इस संसार में स्वाभाविक रूप से सभी प्राणियों पर सदैव *भगवत्कृपा* रहती है , क्योंकि वह परमात्मा है ही ऐसा , जिसके लिए कहा गया है :-
*जो सहज कृपाला दीनदयाला*
जो सहज भाव से दीनों पर दया करते हैं और कृपालु हैं ऐसे ही बिना कारण कृपा करने वाले परमात्मा को *अकारणकरुणावरुणालय* कहा गया है ! प्रत्येक प्राणी मात्र पर उनकी *कृपा* बरसती रहती है *क्योंकि वह कृपानिधान कृपा की दिव्य अलौकिक मूर्ति है !* आज घर घर में उनकी पूजा हो रही है उनका एक ही विशेष कारण है की वह *कृपामूर्ति हैं* संतो ने इसीलिए कहा है :--
*कृपा की ना होती जो आदत तुम्हारी !*
*तो सूनी ही रहती अदालत तुम्हारी !!*
*जो मुल्जिम न होते न तुम होते हाकिम !*
*न घर-घर में होती इबादत तुम्हारी !!*
*प्रभो मुझसे गलती जो कुछ भी हुई हो !*
*कृपा करके उसको सम्हालो मुरारी !!*
*भगवत्कृपा* की अनवरत , अक्षुण्ण रूप से प्रवाहित *कृपाधारा* में सभी अवगाहन कर सकते हैं ! क्योंकि हम जिस ब्रह्मांड में रहते हैं उस ब्रह्मांड की स्थिति भी *भगवत्कृपा* से ही हो वेदव्यास जी महाराज श्रीमद्भागवत में लिखते हैं:--
*द्रव्यं कर्म च कालश्च स्वभावो जीव एव च !*
*यदनुग्रहत: सन्ति न सन्ति यदुपेक्षया !!*
(श्रीमद्भागवतमहापुराण/२/१०/१२)
*अर्थात्:-* द्रव्य , कर्म , काल , स्वभाव और जीवादि भगवद्नुग्रह *भगवत्कृपा* के बल से ही स्थित है , यदि भगवान थोड़ी भी उपेक्षा कर दें तो कुछ भी शेष नहीं रह जायेगा ! *भगवत्कृपा* की याचना प्रत्येक मनुष्य को करनी चाहिए ! क्योंकि हमारे वेदों ने भी *भगवत्कृपा* की याचना की है !:--
*अयुतो$हमयुतो म आत्मायुतं मे ,*
*चक्षुरयुतं मे श्रोत्रमयुतो मे !*
*प्रा$युतो मे$पानो$युतो मे ,*
*व्यानो$युतो$हं सर्व: !!*
(अथर्ववेद १९/५१/१)
*अर्थात्:-* हे प्रभु परमेश्वर मैं अनिन्द्य (प्रसंशित) बनूँ ! मेरी आत्मा अनिन्द्य रहे और मेरे चक्षु , श्रोत्र , प्राण , अपान तथा व्यान भी अनिन्द्य रहे ! इस संसार में हर व्यक्ति निर्भय रहना चाहता है इस निर्भरता को प्राप्त करने के लिए *भगवत्कृपा* की याचना करते हुए इसी अध्याय में आगे लिखा गया है कि हे भगवन हमारे ऊपर आपकी ऐसी *भगवत्कृपा* हो कि हम:--
*अभयं मित्रादभयममित्रा-*
*दभयं ज्ञातादभयं पुरो य: !*
*अभयं नक्तभयं दिवा न: ,*
*सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु !!*
*अर्थात्:-* हे भगवन ! हमें मित्र से भय न हो , शत्रु से भी भय न हो , परिचित व्यक्तियों एवं सभी वस्तुओं से निर्भयता प्राप्त हो ! परोक्ष में भी हमें कभी कुछ भय न हो ! दिन में , रात में और सभी समय हम निर्भय रहे ! किसी भी देश में हमारे लिए कोई भय का कारण न रहे सर्वत्र हमारे मित्र ही मित्र हों ! प्रत्येक मनुष्य को प्रतिपल इसी *भगवत्कृपा* की याचना भगवान से करना चाहिए , क्योंकि इस संसार में मनुष्य इस प्रकार की सर्व सुलभ *भगवत्कृपा* की गंगा में गोते लगाकर ही अपने तन मन को पवित्र कर सकता है ! *भगवत्कृपा* के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है जो मनुष्य को सब कुछ प्रदान कर सके !
अतः प्रेम से बोलो :--
*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*