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भगवत्कृपा - भाग - १६६ (एक सौ छियासठ )

17 अक्टूबर 2022

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गोस्वामी तुलसीदास जी की पवित्र दैवी अनुभूति में श्री राम रम गए ! वे उनके हृदय और तत्व प्रेरित अप्रतिहत वाणी के अधिष्ठान हैं ! उनके सात्विक भावों की साकार सजीव मूर्ति हैं श्रीराम ! जिनके अंग में अनुग्रह का भाव प्रतिष्ठित है ! तुलसीदास जी कह पड़ते हैं :--

*है तुलसिहिं परतीति एक प्रभु मूरति कृपामई है*

                   (विनय पत्रिका)

वह सतत प्रवाहशील कारुण्य-जल एक स्थान पर कैसे ठहर सकता है ! वह चाहे या ना चाहे वह तो प्रभावित होगा ही प्रवाह उसका धर्म जो है ! अगुन , अरूप , अलख परमात्मा की *विप्र धेनु सुर संत हित* दाशरथि (श्री राम) बनने के पश्चात उनका मूलभूत गुण अनुग्रह कहां प्रतिष्ठित है ! देखिए:---

*अनुग्रहाख्यहृत्स्येन्दुसूचकस्मितचन्दिक:*

            (अध्यात्म रामायण)

इसी को सरल करते हुए गोस्वामी जी मानस में लिखते हैं  :--

*हृदयँ अनुग्रह इंदु प्रकासा !*
*सूचत किरण मनोहर हासा !!*

                  (मानस)

लीला जगत में श्रीराम - स्वभाव के मूल में यही *कृपा शक्ति* कार्यशील रही है !  यथा:---

*राम भलाई अापनी भल कियों न काको !* 
*जुग-जुग जानकिनाथ को जग जागत साको !!*

                    (विनय पत्रिका)

इसी शक्ति की अजस्रता ने राम को प्रभु क अनेक नामों में श्रेष्ठ सिद्ध कराया !  चंद्रमा उल्लास शांति और शीतलता प्रदायक है ऐसा चंद्रमा अपने प्रतीकार्थ में भगवान श्री राम के हृदय में बाल्यावस्था से ही उदित हो गया था जिसकी चंद्रिका उनकी मधुर स्मित एवं हास्य में सुव्यक्त होती रहती थी ! श्रीराम की क्षण-क्षण नूतन अनुग्रह पूर्ण राका के समीप आने वाली सृष्टि की प्रत्येक वस्तु चाहे वह जड़ हो या चेतन कृतकृत्य हुए बिना नहीं रह पाई ! *यह उनकी कृपा का ही प्रभाव है* उनकी स्वभावजन्य कृपालुता ने अद्वितीय भूमिका सफल निर्वाह किया है ! श्री राम ने जहां अपने सुहृदों पर कृपा की , उनकी प्रशंसा की वहीं लोकप्रपीडक दुष्ट जीवो को भी अपनाया ! मित्रों और शुभचिंतकों के प्रति तो प्रत्येक व्यक्ति सद्भाव रख सकता है परंतु शत्रु के प्रति सहृदयता का बर्ताव करने वाले तो भगवान श्रीराम ही हैं !  जिनके स्वभाव के प्रति अवधेश दशरथ जी की धारणा थी कि :---

*जासु सुभाउ अरिहिं अनुकूला*

                  ( मानस )

सिर्फ दशरथ जी ही नहीं बल्कि यह तो भरत जी को भी विश्वास था कि:--

*अरिहुक अनभल कीन्ह न रामा*

                  ( मानस)

 मंथरा की कुमंत्रणा के परिणाम स्वरूप कैकेयी के हृदय में प्रतिशोध की ज्वाला धधक रही थी जिसकी आंच से महाराज दशरथ का कोमल हृदय रात भर जलता रहा ! प्रातः काल सबकुछ जानने के बाद भी कृपा वत्सल भगवान आकर माता के कैकेयी से पूछते हैं :---

