*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए भगवान की शरण में जाना पड़ेगा ! बिना भगवान की शरण ग्रहण किये *भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त हो सकती ! अनेकों लोग लक्ष्मी जी (धन) को प्राप्त करने के लिए अनेक व्रत , अनुष्ठान एवं पूजा पाठ करते रहते हैं उनकी इच्छा होती है कि लक्ष्मी जी की कृपा उन पर बनी रहे ! वह शायद यह भूल जाते हैं कि जब तक *भगवत्कृपा* नहीं होगी , जब तक श्री नारायण का आश्रय नहीं लिया जाएगा तब तक लक्ष्मी जी की कृपा नहीं प्राप्त हो सकती ! लक्ष्मी जी ने स्वयं नारायण की प्रार्थना करते हुए कहा है:--
*या तस्य ते पादसरोरुहार्हणं ,*
*निकामयेत्साखिलकामलम्पटा !*
*तदेव रासीप्सितमीप्सितो$र्चितो ,*
*यद्भग्नयाच्ञा भगवन् प्रतप्यते !!*
(भागवत जी /५/१८/२१)
*अर्थात :-* लक्ष्मी जी कहती हैं :- हे मायाधीश ! हे देव !! मेरी प्राप्ति के लिए फलेच्छु देवता और असुर सभी लोग उग्र तप करते हैं परंतु आपके श्री चरणों के बिना कोई भी मुझे पा नहीं सकता क्योंकि मैं तो सदा त्वद्धृदया ही हूं ! आपमें ही मेरा ह्रदय सदा रहता है ! अतः आपको छोड़कर मैं कहीं क्षण भर के लिए भी नहीं जा सकती ! ऐसी स्थिति में जिसके यहां आप हैं वहां मेरा रहना अनायास ही सिद्ध हो जाता है ! इसीलिए लक्ष्मी जी की प्राप्ति के लिए नारायण की आराधना एवं *भगवत्कृपा* प्राप्त करना परम आवश्यक है !
*"हरिर्हि साक्षाद्भगवान शरीरिणामात्मा झषाणामिव तोयमीप्सितम्"*
कहने का अर्थ यह है कि *श्रीहरिकृपा* से ही प्राणियों में शूभ भावनाओं की दृढ़ता होती है , शुभ भावनाओं के दृढ़ होने पर ही स्थिर विवेक , विज्ञान , प्राणिमात्र के प्रति भगवद्भाव जागृत होता है ! यह भगवद्भाव उसी को प्राप्त होता है जो भगवान की शरण में होता है | उनकी प्राप्ति में कोई शील , तोष , बुद्धि आदि हेतु नहीं है ! भगवान के तोष का हेतु उच्चकुल में जन्म , सौभाग्य , मनोहर वाक् , बुद्धि , अति सुंदर आकृति आदि नहीं है ! सदैव एक ही मंत्र याद रखना चाहिए कि हमें भगवान की शरण में जाना है तभी *भगवत्कृपा* प्राप्त हो पाएगी ! तन मन धन सब कुछ भगवान को समर्पित करते हुए भगवान से बंदना करनी चाहिए , प्रार्थना करनी चाहिए कि हे भगवन :--
*शरण में आये हैं हम तुम्हारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
*सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
*न हम में बल है, न हम में शक्ति !*
*न हम में साधन, न हम में भक्ति !!*
*तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
*प्रदान कर दो महान शक्ति !*
*भरो हमारे में ज्ञान भक्ति !!*
*तभी कहाओगे ताप हारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
*जो तुम पिता हो, तो हम हैं बालक !*
*जो तुम हो स्वामी, तो हम हैं सेवक !!*
*जो तुम हो ठाकुर, तो हम पुजारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
*भले जो हैं हम तो हैं तुम्हारे !*
*बुरे जो हैं हम तो हैं तुम्हारे !!*
*तुम्हारे हो कर भी हम दुखारी ,*
*दया करो हे दयालु भगवन !*
इस प्रकार मन , वचन , कर्म से भगवान की शरण ग्रहण करने पर ही *भगवत्कृपा* प्राप्त हो सकती , क्योंकि भगवान को दैन्य भाव से अधिक और कोई भाव प्रसन्न नहीं कर सकता !