भगवत कृपा से इस सृष्टि का संचार हुआ और यह सृष्टि पल-पल परिवर्तनशील है साधक जो आज है वह कल नहीं था जन्म से मरण तक प्रतिक्षण उसके स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है यह एक वैज्ञानिक तथ्य है इस परिवर्तन को माफ किया जाए अथवा उसका वास्तविक आकलन हो जाए यह संभव नहीं नवजात शिशु के क्षण किशोर हो जाता है और इस अंतराल में कितना काल व्यतीत हो जाता है उसमें प्रतिक्षण होने वाले परिवर्तन का विभाग के साथ पूरा पूरा समय अंकन नहीं किया जा सकता किंतु यह परिवर्तन किन्ही नियमों से नियमित अवश्य है नियम है तो नियामक भी होगा वह नियामक ही भगवान है और नियम की भगवत कृपा है ईश्वर भेदभाव रहित कृपा सब पर बरसाते हैं पंचतत्व बिना किसी भेदभाव से संपत समान रूप से अपनी कृपा प्रदान करते हैं
*धरती सबको धारण करती ,*
*कछु भेद न मानै विचार ना लावै !*
*सम भाव से मेघ सदा बरसै ,*
*जल रूप समान से प्यास बुझावै !!*
*रवि किरणें प्रकाश प्रदत्त करें ,*
*कछु ऊंच-नीच नहिं भेद दिखावै !*
*सबके हित गगन स्वच्छंद सदा ,*
*अरू वायु सबहिं के प्राण बचावै !!*
(स्वरचित)
इन पांच तत्वों से ही जीवन चलता है और यह पांच तत्व देश काल धर्म जाति सजीव निर्जीव जड़ चेतन या सोच स्कूल के लिए कोई भेद नहीं करते यही पांच तत्व है जिनका वैज्ञानिक एकीकरण मानव शरीर है सृष्टि के नियमों के अनुसार प्राणियों का शरीर नियामक की कृपा का प्रसाद है अर्थात मानव स्वयं भगवत कृपा का सजीव प्रतिफल है भगवत कृपा हुई फलस्वरूप पृष्ठ का एक चेतन प्राणी मानव प्रत्यक्ष हुआ उसने जिज्ञासा से प्रयास प्रारंभ किया और साधना तप स्वाध्याय मनाना द्वारा वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि जीव स्वयं कुछ नहीं मात्र ईश्वर का अंश है यह सत्यता जो जड़ होती गई क्यों क्यों वह पूर्णता की ओर अर्थात अंशी को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होता गया और उसने विश्वास पूर्वक उद्बोधन किया अहम् ब्रह्मास्मि इस लक्ष्य तक कि मानी हुई दूरी और उसे तय करना जिन नियमों के अंतर्गत नियमित है उसे ही समझ लेने के प्रयास में दर्शन शास्त्रों की उत्पत्ति हुई भगवत कृपा उस दर्शनिक प्रक्रिया का चरम प्राप्त है लक्ष्य है
*बहु धर्म बने बहु पंथ चले ,*
*बहु ईश्वर रूप सभी बतलाते !*
*साकार कोई निराकार कोई ,*
*कोई स्वयं को ईश्वर सिद्ध दिखाते !!*
*कोई गॉड खुदा ईसा कहकर,*
*जनता में प्रभू को भी बंटवाते !*
*बाँधत हैं निज धर्म में जो प्रभु ,*
*एक ब्रह्म को मूरख बाँध न पाते !!*
(स्वरचित)
सगुण निर्गुण निराकार साकार हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आज दार्शनिक एवं धार्मिक प्रदेशों में उसे बांधने की अनंत काल से कोर्ट को रिचेस्ट आई हुई और यह भी मान लिया जाने लगा कि वह यही है वस्तुतः वह यही है यह आज भी संदिग्ध है जिसने अपनी साधना से जैसा समझा उसने वैसा ही बता दिया अपने अपने ज्ञान के अनुसार स्वयं को भगवत कृपा का पात्र बताकर धर्म अधिकारियों ने उस ईश्वर की व्याख्या की परंतु शायद सभी लोग उसकी कृपा का आकलन नहीं कर पाए ना ही उस महान परमात्मा को जान पाए जिसकी कृपा से समस्त संसार चलायमान है उसको जान पाना भगवत कृपा से ही संभव है जिन्होंने भगवत कृपा से उस भगवत सप्ताह के विषय में जाना वह कुछ बताने के योग्य नहीं रह गया क्योंकि भगवत कृपा प्राप्त करके भागवत सप्ताह के विषय में जान लेने के बाद संसार एवं सांसारिक तक बहुत अधिक मतलब नहीं रह जाता यही भगवत कृपा का रहस्य है