*मोहि कहु मातु तात दुख कारन !*
*करिअ जतन जेहि होइ निवारन !!*

                 ( मानस )

*अर्थात:-*  हे माता मुझे पिता के दुख का कारण बताओ जिससे वह यत्न किया जाय जिसके द्वारा उसका निवारण हो ! और कैकेयी ने सारा कारण बता डाला ! जो साक्षात कठोरता को भी व्याकुल कर देने वाले कहे गए हैं , परंतु भगवान के हृदय की तो बात ही निराली है ! *माता पर कृपा की* और उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर लिया ! यह भगवान की *अहैतुकी कृपा* ही है !
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रचनाएँ
!! भगवत्कृपा हि केवलम् !!
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इस संसार में जितने भी क्रियाकलाप हो रहे सब भगवान की कृपा से ही हो रहे हैं ! बिना भगवत्कृपा के कुछ भी हो पाना संभव नहीं है ! इसलिए चराचर जगत में भगवत्कृपा का दर्शन करते हुए इस जीवन एवं जीवन में घटने वाली समस्त घटनाओं को भगवत्कृपा का प्रसाद मानते हुए हमें स्वीकार करना चाहिए
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भगवत्कृपा - भाग - एक

20 मई 2022
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हम इस सुंदर संसार में रहते हैं , अपने मनमाने क्रियाकलाप करते हैं ! संसार को इतना सुंदर किसने बनाया ? यह विचार करने वाली बात है कि यह सारा संसार भगवान की कृपा अर्थात *भगवत्कृपा* से ही बना है ! यदि *भगव

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भगवत्कृपा - भाग - २ (दो)

20 मई 2022
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इस संसार में स्वाभाविक रूप से सभी प्राणियों पर सदैव *भगवत्कृपा* रहती है , क्योंकि वह परमात्मा है ही ऐसा ,  जिसके लिए कहा गया है :- *जो सहज कृपाला दीनदयाला* जो सहज भाव से दीनों पर दया करते हैं और

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भगवत्कृपा - भाग - ३ (तीन)

20 मई 2022
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बिना *भगवतकृपा* के इस संसार में कुछ भी नहीं हो सकता , कोई भी सिद्धि करनी हो , कुछ प्राप्त करना तो उसके लिए *भगवत्कृपा* का होना बहुत आवश्यक है क्योंकि *भगवतकृपा* के बिना इस संसार में पत्ता तक नहीं हिलत

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भगवत्कृपा - भाग - ४ (चार)

20 मई 2022
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*भगवत्कृपा* इस संसार में सबके लिए समान रूप से होती है परंतु इस दिव्य *भगवत्कृपा* की अनुभूति सबको नहीं हो पाती ! *कृपा की अनुभूति किसको होती है ?* इसके विषय में यदि विचार किया जाए तो यह समझ में आता है

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भगवत्कृपा -भाग - ५ (पाँच)

21 मई 2022
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भगवान कितने *कृपालु* हैं उनकी *कृपा* कैसी है ! यह कोई कैसे बतला सकता है ! वह तो *कृपामूर्ति* हैं !  *उनमें कृपा ही कृपा है* वहां न्याय नहीं है , इंसाफ नहीं है यही कहना पड़ता है !  उनकी *कृपाशक्ति* इतन

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भगवत्कृपा - भाग - ६ (छ:)

21 मई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए किसी विशेष साधन की आवश्यकता नहीं होती , क्योंकि *भगवत्कृपा* साधन साध्य नहीं होती बल्कि:-- *यमेषैव वृणुते तेन लभ्य:* जिन पर सर्वेश्वर श्यामसुंदर स्वयं *कृपाकटाक्ष*

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भगवत्कृपा - भाग - ७ (सात)

21 मई 2022
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इस संसार में जन्म लेने के बाद प्राय: मनुष्य को शिकायत होती है कि हमने जीवन भर पुण्य किया , धर्म किया , कर्म किया परंतु हमें *भगवतकृपा* नहीं प्राप्त हुई , न तो भगवान की झलक ही दिखाई पड़ी ! ऐसे अनेक लोग

