*भगवत्कृपा* और विश्वास यह दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं ! भगवान एवं *भगवत्कृपा* पर विश्वास करने से ही मनुष्य को इसका अनुभव हो पाता है ! यदि मनुष्य को *भगवत्कृपा* पर भरोसा है तो उसे भगवान का दर्शन करने के लिए या ,*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए कहीं भी जाने की आवश्यकता नहीं है ! गजराज , द्रोपदी , बालक ध्रुव , प्रहलाद आदि के आख्यान पढ़ने से यही ज्ञात होता है कि पूर्ण विश्वास के साथ *भगवद्भजन* करने से *भगवत्कृपा* स्वमेव प्राप्त हो जाती है ! और नारायण स्वयं दर्शन देने के लिए उपस्थित हो जाते हैं ! एक भाव समर्पित है :--
*भगवत्कृपा परम सुखदाई !*
*भगतन के बस होइ नटनागर,*
*दौरत भागत आई !!*
*ध्रुव तारे प्रहलाद उबारे ,*
*द्रौपदी लाज बचाई !*
*मीरा के हित अमृत बनके ,*
*प्रकटे कृष्ण कन्हाई !!*
*गज के फन्द छुड़ाये पल में ,*
*चक्र की धार दिखाई !*
*घायल गीध जटायू को निज ,*
*गोद लिये रघुराई !!*
*भगवत्कृपा परम सुखदाई !!*
(स्वरचित)
मतंग ऋषि जब परमधाम को जाने लगे तो अपनी शिष्या , परमभक्ता , *माता शबरी* से बताकर गये थे कि एक दिन स्वयं परमात्मा तुमसे मिलने यहाँ आयेंगे ! गुपु के बचनों पर पूर्ण विश्वास करके माता शबरी भगवान की राह देखने लगीं ! लोग *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए अनेक प्रकार के साधन अपनाते हैं , मन्दिरों में जाकर दर्शन - पूजन करके *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का प्रयास करते हैं परंतु यह सब करने की आवश्यकता कदापि नहीं हैं क्योंकि मन्दिरों में ईश्वर का प्रतिबिम्ब मात्र है बाकी ईश्वर तो प्रत्येक हृदय में वास करते हैं !
*जप तप पूजा पाठ करिके अनेको भाँति ,*
*प्रभु की कृपा की ओर आसरा लगाते हैं !*
*तीर्थों का भ्रमण करि मन्दिरों में दर्श करत ,*
*घूम घूम खूब देवी -देवता मनाते हैं !!*
*गंगास्नान करि दान भाँति भाँति देत ,*
*परम प्रभू की कृपा को तरसाते हैं !!*
*देश देशान्तर घूमि घूमि नित्य खोजे जिन्हें ,*
*उनको हृदयं में कभी देखि नहीं पाते हैं !!*
(स्वरचित)
ईश्वर सबके हृदय में वास करता है आवश्यकता है पूर्ण विश्वास की ! जिस पूर्ण विश्वास के बल पर माता शबरी ने बिना कोई तीर्थ यात्रा किये भगवान को प्राप्त कर लिया वह विश्वास जब मानव हृदय में प्रकट होता है तो भगवान स्वयं दर्शन देने चले आते हैं ! माता शबरी भगवान को ढूंढने कहीं नहीं गयीं क्योंकि उन्हें गुरु के वचनों पर और *भगवत्कृपा* पर पूर्ण विश्वास था और उन पर ऐसी *भगवत्कृपा* हुई कि भगवान ने उनको माता कह कर संबोधित किया और अद्भुत नवधा भक्ति का उपदेश भी दिया ! ऐसे अनेकों कथानक हमारे पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं जहां भक्तों को पूर्ण विश्वास के बल पर ही *भगवत्कृपा* प्राप्त हुई है ! बाबा जी ने मानस में लिखा है :-
*बिनु विश्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं न राम !*
(मानस)
इसलिए *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए पूर्ण मनोयोग के साथ विश्वास करके जहां है वहीं पर यदि कुछ ना कर पाए तो भगवान्नाम उच्चारण करता रहे तो *भगवत्कृपा* बरसने लगेगी ! हम सभी कलयुग में बैठे हैं कलयुग में कोई उपाय किया जाए या न किया जाए बस भगवान का नाम ही सर्वोत्तम उपाय है ! क्योंकि भगवान का नाम ऐसा है कि:--
*नाम लेत भवसिंधु सुखाहीं*
(मानस)
*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए पूर्ण विश्वास के साथ भगवान्नाम उच्चारण ही सर्वोत्तम उपाय है परंतु भगवान्नाम उच्चारण में भी पूर्ण विश्वास होना चाहिए ! बिना विश्वास के कुछ भी नहीं प्राप्त किया जा सकता है जिसने विश्वास किया वही *भगवत्कृपा* का पात्र बन पाया है !