अयोध्या पर भगवान की *विशेष भगवत्कृपा* हुई क्योंकि वहां पर परमात्मा श्री राम का अवतार हुआ ! श्री राम कौन है ???:---
*रमते हैं रोम रोम में श्रीराम वही है !*
*व्यापक है शब्द ब्योम में श्री राम वही है !!*
श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम है , *श्री राम परम कृपालु हैं* निस्सीम करुणामय हैं उनके सुकोमल हृदय में *कृपा* सदैव झलकती रहती है ! दीन हीन आर्त्तजनों पर द्रवित चित्त रहना उनका सहज स्वभाव है ! केवल श्रीराम ही कारण रहित कृपालु स्वामी है ! जड़-पाषाण , सर्व साधनहीन अहिल्या पर भी *कृपा करना* उनके दीनवत्सल स्वभाव का परिचायक है ! गोस्वामी जी लिखते हैं :--
*अस प्रभु दीनबंधु हरि कारन रहित दयाल !*
*तुलसिदास सठ तेहि भजु छांड़ि कपट जंजाल !!*
(मानस)
श्री राम परम उदार हैं वह दीनजनों पर स्वाभाविक रूप से द्रवित होकर उनका दुख दूर कर देते हैं ! उनके सामान *कृपालु एवं भगवत्कृपा बरसाने वाला* उदार व्यक्तित्व शायद ही देखने को मिले :----
*ऐसो को उदार जग माही !*
*बिनु सेवा जो द्रवै दीन पर ,*
*राम सरिस कोउ नाहीं !!*
(विनय पत्रिका)
अनंत , अखंड , संपूर्ण , ऐश्वर्य , बल , विद्या , वीर्य , पराक्रम , लक्ष्मी और वैराग्यादि गुणगण के सागर भगवान में यदि *कृपा* ना होती तो हमारे जैसे छोटे जीव कोटि-कोटि कल्पपर्यन्त साधन करके मर जाते और प्रभु की प्राप्ति सुदुर्लभ ही रहती ! कारण यह है :---
*यद्ब्रह्मकल्पनियुतानुभवे$प्यनाशं ,*
*तत्किल्विषं सृजति जन्तुरिह क्षणार्धे !!*
(श्रीवैकुण्ठस्तव)
*अर्थात :-* जो लाखों हजारों ब्रह्मकल्पपर्यंत निरंतर भोगने पर भी नष्ट हो न सके , इतना बड़ा पाप जीव अाधे क्षण में उपार्जन कर लेता है ! ऐसे अधम पतित जीवों पर :--
*नाभुक्तं क्षीयते कर्मं कल्पकोटिशतैरपि"*
यह न्याय लागू कर दिया जाय तो उनकी क्या दशा होगी ? उनके लिए सर्वतंत्र , स्वतंत्र , सर्वेश्वर को भी द्रवित करने वाली कोई महान शक्ति चाहिए जो दीन हीनों का परित्राण कर सके ! वेद , शास्त्र , आचार्य तथा संतो ने उस महासमर्था शक्ति का नाम *भगवत्कृपा* रखा है ! यथा :--
*रक्षणे सर्वभूतानामहमेव परो विभु: !*
*इति सामर्थ्यसंधानं कृपा सा परमेश्वरी !!*
(भगवद्गुणदर्पण)
*अर्थात:-* मैं परात्पर प्रभु अशेष जीव मात्रों का संरक्षण करने में परम समर्थ हूँ ! इस प्रकार के गुण का अनुसंधान कराने वाली *पारमेश्वरी शक्ति कृपा ही है !कृपा के समान तो कृपा ही है !* उस *कृपा के बिना* वे परमेश्वर निरंजन - निराकार की बने रहते ! यही नहीं उनके समस्त सद्गुण भी महत्वहीन हो जाते ! उनका दिव्य धाम सूना ही रहता ! वे दीन-हीनों को क्यों चाहते और आर्त्तजन भी उनका ही द्वार क्यों खटखटाते ? *यह कृपा देवी की ही अद्भुत सामर्थ्य है जो अनंत -;विभूतिनायक भगवान भी भक्त पराधीन बन जाते हैं !* उनका *करुणानिधान* कितना प्रिय नाम है ! प्रभु के अनंत कोटि नामों में श्री जनक किशोरी जी को यही नाम अत्यंत प्रिय है ! वह अपने प्राण धन प्रियतम लोकललाम , नयनाभिराम प्रभु श्री राम को इसी प्रिय नाम से स्मरण करती हैं ! यही कारण है कि श्रीराम के अंतरंग प्रिय परिकर श्री मारुति नंदन जी ने श्री किशोरी जी का विश्वास और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यही कहा था :--
*रामदूत मैं मातु जानकी !*
*सत्य सपथ करुणानिधान की !!*
(मानस)
यही कहकर हनुमान जी ने माता जानकी आत्मीय भाव उपलब्ध किया था ! वेद की ऋचाएँ *भगवत्कृपा* प्राप्ति की प्रार्थनाओं से भरी पड़ी है ! उपनिषदें , शास्त्र तथा पुराण *भगवत्कृपा* की कथाओं को कहते थकते नहीं है ! देवर्षि , ब्रह्मर्षिगण , संत , महात्मा भगवद्भक्ति वृद्धि के लिए , *भगवत्कृपा* को प्राप्त करने की लालसा करते हैं :---
*ऐश्वर्यश्रवणाद् भक्तिरुत्पन्नापि न वर्द्धते !*
*विना गुणानुसंधानाद् भगवत्पादपद्मयो: !!*
*तस्माद् गुणीनुसंधानं कर्तव्यं भक्तिसिद्धये !!*
(भगवद्गुणदर्पण)
*अर्थात :-* प्रभु के ऐश्वर्य का श्रवण करने से भक्ति तो अवश्य उत्पन्न हो जाती है परंतु जब तक प्रभु के कृपा , दया , करुणादि माधुर्य गुणों का अनुसंधान न किया जाय तब तक उनके श्री चरण कमलों में निरंतर प्रेम की वृद्धि नहीं होती ! इसलिए भक्ति की प्राप्ति एवं वृद्धि के लिए दीन हीन स्वसामर्थ्य का सर्वथा अभाव मानने वाले और प्रभु प्रेम प्राप्ति की सच्ची लगन से युक्त भक्तों को नित्य निरंतर उनके मधुर गुणों का चिंतन अवश्य करते रहना चाहिए ! तभी *भगवत्कृपा* की प्राप्ति की जा सकती है !