सकल सृष्टि में चौरासी लाख योनियाँ हैं सब पर ही *भगवत्कृपा* बरसती रहती है ! परंतु मानव योनि पर तो *विशेष भगवत्कृपा* है ! विचार कीजिए कि यदि हम पर *विशेष भगवत्कृपा* न होती तो पेड़ - पौधे या घोड़े - गधे या अन्य पशु योनि मे हमारा जन्म होता ! हम पर *अनंत भगवत्कृपा* है इसलिए तो हमें अमूल्य मनुष्य जन्म मिला है !
*भगवत्कृपा से मिल गयी सुन्दर मानुष देह !*
*तो फिर क्यों न कीजिए कृपासिंधु सों नेह !!*
(स्वरचित)
इस मनुष्य जीवन का सार्थक करना ही हमारा परम धर्म है ! यदि हमने यह परम धर्म ईमानदारी से नहीं निभाया तो हमारे लिए नरक जाने के सिवाय दूसरा कोई मार्ग नहीं है ! संत तथा गुरू लोग हमें सदा सजग करते हुए कहते है -
*मानुष तन अति दुर्लभ मिले न बारम्बार !*
*पत्ता टूटे डाल से तो बहुरि न लागै डार !!*
यह जो पावन अवसर हमको मिला है इसका लाभ तभी हो सकता है जब हम अपने कर्मों के द्वारा *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सतत प्रयास करते रहें ! यह कितने आश्चर्य की बात है कि *भगवत्कृपा* तुम्हे अपनाने , तुमपर बरसने , तुम्हे अपनी महान मधुर और शीतल छायाका आश्रय देनेके लिये सदा - सर्वदा तैयार है तथा वह तो यह भी नहीं देखती कि तुम्हारा पूर्व इतिहास , अब तक का आचरण कैसा है ! तुम पुण्यात्मा हो या पापी , तुम सात्विक हो या तामस , तुम ब्राह्मण हो या चांडाल , तुम देवता हो या दानव , तुम हिन्दू हो या मुसलमान , तुम धनी हो या गरीब और तुम पंडित हो या मूर्ख *भगवत्कृपा* तो केवल देखती है तुम्हारे अंदरका भाव ! भव सदैव यही होना चाहिए कि :--
*एक भरोसो एक बल एक आस विस्वास !*
*साहिब सीतानाथ सों सेवक तुलसीदास !!*
(दोहावली)
यदि तुम सचमुच अन्य सारे साधनों से हताश - निराश होकर और एक विश्वास - भरोसे के साथ उनकी ओर निहार रहे होगे तो वह उसी क्षण तुम्हे अपना लेंगे और *भगवत्कृपा* तुम पर चारों ओर से बरस पड़ेगी और तुम्हे अपनी सुखद छाया का आश्रय देकर निश्चिन्त , निर्भय और निष्काम बना देगी ! तुम्हारी कोई कामना अधूरी नहीं रहेगी उस समय तुम्हे तुम्हारी कामना और उसकी पूर्ति का भी पता नहीं रहेगा ! तुम उस समय उस *कृपा शक्ति* की पवित्र लहरों के साथ धुल-मिलकर स्वयं पवित्र - कृतार्थ रूप हो जाओगे | एक बात सदैव स्मरण रहे कि :--
*भगवत्कृपा निरंतर बरसै !*
*साधन हीन कृपा को तरसै !!*
*सुख खोजत सब साधन माहीं !*
*भगवत्कृपा बिना सुख नाहीं !!*
(स्वरचित)
*भगवान की कृपा* तुम पर तो है ही ! यदि *भगवत्कृपा* न होती तो मानव योनि न मिलती ! *भगवत्कृपा* सदा सभी पर है , सभी को प्राप्त है ! तुम विश्वास नहीं करते - मानते नहीं , इसी से अन्य साधनों का सहारा खोजते हो और इसी से उस नित्य प्राप्त जन्मसिद्ध अपने परम धन *(भगवत्कृपा)* से वञ्चित हो रहे हो ! *भगवत्कृपा* पर विश्वास करो और भगवान का प्रेम , आनंद , ज्ञान और शान्ति का अनुभव करो ! *भगवत्कृपा* प्राप्ति का उत्तम साधन कोई है तो वह है विश्वास रूपी साधन ! इससे बड़ा अन्य कोई साधन नहीं है |