जब तक साधक को पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक ना तो *भगवत्कृपा* प्राप्त होगी और ना ही भगवान का दर्शन ! अनेकों साधक पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं परंतु उनको ना तो *भगवत्कृपा* का अनुभव हो पाता है और ना ही भगवान के दर्शन ही हो पाते हैं यदि पूर्ण विश्वास है और लक्ष्य पर अडिग रहे तो यह असम्भव नहीं है ! यह पूर्ण विश्वास ही कि ५ वर्ष के बालक ध्रुव को साक्षात नारायण के दर्शन हो जाते हैं ! जिस समय अपनी माता सुरुचि के द्वारा अपमानित होकर बालक ध्रुव अपनी मां सुनीति के पास पहुंचे तो माँ ने एक ही बात कहीं कि :- हे बेटा !
*जब पिता की गोद मिली न तुझे ,*
*तो परम पिता की गोद में जाओ !*
*संसार के नाते हैं व्यर्थ सभी ,*
*बेटा प्रभु से संबंध बनाओ !!*
*जिनकी करुणा से जगत पलता ,*
*उन करुणाकर की करुणा को पाओ !*
*"अर्जुन" माया के प्रपंच त्याग ,*
*बेटा तुम बस श्री हरि को ही ध्याओ !!*
(स्वरचित)
मैया सुनीति के द्वारा कही हुई बात को ५ वर्ष के बालक ध्रुव ने अपने हृदयं में धारण कर लिया और अपनी मैया की सात परिक्रमा करके पूर्ण विश्वास के साथ *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए नगर से बाहर निकल पड़ा ! देवर्षि नारद जी ने देखा कि छोटा सा बालक परमपिता की गोद में बैठने के लिए निकल पड़ा है तो उसको रोकने के लिए उसके आगे आ गए ! नारद बाबा ने बहुतेरा समझाने का प्रयास किया परंतु बालक अपने मां के द्वारा कहे वचन पर पूर्ण विश्वास के साथ अडिग बना रहा जब नारदजी ने देखा कि बालक का विश्वास अडिग है तो परम प्रसन्नता के साथ उसको द्वादश अक्षर मंत्र की दीक्षा दी और बता दिया कि बेटा यमुना के किनारे मधुबन में चले जाओ वहीं पर तुमको भगवान प्राप्त होंगे ! नारद जी के द्वारा बताए गए मधुबन में पहुंचकर के बालक यमुना के तट पर अपनी तपस्थली बनाई
*यमुना तट पहुंचे कुंवर , किया वहां स्नान !*
*दृढ़ इच्छा से कर रहे , नारायण का ध्यान !!*
(स्वरचित)
५ वर्ष का बालक ध्रुव *भगवत्कृपा* प्राप्ति के लिए नारद जी के बताए हुए निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच कर यमुना जी में स्नान करके एक वृक्ष के तले नारद जी के द्वारा बताए गए स्वरूप को अपने हृदय में बसाकर उन्हीं के द्वारा प्राप्त द्वादश अक्षर मंत्र का जप करने लगा ! पूर्ण विश्वास है कि हमको *भगवत्कृपा* अवश्य प्राप्त होगी ! *पिता ने गोदी में नहीं बैठाया है तो परमपिता हमको अपनी गोद में अवश्य बैठायेंगे !* यही मन में निश्चय करके पूर्ण विश्वास के साथ बालक ध्रुव कठिन तपस्या करने लगा ! उसकी तपस्या के कुछ दृश्य दिखाने का प्रयास कर रहा हूं :--
*पहले महीने में त्रिरात्रि व्रत प्रारंभ करके ,*
*कैथ - बैर खाके नारायण को पुकारा है !*
*दूसरे महीने में इकट्ठे छ: दिन बैठे ,*
*घास और पत्र पर ही कर लिया गुजारा है !*
*तीसरा महीना लगा नौ दिन का व्रत लेके ,*
*मात्र जल पीते घास - पत्र भी बिसारा है !*
*चौथे महीने में बस हवा का आधार लिया ,*
*सीधे बारह दिन पर नयन उघारा है !!*
(स्वरचित)
*पहले महीने* में कैथा और बैर खा करके तपस्या करने बैठा बालक *तीन रात* व्यतीत करके तब उठा ! *दूसरे महीने* में *६ दिन तक लगातार* तपस्या की और जब छठवें दिन उठा तो घास पत्र खा करके पुनः बैठ गया ! *तीसरे महीने* में घास पत्र का भी त्याग कर दिया और केवल जल पीकर *९ दिन के लिए* बैठ गया ! जब *चौथा महीना* लगा तो बालक ध्रुव ने जल का भी त्याग कर दिया और हवा पीकर के *१२ दिन तक लगातार* भगवान के नाम का जप किया ! जब पांचवा महीना लगा तो :--
*पञ्चमे मास्यनुप्राप्ते जितश्वासो नृपात्मज: !*
*ध्यायन् ब्रह्म पदैकेन तस्थौ स्थाणुरिवाचल: !!*
*सर्वतो मन आकृष्य हृदि भूतेम्द्रियाशयम् !*
*ध्यायन्भगवतो रूपं नाद्राक्षीत्किंचना परम् !!*
(श्रीमद्भागवत)
*अर्थात्:-* पांचवे महीने में बालक ध्रुव ने अपने श्वांस को भी जीत लिया और एक पैर पर खड़े होकर के ब्रह्म का ध्यान करने लगा ! उसके ऐसा करने से चराचर जगत में सबका मन उसकी ओर आकृष्ट हुआ ! पूर्ण विश्वास था बालक को कि हमको *भगवत्कृपा* प्राप्त होगी उसने दाहिने पैर के अंगूठे पर पूरे शरीर के भार को रोक लिया और प्राण वायु को खींच लिया ! जब बालक ने अपनी प्राण वायु को को खींचा तो समस्त सृष्टि की श्वांस रुक गई और *भगवत्कृपा* बरसाने के लिए साक्षात् नारायण को आना पड़ा ! *भगवान ने आकर के बालक ध्रुव को अपने गोद में बैठा लिया* बालक पर *भगवत्कृपा* बरस पड़ी ! यदि बालक को अपनी माता के वचनों पर पूर्ण विश्वास ना होता तो उसको *भगवत्कृपा* कदापि नहीं प्राप्त हो पाती ! *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए आयु कभी भी बाधा नहीं बनती ! जब भी भगवान के चरणों में मन लग जाए तभी *भगवत्कृपा* प्राप्त की जा सकती है परंतु *भगवत्कृपा* प्राप्ति के लिए साधक के मन में *भगवत्कृपा* एवं भगवान के प्रति पूर्ण विश्वास का होना परम आवश्यक है !