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भगवत्कृपा - भाग - ८ (आठ)

21 मई 2022
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*भगवत्कृपा* बहुत ही गूढ़ है इसे प्राप्त करने के लिए किसी भी मार्ग से भगवान की भक्ति करने की आवश्यकता होती है ! भगवान ने अपनी *कृपा* से अनेकों पापियों का उद्धार किया है परंतु इन पापियों ने भी जाने अनजा

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भगवत्कृपा - भाग - ९ (नौ)

21 मई 2022
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समस्त सृष्टि में ब्रह्म एवं माया का ही विस्तार है ! ब्रह्म की अनुगामिनी माया सबको अपने वश में करके नचाती रहती हैं ! जहां ब्रह्म चराचर जगत में व्याप्त है वहीं माया के लिए भी लिखा गया है कि :-  *गो ग

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भगवत्कृपा - भाग - १० (दस)

21 मई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए भगवान की शरण में जाना पड़ेगा ! बिना भगवान की शरण ग्रहण किये *भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त हो सकती ! अनेकों लोग लक्ष्मी जी (धन)  को प्राप्त करने के लिए अनेक व्रत , अनुष्ठान ए

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भगवत्कृपा - भाग - ११ (ग्यारह)

21 मई 2022
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जीवन में हम अनेक प्रकार की प्रतियोगिताओं एवं परीक्षाओं से दो-चार होते रहते हैं प्रत्येक प्रतियोगिता एवं परीक्षा का सबसे पहले हमें नियम समझाया जाता है क्योंकि प्रत्येक प्रतियोगिता का नियम विशेष होता है

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भगवत्कृपा - भाग - १२ (बारह)

22 मई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि मनुष्य उच्च कुल में जन्म लेकर के सुंदर आकृति वाला हो ,  गुणवान हो , धनवान हो , बलवान हो या फिर बुद्धिमान हो *भगवत्कृपा* कभी गुणों का अर्थ नहीं ग्रह

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भगवत्कृपा - भाग - १३ (तेरह)

22 मई 2022
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सकल सृष्टि में चौरासी लाख योनियाँ हैं सब पर ही *भगवत्कृपा* बरसती रहती है ! परंतु मानव योनि पर तो *विशेष भगवत्कृपा* है ! विचार कीजिए कि यदि हम पर *विशेष भगवत्कृपा* न होती तो  पेड़ - पौधे या घोड़े - गधे य

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भगवत्कृपा - भाग - १४ - (चौदह)

22 मई 2022
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इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक मनुष्य *भगवत्कृपा* प्राप्त करना चाहता है | *भगवत्कृपा* तो सब पर निरंतर है , सभी अवस्थाओं में है , सभी स्थान पर है |  इस *भगवत्कृपा* का अनुभव हमारे पूर्वजों ने बह

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भगवत्कृपा - भाग - १५ (पन्द्रह)

23 मई 2022
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असीम *भगवत्कृपा* होने पर यह मानव शरीर मिला है ! इस मानव शरीर को पाने के बाद भी मनुष्य को इसकी उपयोगिता नहीं समझ में आती और मनुष्य विषय वासनाओं में फंसकर सब कुछ भूल जाता है ! यह शरीर मिलने के बाद ईश्वर

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भगवत्कृपा - भाग - १६ (सोलह)

23 मई 2022
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*भगवत्कृपा* कई रूपों में मनुष्य को प्राप्त होती है ! *गुरुकृपा , संत कृपा  हनुमत्कृपा आदि अनेक रूपों में यह मानव मात्र का कल्याण करती है !* सकल सद्गुण के आगार अंजनानंदन श्री हनुमान जी दया के धाम हैं !

