प्रायः लोग दैनिक पूजा पाठ करके , कुछ अनुष्ठान करके , भगवान का नामजप करके स्वयं को भगवान का भक्त मानने लगते हैं और जब उन पर कोई संकट आता है , कोई कष्ट आता है तो वह संसार में यही कहने लगते हैं कि जब संकटों का ही सामना करना है तो पूजा पाठ करने से क्या फायदा है ! जब भगवान की पूजा करने पर भी *भगवान की कृपा* नहीं मिल रही है तो इस से अच्छा है कि भगवान का ध्यान न किया जाय ! यह कोई नियम नहीं है कि भगवान के भक्तों पर कभी कोई सांसारिक कष्ट नहीं आएगा , या उसे सांसारिक सुख सर्वथा ही न प्राप्त होगा ! समय-समय पर दोनों ही (दुख - सुख) कर्मानुसार मिलते रहते हैं परंतु दोनों में ही *भगवत्कृपा* का विलक्षण समावेश रहता है ! इस *कृपा* का यथार्थ दर्शन उन्हीं भाग्यवानों को होता है जो सुख दुख में समचित्त होते हैं और जो परमात्मा से कुछ भी सांसारिक वस्तु चाह कर उसकी अपार महिमा और अपनी भक्ति में दोष नहीं आने देते ! यदि मनुष्य *भगवत्कृपा* के इस रहस्य को जान ले तो उसे किसी भी घटना - दुर्घटना पर कभी कोई कष्ट ही ना हो ! *भगवत्शक्ति असीम है* आवश्यकता है उसे जानने की ! इसीलिए कहा है :--
*जीवन सफल जग जन्म भी ,*
*भगवत्कृपा यदि मान ले !*
*भूले नहीं भटके नहीं ,*
**यदि शक्ति यह पहचान ले !!*
*तो तीव्रतर फिर तीव्रतम ,*
*विकलता प्रभु मिलन की !*
*अनुभूति भी हो मधुर शीतल ,*
*बिरह के उस ज्वलन की !!*
*हो आस और विश्वास भी ,*
*प्रभु कृपा के सत्ततत्व का !*
*वह बीज है वह वृक्ष है ,*
*इस सृष्टि के मातृत्व का !!*
*हो ज्ञात या अज्ञात में ,*
*'हिमस्पर्श' शीतल ही करें !*
*त्यों ही अदृष्ट कि दृष्ट हो ,*
*हरि कृपा मंगल ही भरे !!*
*अर्थात :-* इस संसार में उसका ही जीवन सफल है जो *भगवत्कृपा* को जान लेता है ! *भगवत्कृपा* को पहचान लेता है , और जब *भगवत्कृपा* का ज्ञान हो जाता है तो भगवान से मिलने की इच्छा तीव्र हो जाती है ! आशा और विश्वास के साथ मनुष्य यह जान जाता है कि वह ईश्वर ही इस संसार का वृक्ष है और वही बीज है ! जिस प्रकार जाने - अनजाने में यदि बर्फ का स्पर्श कर लिया जाए तो शीतलता ही मिलती है उसी प्रकार दिखाई पड़े चाहे ना दिखाई पड़े *भगवत्कृपा* मंगल ही मंगल करती है !
*भगवत्कृपा* प्राप्त करने का मूल साधन है प्रेम ! भक्त अपनी भक्ति और प्रेमी अपने प्रेम से क्या चाहता है ? वही भक्ति और प्रेम ! वास्तव में ऐसे भक्तों के हृदय में *भगवत्प्रेम* के प्रति प्रबल आकर्षण होता है कि वह उसको पाने के लिए किसी भी विपत्ति की सूचना पर भी उसको विपत्ति नहीं मानते ! *जो कभी संसार की ओर ताकता है तो कभी परमात्मा की ओर वह पूरा प्रेमी है ही नहीं !* उसकी अभी *भगवत्प्रेम* की प्रबल उत्कंठा नहीं हुई है ! संसार रहे या जाय , घर उजड़े या बसे , किसी बात की भी परवाह नहीं होती ! भक्त जब भक्ति के बस में होकर प्रेमी बनता है तो उसके मुख से एक ही वचन निकलता है :--
*हमारे नाथ हैं रघुनाथ ,*
*हमें किस बात की चिंता !*
*चरण में रख दिया जब माथ ,*
*तो फिर किस बात की चिंता !!*
*ना खाने की न पीने की मरने की न जीने की !*
*दिया हाथों में जब निज हाथ ,*
*तो किस बात की चिंता !!*
*किया करते हो तुम हर बात में बिन बात की चिंता !*
*तेरे स्वामी को रहती है ,*
*तेरे हर बात की चिंता !!*
इस प्रकार जब मनुष्य संसार के अनेक प्रपंच से ऊपर उठकर स्वयं को भगवान के हाथों में सौंप देता है तब उस पर *विशेष भगवत्कृपा* होती है ! यही सच्ची लगन है ! जैसा कि आज देखने को मिलता है कि थोड़ा सा कष्ट मिलने पर कुछ लोग तो अपने घर के मंदिर ही समाप्त कर देते हैं , पूजा पाठ करना बंद कर देते हैं *ऐसे लोगों को विचार करना चाहिए कि :- माता अपने छोटे से बालक को बार-बार डांटती है , मारती है परंतु फिर भी वह बालक अपनी उसी माता की गोद में घूमता है और जब वह उसे दुलार करती है तब भी वह उसके गोद से नीचे नहीं उतरता यहां तक कि कैसी भी परिस्थिति हो माता की गोद के अलावा बालक को कहीं भी चैन नहीं पड़ता* ! इसी प्रकार से भक्त भी अपने भगवान को छोड़कर कहीं भी विश्राम नहीं पाता वह चाहे मारे , (कष्ट दे) चाहे प्यार करें (सुख दे) भक्त एक क्षण भी उसके बिना नहीं रहना चाहता ! संभव है कि भक्त पर विपत्तियों के बादल चारों ओर से मंडराते रहे यह भी संभव है कि उसका समस्त जीवन केवल सांसारिक विपत्तियों में ही बीते और एक क्षण भर के लिए भी विपत्ति का अभाव ना हो फिर भी उसका मन उस प्रेमानंद में इतना मगन रहता है कि उसको भूल कर भी *भगवत्कृपा* के संबंध में कभी किंचित भी संदेह नहीं होता , क्योंकि यदि *भगवत्कृपा* पर संदेह हो गया तो भक्त के भक्ति में कमी मान ली जाती है ! इस प्रकार विषम से विषम परिस्थिति में भी *भगवत्कृपा* का आश्रय नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि इतना विश्वास होना चाहिए कि *भगवत्कृपा* से जो भी हो रहा है सब ठीक ही हो रहा है और जो होगा वह भी ठीक ही होगा , क्योंकि समस्त प्राणिमात्र पर निरंतर *भगवत्कृपा* बरस रही है