हम बात *भगवत्कृपा* की करते हैं किसी - किसी को इसका अनुभव भी नहीं हो पाता , परंतु अब हम अपने जीवन पर *भगवत्कृपा* का दर्शन करने का प्रयास करेंगे जो हमारे जन्म काल से लेकर जीवन पर्यंत हमारे साथ छाया के समान लगी हुई है !
*गर्भ में आते ही मिलता रस नली द्वारा हमें !*
*दाँत बिन मिल जाती पावन दूध की धारा हमें !!*
*चल नहीं पाते तो संरक्षण दिया परिवार का !*
*चेतना मस्तिष्क में प्रकटी विवेकाधार का !*
*रख तराजू में इसे एक बार तो तोलो जरा !*
*यह कृपा "अर्जुन" नहीं तो और क्या बोलो जरा !!*
(स्वरचित)
जन्म से पूर्व जब हम गर्भावस्था में थे तब माता के भोजन का सारा रसाहार नली द्वारा सीधे हमारे उदर में पहुंचा देने की सुंदर व्यवस्था की गई , और हमारे शरीर के जन्म से पूर्व ही बिना दांतों के चूसने योग्य दुग्ध पर्याप्त मात्रा में माता के स्तनों में उतार दिया गया , साथ ही अच्छी - बुरी सभी अवस्थाओं में पालन पोषण एवं संरक्षण करने की ममता भी माता के हृदय में भर दी गई , बाल्यावस्था में उस अदृश्य भगवतसत्ता ने हीं अनेक प्रकार के अनिष्टों एवं बाधाओं से जीवन को सुरक्षा प्रदान की , इसके पश्चात उसने अपना ज्ञान रूप प्रकाश हमारे मन , बुद्धि एवं इंद्रियों में चेतना के रूप में फैलाना प्रारंभ किया और अंततः वह हमारे अंतःकरणरूप र्पण में स्वयं भी प्रकाशित हो उठी ! इतना सब होने के बाद भी मनुष्य कहता है कि हमारे ऊपर *भगवत्कृपा* नहीं है , क्योंकि उसको *भगवत्कृपा* का अनुभव ही नहीं हो
पाता !
*बिना कृपा संसार में होत न कोई काम !*
*जीवन में चारों तरफ पसरी कृपा तमाम !*
*पसरी कृपा तमाम , मूर्ख तू देख न पाता !*
*कृपासिन्धु भगवान को नाहक दोष लगाता !!*
*कह "अर्जुन आचार्य" विचारो मन में प्यारे !*
*बिना कृपा संसार की रचना कौन पसारे !!*
(स्वरचित)
इतनी महती एवं सर्वव्यापिका भगवत-सत्ता हमारे समष्टि जीवन में इस प्रकार ओतप्रोत है कि उनकी कृपा के बिना हम कुछ भी करने में समर्थ नहीं हो सकते ! वह हमारे शरीर की समस्त क्रियाओं की संचालिका एवं नियामिका है ! प्राण के स्पंदन एवं मन की स्फुरणाओं की प्रेरक के रूप में सदैव सर्वत्र विराजमान है , *किंतु हमारी बुद्धि पर अज्ञान का पर्दा पड़ा रहने के कारण हमें दिखाई नहीं देती* फिर भी यह तो माता के समान अहर्निश हमारे कल्याण के उद्देश्य से ही सारी परिस्थितियां उत्पन्न करती रहती है ! जो परिस्थिति हमारी स्थूल बुद्धि को अशुभ एवं प्रतिकूल प्रतीत होती है वही समय आने पर हमारे लिए परम हितकारी सिद्ध होती है ! उस समय हमें विश्वास हो जाता है कि भगवत-सत्ता नित ही हमारे कल्याणकारी भविष्य का निर्माण करने के प्रयोजन से ही हमारे जीवन में सारे परिवर्तन उपस्थित करती है ! *भगवत्कृपा* प्रतिपल मानव जीवन पर है परंतु इसका अनुभव सबको नहीं हो पाता , क्योंकि *भगवत्कृपा* को देखने वाले नेत्र अज्ञान के पर्दे से छुपे हुए हैं !