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भगवत्कृपा - भाग - १७ (सत्रह)

24 मई 2022
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बहुत से लोगों का ऐसा मानना है कि जब *भगवान की कृपा* होती है तब धन ,  ऐश्वर्य , स्त्री - पुत्र , मान - कीर्ति और शरीर संबंधी अनेकानेक भोगों की प्राप्ति होती है ! जिन लोगों के पास भोगों का बाहुल्य है बस

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भगवत्कृपा -भाग १८ (अठारह)

24 मई 2022
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भगवान सदेव भक्तों की रक्षा के लिए ,  उनको अनेकों ताप ताप एवं रोगों से बचाने के लिए कष्ट दिया करते हैं ! यह उनकी *विशेष भगवत्कृपा* है जैसे किसी अबोध बालक के एक जहरीला फोड़ा हो जाय वह असहनीय वेदना में त

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भगवत्कृपा - भाग १९ (उन्नीस)

25 मई 2022
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जब मनुष्य पर दु:ख आ जाय तब यह समझना चाहिए कि यह *भगवत्कृपा* है ! क्योंकि सुख और दु:ख दोनों में *भगवत्कृपा* बराबर मिलती है ! परंतु लोग अपने अनुसार ही *भगवत्कृपा* का भी आंकलन करते है ! आज देखने को मिल र

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भगवत्कृपा - भाग - २० (बीस)

25 मई 2022
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इस जगत में आ करके भगवान के विषय में सुनकर प्रत्येक व्यक्ति भगवान का दर्शन करना चाहता है जबकि भगवान अनेक रूपों में संसार में व्याप्त हैं ! माता ,  पिता , गुरु के अतिरिक्त भगवान का एक रूप भी है *जिसे डॉ

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भगवत्कृपा - भाग - २१ (इक्कीस)

25 मई 2022
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प्रायः लोग दैनिक पूजा पाठ करके , कुछ अनुष्ठान करके , भगवान का नामजप करके स्वयं को भगवान का भक्त मानने लगते हैं और जब उन पर कोई संकट आता है , कोई कष्ट आता है तो वह संसार में यही कहने लगते हैं कि जब संक

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भगवत्कृपा - भाग २२ (बाईस)

26 मई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सबसे सरल साधन भगवान से प्रेम ! जो भगवान से प्रेम करता है वह यह नहीं देखता कि हमको सुख मिल रहा है कि दुख ! कैसी भी परिस्थिति हो उसके प्रेम में कमी नहीं आती ! जो ऐसा करता है

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भगवत्कृपा - भाग - २३ (तेईस)

26 मई 2022
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भगवान का प्रत्येक विधान मंगलमय होता है ! भगवान ने मनुष्य के हाथों कर्मों का अधिकार दे रखा है जो जैसा कर्म करता है उस पर उसी प्रकार की *भगवतकृपा* होती है ! कुछ लोग भगवान को अन्यायकारी अवश्य कह देते हैं

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भगवत्कृपा - भाग - २४ (चौबीस)

26 मई 2022
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भगवान की करुणा पर , उनके न्याय पर प्रत्येक व्यक्ति को विश्वास रखना चाहिए क्योंकि जहां विश्वास नहीं होता वहां फल नहीं प्राप्त होता ! जिस साधक को अपने बल - पुरुषार्थ पर भरोसा है , जो यह समझता है कि अपने

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भगवत्कृपा - भाग - २५ (पच्चीस)

27 मई 2022
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संसार में दो चीजें हैं पहला *ब्रह्म* दूसरा *ब्रह्मांड अर्थात संसार !* इन दोनों में विश्वसनीय कौन है ? किस पर विश्वास किया जाय और किस पर न किया जाय ? यह प्रत्येक मनुष्य को विचार करना चाहिए ! हमारे वेदो

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भगवत्कृपा- भाग - २६ (छब्बीस)

27 मई 2022
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मानव जीवन बड़ा उतार-चढ़ाव भरा होता है ! मनुष्य को कोई न कोई दुख तथा सुख होता रहता है ! पूरे जीवन काल में मनुष्य विभिन्न परिस्थितियों से होकर गुजरता है ! इन परिस्थितियों को देखकर मनुष्य समझता है कि ईश्

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भगवत्कृपा - भाग - २७ (सत्ताईस)

