सनातन धर्म के सभी धर्म शास्त्रों में *भगवान की कृपा* के दर्शन सर्वत्र होते हैं ! *भगवत्कृपा* कई रूपों में मानव मात्र के कल्याण के लिए निरंतर बरसती दिखाई पड़ती है ! भगवान को *कृपासागर , कृपामूर्ति आदि नामों से* पुकारा जाता है ! *भगवत्कृपा* के विषय में जानने के लिए सर्वप्रथम हमें *कृपातत्व पर विमर्श करना चाहिए !* क्योंकि *कृपातत्व* ही सर्वत्र व्याप्त है वह हमको *भगवत्कृपा , हरिकृपा , कृष्णकृपा , गुरुकृपा , मातृकृपा आदि* के रूप में प्राप्त होती है ! भगवान को *कृपामूर्ति* कहते हुए लिखा गया है :--
*वन्दे$हं सीतारामौ परमेश्वरौ प्रकृतिपुरुषौ कृपामूर्तीं ब्रह्मणी*
*कृपा* शब्द कृप धातु से बना है ! *कृपा* का अर्थ होता है :- द्रवीभूत होना , पसीजना , पिघलना , कठोर से कोमल होना ! कृपा में ही दया का बीज होता है !
*धरम कि दया सरिस हरिजाना*
कृपा में दया झलकती है ! कृपालु ही दयालु होता है ! परमात्मा को परम कृपालु और दीनदयालु कहा गया है ! भगवान कृपा के मंदिर हैं , दया के सागर हैं ! भगवान के इस सहज गुण की अनुभूति जिसे है उसे यह एकराट् नमस्कारों की आहुति दे रहा है ! *कृपा* शब्द प्रत्येक धर्मग्रंथ में देखने को मिलता है , परंतु सनातन धर्म में धर्मग्रंथों की इतनी अधिक संख्या है कि सब को पढ़कर उसमें से *कृपा* शब्द को चुनना सागर से मोती निकालने के समान है ! *इस संदर्भ में गहन विचार विमर्श करने के बाद हमें कविकुल शिरोमणि परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी की कालजयी रचना श्री मानस जी का ध्यान आया !* क्योंकि मानस ऐसी रचना है जिसमें
*चारिउ वेद पुराण अष्टदश !*
*छओ शास्त्र सब ग्रंथन को रस !!*
*अर्थात:-* मानस को पढ़ने के बाद कोई भी ग्रंथ ऐसा नहीं है जिसके भावों को ना समझा जा सके ! *भगवत्कृपा* से ही कृपा शब्द के अनुसंधान के संदर्भ में जब *श्रीरामचरितमानस* का आश्रय लिया एवं मानससमुद्र का मंथन किया तो हमको मानस जी में अनेक रूपों रूपों में कृपा के दर्शन हुए जब इस मानस में और डुबकी लगाने का प्रयास किया तो कृपा से संबंध रखने वाले :- *कृपा , कृपाँ , कृपालु , कृपायतन , सुकृपाँ , कृपानिकेत , कृपानिकेता , कृपानिधि , कृपासिंधु , कृपालु , कृपानंद , कृपाला , कृपानिधान , कृपानिधाना , कृपारूप , कृपानिकेत , कृपाकर , कृपापात्र , कृपादृष्टि , कृपाविलोकनि , कृपाकटाक्ष आदि शब्द प्रयुक्त होते मिले !* हम यह कह सकते हैं कि मानस में हमको कृपा के नाना रत्न प्राप्त हुए और कुल मिलाकर संपूर्ण अध्ययन करने के बाद कृपा एवं कृपा पर शब्दों की संख्या श्रीरामचरितमानस के *बालकांड में ४४* अयोध्या कांड में २७ , *अरण्यकांड में २२ ,* किष्किंधा कांड में १२ , *सुंदरकांड में २७* उत्तरकांड में ७३ पाई गई ! *इस प्रकार कृपा से संबंधित कुल २५४ रत्न हाथ लगे !* सबकी व्याख्या कर पाना तो सम्भव नहीं है परंतु उन्हीं में से कुछ रत्नों को हम अपनी इस श्रृंखला की आगे के भाव में प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे ! यह कार्य भी *भगवत्कृपा* से ही सम्भव हो सकेगा !