भगवान परात्पर ब्रह्म होते हुए भी सर्वथा निर्वैयक्तिक ,लोकातीत , निरासक्त तथा जीवो के परम सुहृद हैं ! वे इस सृष्टि रूप पुरी को रच कर इसमें अनुप्रविष्ट हुए हैं ! इसी में उत्पन्न होकर विश्वात्मा एवं अंतर्यामीरूप से इस चराचर जगत का धारण , पोषण एवं नियंत्रण कर रहे हैं ! उन्हीं की अध्यक्षता में यह संपूर्ण प्रकृति सतत गतिशील है ! वेदांत के शब्दों में संपूर्ण सृष्टि ईश्वर की लीला है तो वेदों के शब्दों में अखिल ब्रह्मांड उस परमात्मा की महिमा है ! यथा:--
*एतावानस्य महिमा*
(ऋग्वेद)
ईश्वर के मुख्यतः पांच कृत्य हैं :- सर्जन , गोपन , संहार , निग्रह एवं अनुग्रह ! वस्तुतः यह सभी कृत्य अनुग्रह के ही रूप है ! भगवान जीवों के पूर्वजन्मार्रजित कर्म फल को सुख-दुख के भोग द्वारा क्षीण करने एवं नानाविध अनुभवों का संचय कर उन्हें आध्यात्म मार्ग पर आरूढ़ करने के लिए सृष्टि की रचना करते हैं ! भगवन्महिमा की अभिव्यक्ति प्राणियों के क्रमिक विकास , बहुविधि ज्ञान विज्ञान की अवतारणा एवं ईश्वरीय प्रयोजन की पूर्ति के लिए वह परमपिता एक नियत काल तक सृष्टि का रक्षण एवं पालन करते हैं ! वे प्रकृति तथा जीवों को विश्राम देने के लिए संहार द्वारा प्रलयकाल की नियत अवधि को प्रस्तुत करते हैं ! वे ही मुक्ति के योग्य पात्र होने पर जीवात्मा को पाशमुक्त कर मोक्ष प्रदान करते हैं ! यथा:---
*ईश्वर: सर्वभूतानामत्ममुक्तिप्रदायक:*
(शिवसंहिता)
ईश्वर करुणा रस के सागर हैं एवं उनका अनुग्रह अहैतुक होता है ! इस अनुग्रह का मूल ईश्वर एवं जीव के नित्य संबंध में है ! जीव ईश्वर का नित्य सनातन अंश है ! वह सृष्टि में ईश्वर लीला का अंग बनने तथा ईश्वर की महिमा को अभिव्यक्त करने के लिए आता है ! यद्यपि सृष्टि में आकर जगत के प्रपंच एवं विद्या में फंसकर अपने स्वरूप को तथा अंशी ईश्वर के साथ अपने नित्य संबंध को भूल जाता है , पर भगवान उसे कभी नहीं भूलते ! जीव की अज्ञानता में भी वे परोक्ष रूप से उसका धारण , नियंत्रण एवं मार्गदर्शन करते रहते हैं तथा नानाविध मार्गो से प्रेरित कर उसे पुनः आत्मा एवं परमात्मा के मिलन मार्ग पर अर्थात मोक्ष मार्ग पर ले आते हैं ! *भगवत्कृपा* होने पर ही सत्कर्मों में रुचि , हृदय में भक्ति का उदय , विषयों से वैराग्य महापुरुषों का संग और मोक्ष की कामना उत्पन्न होती है तथा जीव को परम पद की प्राप्ति होती है ! यथा :--
*दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् !*
*मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुषसंश्रय: !!*
(विवेकचूड़ामणि)
*अर्थात्:-* मनुष्य-जन्म, मोक्ष की कामना एवं भगवद्रूप महात्माओं का सतसंग ये तीनों वस्तुएँ दुर्लभ है ! केवल करुणामय *भगवत्कृपा* से ही प्राप्त होती है !