27 मई 2022
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सनातन धर्म में अध्यात्म का बहुत बड़ा महत्व है ! अध्यात्म के द्वारा ही आत्मा और परमात्मा का ज्ञान हो पाता है !  प्रत्येक व्यक्ति को आध्यात्मिक बनने का प्रयास करना चाहिए परंतु यदि मनुष्य आध्यात्मिक उन्न

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भगवत्कृपा - भाग - २८ (अट्ठाईस)

27 मई 2022
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संसार में निरंतर *भगवत्कृपा* बरस रही है परंतु हमारा ध्यान उधर जाता ही नहीं है ! हम *भगवत्कृपा* के दर्शन ही नहीं कर पाते ! हम भगवान की आज्ञा का पालन नहीं कर पाते , *भगवत्कृपा* की अवज्ञाु करते हैं , निर

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भगवत्कृपा - भाग - २९ (उनतीस)

27 मई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए भगवान की ओर बढ़ना पड़ेगा , अपना हाथ उनकी और बढ़ाना पड़ेगा ! जब हम अपना हाथ उनकी ओर बढ़ायेंगे तो वे दौड़कर हमारा हाथ पकड़ लेंगे क्योंकि भगवान स्वयं कहते हैं:- *ये यथा

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भगवत्कृपा - भाग - ३० (तीस)

27 मई 2022
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थोड़ा सा कष्ट आ जाने पर  लोग भगवान के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं और कहने लगते हैं कि भगवान के यहां न्याय नहीं है ! जबकि कष्ट मिलना भी *भगवत्कृपा* ही हैं ! जब मनुष्य को कष्ट मिले तो यह विचार करना चाहिए

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भगवत्कृपा - भाग - ३१ (इकतीस)

28 मई 2022
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यह कटु सत्य है कि *भगवतकृपा* के बिना प्राणी का कल्याण कदापि संभव नहीं है ! इस संसार पर *भगवान की कृपा* तो है ही किंतु इस लोक में सर्व विधि सर्वांगीण समुन्नति का एकमात्र साधन भी *भगवतकृपा* ही है ! उसके

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भगवत्कृपा - भाग - ३२ (बत्तीस)

29 मई 2022
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*भगवतकृपा* के महत्व का वाणी के द्वारा पूर्ण रूप से वर्णन किया जाना संभव नहीं है क्योंकि भगवान की दया का महत्व अपार है और वाणी द्वारा जो कुछ कहा जाता है वह थोड़ा ही होता है !  *भगवत्कृपा* के रहस्य को ज

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भगवत्कृपा - भाग - ३३ (तैंतीस)

29 मई 2022
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*भगवत्कृपा* का रहस्य समझ पाना इतना सरल नहीं है ! मन में अनेकों प्रकार की भ्रांतियां समाई हुई है जिनके कारण हम *भगवत्कृपा* को नहीं समझ पाते हैं ! कुछ लोग तो यहां तक कह देते हैं कि यदि समान रूप से सभी ज

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भगवत्कृपा - भाग - ३४ (चौंतीस)

29 मई 2022
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संसार में लोग सांसारिक पदार्थों को प्राप्त करने के बाद अपने ऊपर *विशेष भगवत्कृपा* मानते हैं ! भौतिक साधन इकट्ठे हो जाना *भगवत्कृपा* नहीं है !  *भगवत्कृपा* का रहस्य बड़ा ही गूढ़ है माया के द्वन्द- फंद

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भगवत्कृपा - भाग - ३५ (पैंतीस)

29 मई 2022
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हम चर्चा कर रहे हैं *भगवत्कृपा के रहस्य की* ! जबाँ तक अब तक जाना गया है उसके अनुसार *भगवत्कृपा रहस्य* को समझ पाना बहुत सरल नहीं है ! सत्य तो यह है कि मनुष्य को सुख और दुख में , किसी महान पुरुष और पापी

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भगवत्कृपा - भाग - ३६ (छत्तीस)

