन , वंदन , सख्य और आत्म निवेदन -- नवधा मार्ग दर्शनीय हैं ! इसके अतिरिक्त ज्ञानयोग , भक्तियोग , कर्मयोग आदि साधन भी हैं तथा साधक की प्रकृति के अनुकूल उनके इष्टदेव भी पृथक पृथक हैं ! इस प्रकार *सनातन धर्म* में सभी योग्यता के व्यक्ति अपनी - अपनी योग्यता के अनुसार भगवत्प्राप्ति के किसी भी मार्ग का अनुसरण करके परम पद के अधिकारी बन सकते हैं ! *यह सनातन धर्म पर पांचवी भगवत्कृपा है !*
इतना ही नहीं *सनातन धर्म पर भगवत्कृपा* के अन्य भी अगणित उदाहरण एवं प्रकार विद्यमान हैं ! इस विषय को विस्तारित किया जाय तो शायद विषयांतर होने लगेगा , परंतु यह अकाट्य सत्य है कि जो *भगवत्कृपा* सनातन धर्म पर है वह कहीं भी देखने को नहीं मिलती है ! श्रृंखला के अगले भाग में यह बताने का प्रयास होगा कि भारतीय वांग्मय में *भगवत्कृपा* के दर्शन किस प्रकार हुए हैं !