*भगवत्कृपा* इस संसार में सबके लिए समान रूप से होती है परंतु इस दिव्य *भगवत्कृपा* की अनुभूति सबको नहीं हो पाती ! *कृपा की अनुभूति किसको होती है ?* इसके विषय में यदि विचार किया जाए तो यह समझ में आता है कि जिस प्रकार मलय पवन के चलने से जिन वृक्षों में कुछ सार होता है वह सब तो चंदन बन जाते हैं परंतु बांस केला आदि सार रहित वृक्षों पर इनका कोई असर नहीं होता ! उसी प्रकार *भगवत्कृपा* पाकर जिनमें कुछ सार है वे तो तत्काल सद्भाव से परिपूर्ण हो जाते है किंतु सारहीन विषयासक्त मनुष्य का सहज में कुछ नहीं होता ! *भगवत्कृपा* का पवन अनवरत बह रहा है परंतु आलसी लोग उसका सदुपयोग नहीं कर पाते जो उद्यमशील होते हैं वे अपनी नौका का पाल फहरा कर आसानी से *भगवत्कृपा* प्राप्त करके भवसागर से पार उतर जाते हैं ! इसीलिए कहा गया है :--
*बरस रही है सब पर भगवत्कृपा ,*
*सहज ही नित्य निरंतर !*
*जीव मात्र के सहज स्वजन हरि ,*
*भरे सभी के बाहर भीतर !!*
*सदा सभी के लिए वेग से ,*
*झरता कृपा सुधा का निर्झर !*
*परमाश्रय वे प्राणिमात्र के ,*
*भेद रहित व परम सुहृद वर !!*
*अर्थात्:-* इस चराचर जगत में जितने भी जड़-चेतन है सब पर ही सहज भाव से निरन्तर *भगवत्कृपा* बरस रही है ! जीवमात्र के सहज स्नेही भगवान श्री हरि सबमें समान रूप से समाये हुए हैं ! *भगवत्कृपा* रूपी अमृत सदैव सबके लिए बरस रहा है ! प्राणिमात्र के परम आश्रय भेदभाव न रखकर सब पर बराबर *कृपा* करते हैं ! भगवत कृपा प्राप्त करने की अनेकों मार्ग बताए गए परंतु इसमें सबसे सरल है भक्ति मार्ग भक्ति मार्ग का अनुसरण करके सहज ही भगवत कृपा प्राप्त की जा सकती है हमारे शास्त्रों में कहा गया है :-
*धर्ममार्गे कृपामात्रं कारणं परमुच्यते !*
*तेनैव मार्गे सकलं सिदिधिमेति न संशय: !!*
*अर्थात्:-* भक्ति मार्ग में कृपामात्र ही उत्तम कारण है ! इस कृपा से ही सकल सिद्धियां प्राप्त होती हैं ! इसमें संशय नहीं है | *भगवत्कृपा* में प्रखर शक्ति है ! जिसको *भगवत्कृपा* प्राप्त हो जाती है उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है ! प्रखर शक्तिशाली *भगवत्कृपा* का ही प्रभाव है कि :--
*मूकं कपोति वाचालं , पंगुं लंघयते गिरिम् !*
*यत्कृपा तमहं वन्दे , परमानन्द माधवम् !!*
*अर्थात्:-* जिसकी कृपा से वाक् शक्तिहीन गूंगा प्राणी प्रखर वक्ता बन जाता है एवं पंगु व्यक्ति जो जंघा पाद आदि रहित होने के कारण एक दो पग भी नहीं चल सकता वह दुर्गम पर्वत पर भी चढ़ जाता है ! उन परम आनंद स्वरूप माधव कि मैं वंदना करता हूं ! परब्रह्म परमेश्वर इतने कृपालु हैं जिन की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता ! यह *भगवत्कृपा* की ही महिमा है !
अत: प्रेम से कहो
*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*