29 मई 2022
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संसार में भगवान को दयासागर कहा जाता है परंतु विचार कीजिए क्या यह उपमा उनके लिए पर्याप्त है ? शायद नहीं !  यह तो उनकी अपार कृपा का किंचित परिचय मात्र है ! समुद्र सीमाबद्ध है परंतु भगवान की दया असीम और

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भगवत्कृपा - भाग - ३७ (सैंतीस)

30 मई 2022
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काल चक्र निरंतर घूम रहा है बारंबार के आवागमन से भ्रान्त और क्लान्त जीव समूह संसार के दीर्घ पद पर अनिवार्य रूप से बढ़े चलेे जा रहे हैं ! ग्लानि शून्य आनंद अर्थात भूमासुख (ब्रह्मानंद) की खोज में ! लौकिक

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भगवत्कृपा - भाग - ३८ (अड़तीस)

30 मई 2022
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*भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए लोग अनेक प्रकार के विधान करते हैं , अनुष्ठान करवाते हैं , घंटों बैठकर जप किया करते हैं , भगवान नाम का स्मरण उच्चारण एवं कीर्तन किया करते हैं , परंतु उसे ऐसा लगता है कि य

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भगवत्कृपा - भाग - ३९ (उनतालीस)

30 मई 2022
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संसार में जन्म लेने के बाद लगभग सभी भगवान को प्राप्त करना चाहते हैं *भगवत्प्राप्ति* करने के लिए अनेकों उपाय भी किया जाता है , परंतु यह सत्य है कि साधन , संयम , तप , त्याग , वैराग्य के बल से *भगवत्प्रे

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भगवत्कृपा - भाग - ४० (चालीस)

30 मई 2022
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यह सारा संसार जहां तक दिखाई पड़ता है संपूर्ण सृष्टि *भगवत्कृपा* का ही फल है ! जगत में हम जो कुछ भी देखते , सुनते , समझते हैं उसके नियंता स्वयं भगवान हैं ! भगवान से ही यह सारा जगत ओतप्रोत है :-- *ईश

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भगवत्कृपा - भाग ४१ (इकतालीस)

2 जून 2022
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मनुष्य का सारा जीवन संपत्ति एवं विपत्ति के मध्य होकर व्यतीत होता है !  यदि धन प्राप्त हो गया , ऐश्वर्य मिल गया , समाज में प्रतिष्ठा हो गई तो लोग इसको *भगवतकृपा* मानते हैं ! वहीं दूसरी ओर यदि निर्धनता

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भगवत्कृपा - भाग - ४२ (बयालीस)

2 जून 2022
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प्रत्येक मनुष्य *भगवतकृपा* तो चाहता है परंतु अपनी कोई भी संपत्ति भगवान को अर्पित नहीं करना चाहता ! वह सब को अपना मानता है ! जबकि मनुष्य यदि अपनी संपत्तियों को भगवान की सेवा में लगा देता है तो वह उन भो

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भगवत्कृपा - भाग - ४३ (तिरालीस)

2 जून 2022
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मनुष्य को यह चाहिए कि वह सदैव प्रत्येक हाल में *भगवत्कृपा* का आश्रय लें ! जिस रूप में भी वह आए उसका स्वागत करें ! यदि वह कृपा हमारा मान भंग करने वाली हो , प्रतिष्ठा मिटाने वाली हो जगत से संपर्क हटाने

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भगवत्कृपा - भाग - ४४ (चौरालीस)

3 जून 2022
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भगवान का विधान इतना मंगलमय है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता !  भगवान के *मंगलमय विधान* के अंतर्गत सारी सृष्टि कार्य कर रही है ! मनुष्य को जो स्वाधीनता मिली हुई है उसका कारण भगवान का *मंगलमय विधान* ही

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भगवत्कृपा - भाग - ४५ (पैंतालीस)

3 जून 2022
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भगवान के *मंगलमय विधान* सभी मनुष्य ग्रहण नहीं कर पाते , कुछ लोग भगवान तो अन्यायकारी एवं क्रूर भी कह देते हैं ! भगवान के *मंगलमय विधान* में आस्था उन्हीं प्राणियों की नहीं होती जो बल के दुरुपयोग को ही ज

