*भगवत्कृपा* का दर्शन संपूर्ण श्रीमद्भागवत में होता है परंतु कहीं-कहीं *विशेष भगवत्कृपा* देखने को मिलती है ! ऐसे ही एक प्रसंग में *विशेष भगवत्कृपा* तब देखने को मिलती है जब माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण को बांधने के लिए पर रस्सी उठाती हैं ! चंचल बाल कृष्ण की लीलाओं से परेशान मैया यशोदा ने मन में विचार किया कि आज लाला को रस्सी में बांध दूँ ! परंतु विचार कीजिए क्या उस परमात्मा को कोई बांध सकता है :--
*जिनकी महिमा अनन्त , गावैं सब साधु संत ,*
*जिनका न आदि कोई न कोई अन्त है !*
*चरण पाताल जिनके शीश जिनका ब्रह्मलोक ,*
*जिनकी भुजाओं से व्याप्त दिग दिगन्त हैं !!*
*अणुओं परमाणुओं में चेतन स्थाणुओं में ,*
*जिनकी सत्ता रोम रोम में रमन्त हैं !*
*ऐसे प्रभु को भला बन्धन में कौन बाँधे ,*
*जो सर्वव्यापक सर्वात्मा भगवन्त हैं !!*
(स्वरचित)
ऐसे सर्वात्मा भगवान को भला रस्सी में कौन बांध सकता है जिसमें मैया यशोदा बालकृष्ण को बांधना चाहती हैं ! उस समय भगवान की स्वत:सिद्ध अनेक शक्तियां उसमें बाधा डालने के लिए तैयार हो गईं ! *व्यापकता कहती थी कि* जिनका कोई ओर-छोर नहीं है वह रस्सी की लपेट में कैसे आएंगे ! *पूर्णता कहती थी कि* जिनमें बाहर भीतर नहीं है वे रस्सी के भीतर कैसे अटेंगे ? *असंगता का घोषणा कर रही थी कि* प्रभु के शरीर के साथ रस्सी का संग असंभव है ! *अद्वितीयता ने स्पष्ट मना कर दिया कि* स्व में स्व का क्या बंधन ? बंधन तो पर के साथ होता है ! इस आपाधापी के समय *श्रीमती भगवती भगवती कृपादेवी* मन ही मन मुस्कुरा रही थी और इधर मैया यशोदा अपने लल्ला को बांधते बांधते परेशान हो गईं ! रस्सी हमेशा दो अंगुल ही छोटी हो जाती थी ! पूरे गोकुल ग्राम की रस्सियां एक में जोड़ दी गई परंतु रस्सी दो अंगुल ही छोटी पड़ जाती थी ! *रस्सी दो अंगुल ही छुट्टी क्यों पड़ती थी ?* इस पर हमारे विद्वानों के अनेक विचार है कि *भगवान को बांधने के लिए सतोगुण का होना बहुत आवश्यक है* रजोगुण एवं तमोगुण के रूप में भगवान को नहीं बांधा जा सकता इसलिए रजोगुण एवं तमोगुण के स्वरूप रस्सी दो अंगुल छोटी हो गई ! ऐसे अनेक कारण देखने को पढ़ने को मिलते हैं यदि इस विषय पर विस्तार करेंगे तो शायद विषयांतर हो जाएगा इसलिए अपनी *भगवत्कृपा* की ओर चलते हैं ! जब मैया यशोदा बांधते बांधते परेशान हो गई एवं थक कर बैठ गई तब मैया के ऊपर *विशेष भगवत्कृपा* हुई और *कृपा देवी* ने उन शक्तियों की ओर तिरछी चितवन से देखा जो भगवान को बांधने में बाधा उत्पन्न कर रही थी और *कृपा देवी* के देखते ही सारी शक्तियां निष्प्राण सी धरी की धरी रह गई और बालकृष्ण प्रभु बंधन में आ गए ! भगवान को यदि बांधना है , *भगवत्कृपा* प्राप्त करनी है तो भगवान को एक ही रस्सी बांध सकती है वह है प्रेम की रस्सी ! उसी प्रेम की रस्सी में बंध करके भगवान ने अपना नाम दामोदर प्रकट किया ! यदि भक्त चाहे तो भगवान को प्रेम की रस्सी से ही नहीं बल्कि पशुओं को बांधने की रस्सी से भी बांध सकता है क्योंकि भक्तों में इतना सामर्थ्य होता है और भगवान तो सदैव भक्तों के बस में होते हैं ! क्योंकि *भक्त के बिना भगवान का कोई अस्तित्व ही नहीं है* जैसा कि भगवान ने स्वयं कहा है:--
*अहं भक्त पराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज !*
*साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रिय: !!*
(श्रीमद्भागवत/९/४/६३)
*अर्थात्:-* भगवान कहते हैं :- दुर्वासाजी ! मैं सर्वथा भक्तों के अधीन हूँ ! मुझमें तनिक भी स्वतन्त्रता नहीं है ! मेरे सीधे-सादे सरल भक्तों ने मेरे हृदय को अपने हाथमें रखा है ! भक्तजन मुझसे प्यार करते हैं और मैं उनसे प्यार करता हूँ ! भगवान को बस में करने के लिए किसी विशेष साधन को साधने की आवश्यकता नहीं है ! भगवान स्वयं घोषणा करते हैं कि जिसका मन निर्मल है जो समदर्शी है जो मेरे शरणागत है मैं उसके वश में हूं उस पर *भगवत्कृपा* बरसती रहती है ! भगवान ने कहा है:-+
*मयि निर्बद्धहृदयाः साधव: समदर्शना: !*
*वशीकुर्वन्ति मां भक्त्या सत्स्त्रियः सत्पतिं यथा !!*
(श्रीमद्भागवत /९/४/६६)
*अर्थात्:-* जैसे सती स्त्री अपने पातिव्रत्यसे सदाचारी पतिको वशमें कर लेती है, वैसे ही मेरे साथ अपने हृदयको प्रेम-बन्धनसे बाँध रखनेवाले समदर्शी साधु भक्तिके द्वारा मुझे अपने वशमें कर लेते हैं ! इस प्रकार *भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए , भगवान को बांधने के लिए प्रेम का होना बहुत आवश्यक है बिना प्रेम के ना तो *भगवत्कृपा* प्राप्त की जा सकती है और ना ही भगवान को बांधा ही जा सकता है ! *भगवान को बांधने के लिए आखिर भक्तों में इतना सामर्थ्य आता कहां से आता है ?* इसका उत्तर हमको मिलता है कि :- *"कृपया$$सीत् स्वबन्धने"* ठीक ही है ! *भगवती कृपा ही* शक्ति चक्रवर्तिनी है ! भगवान की प्रेयसी पटरानी है ! *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए *भगवती कृपा देवी* की अनुकंपा आवश्यक है और यह अनुकंपा प्रेम से ही प्राप्त की जा सकती है !