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भगवत्कृपा - भाग - ४६ (छियालीस)

3 जून 2022
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भगवान को दयासिंधु , कृपासिंधु एवं करुणासिंधु आदि कहा जाता है ! अनेकों नामों से उनको पुकारा जाता है ! *दया एवं कृपा इन दोनों में क्या भेद है ?* क्या यह दोनों एक ही है या इनमें कोई भेद है ? यह समझने की

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भगवत्कृपा - भाग - ४७ (सैंतालीस)

3 जून 2022
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*भगवत्कृपा* सभी प्राप्त करना चाहते हैं परंतु *भगवत्कृपा* की प्राप्ति अपने प्रयत्न से संभव नहीं है ! यह धारणा प्रगाढ़ भक्ति उत्पन्न करती है ! भक्ति में जहां केवल विश्वास और प्रेम की आवश्यकता होती है वह

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भगवत्कृपा - भाग - ४८ (अड़तालीस)

4 जून 2022
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*भगवत्कृपा* बहुत ही अद्भुत है ! कभी कभी तो अनेकों जप - अनुष्ठान आदि उपाय करने पर भी *यह भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त होती और कभी कभी कोई अनुष्ठान किये बिना ही यह *भगवत्कृपा* सहज ही मिल जाती है ! *भगवत्कृपा

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भगवत्कृपा - भाग - ४९ (उनचास)

15 जून 2022
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इस जीवन मनुष्य अनेकों प्रकार के प्रश्नोत्तर , समस्या एवं उनके समाधान में जीवन भर उलझा रहता है ! किसी भी प्रकार के प्रश्न का उत्तर या किसी समस्या का समाधान *भगवत्कृपा* से ही संभव है ! जब तक *भगवतकृपा*

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भगवत्कृपा - भाग - ५० (पचास)

15 जून 2022
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*भगवत्कृपा* का दर्शन संपूर्ण श्रीमद्भागवत में होता है परंतु कहीं-कहीं *विशेष भगवत्कृपा* देखने को मिलती है ! ऐसे ही एक प्रसंग में *विशेष भगवत्कृपा* तब देखने को मिलती है जब माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण क

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भगवत्कृपा - भाग - इक्यावन (५१)

15 जून 2022
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इस संसार में *भगवत्कृपा* सर्वत्र व्याप्त है ! अनेकानेक रूपों में *भगवत्कृपा* का आभास हमको होता रहता है परंतु माया के पर प्रपञ्चों में पड़े हुए हम उस *भगवत्कृपा* का अनुभव नहीं कर पाते ! जीव जब इस संसार

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भगवत्कृपा - भाग - ५२ (बावन)

15 जून 2022
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*भगवतकृपा* का अनुभव एवं दर्शन करने के लिए मनुष्य को *भगवत्कृपा* के विविध स्वरूपों के विषय में जानने की आवश्यकता है ! *भगवत्कृपा* के कई अंग हैं , मनुष्य के ऊपर *मातृकृपा* इसी *भगवत्कृपा* का एक विशेष अं

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भगवत्कृपा - भाग ५३ (तिरपन)

15 जून 2022
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एक माता भगवान का स्वरूप कैसे है ? *भगवत्कृपा एवं मातृकृपा में क्या समानता है !* इसको समझने के लिए हमें विचार करना होगा ! जब घर बाहर सर्वत्र प्रलय की अग्नि ज्वाला धधकने लगती है , अपने पाप ताप की माया स

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भगवत्कृपा - भाग - ५४ (चौव्वन)

16 जून 2022
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जीव को निरंतर *भगवत्कृपा* का अनुभव करते रहना चाहिए ! *भगवत्कृपा* पर विश्वास बनाए रखकर मनुष्य को सदैव अपना पुरुषार्थ करते रहना चाहिए ! ईश्वर जो भी करता है अच्छा ही करता है उसकी कृपा सदैव जीव के लिए सका

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भगवत्कृपा - भाग - ५५ (पचपन)

16 जून 2022
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एक गुरु आश्रम में शिष्य मंडली बैठी हुई थी गुरुदेव अपने शिष्यों को उपदेश कर रहे थे ! चर्चा *भगवत्कृपा* पर हो रही थी ! *शिष्य ने गुरु जी से पूछा* कि :- गुरुदेव जब *भगवत्कृपा* होगी और वह अनुकंपा करेंगे त

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भगवत्कृपा - भाग - ५६ (छप्पन)

16 जून 2022
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सनातन धर्म के सभी धर्म शास्त्रों में *भगवान की कृपा* के दर्शन सर्वत्र होते हैं ! *भगवत्कृपा* कई रूपों में मानव मात्र के कल्याण के लिए निरंतर बरसती दिखाई पड़ती है ! भगवान को *कृपासागर , कृपामूर्ति आदि

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भगवत्कृपा - भाग - ५७ (सत्तावन)

16 जून 2022
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श्री रामचरितमानस में *कृपा* का विस्तृत विस्तार है ! कोई भी कार्य हो बिना *भगवत्कृपा* के नहीं संपन्न हो सकता ! किसी कार्य को संपन्न करने के लिए कोई रचना करने के लिए *मति का निर्मल होना* परम आवश्यक है !

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भगवत्कृपा - भाग - ५८ (अट्ठावन)

16 जून 2022
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*भगवत्कृपा* के अन्तर्गत *कृपातत्व विमर्श* करते हुए मानस जी के कुछ *कृपा रत्नों* की चर्चा हम यहाँ कर रहे हैं ! मर्यादा पुरुषोत्तम *भगवान श्री राम की कृपा* को विघ्न विनाशक बताते  हुए गोस्वामी जी लिखते ह

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भगवत्कृपा - भाग - ५९ (उनसठ)

16 जून 2022
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अपने कर्मानुसार अनेक योनियों में भ्रमण करता हुआ जीव मानवयोनि प्राप्त करता है | मानव योनि में आकर जीव का उद्देश्य होता है जन्म - जन्मातर के आवागमन से मुक्ति पाना अर्थात मोक्ष प्राप्त करना | जीव को मोक्

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भगवत्कृपा - भाग - ६० (साठ)

17 जून 2022
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कुछ लोग कहते हैं सत्संग *भगवत्कृपा* से प्राप्त होता है तो कुछ लोग यह कहते हैं सत्संग से *भगवत्कृपा* की प्राप्ति होती है ! इस विषय पर विचार किया जाए कि *सत्संग से भगवत्कृपा मिलती है कि भागवत्कृपा से सत

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भगवत्कृपा - भाग - ६१ (इकसठ)

17 जून 2022
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जब तक मनुष्य का *संतकृपा* नहीं होगी तब तक *भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त की जा सकती ! सत्संग के माध्यम से *संतकृपा* को प्राप्त करके ही *भगवत्कृपा* की प्राप्ति की जा सकती है ! संतो की महिमा सर्वत्र गाई गई है

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भगवत्कृपा - भाग - ६२ (बासठ)

18 जून 2022
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*संतकृपा* अर्थात सत्संग *भगवत्कृपा* से ही प्राप्त होता है ! बिना *भगवत्कृपा* के सत्संग नहीं मिल सकता और जब तक सत्संग नहीं होगा तब तक हृदय में भक्ति का प्रादुर्भाव नहीं हो सकता और भक्ति का प्रादुर्भाव

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भगवत्कृपा - भाग - ६३ (तिरसठ)

18 जून 2022
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इस संसार में आर्त्त प्रपन्न भक्त तो तत्क्षण ही अजर अमर , प्रशांत , बैकुंठ में अपने भावनुकूल सारुप्य , सायुज्य , सामीप्य , सालोक्य मुक्तिरूपा *भगवत्कृपा* प्राप्त कर लेते हैं परंतु दृप्त प्रपन्न भक्त शर

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भगवत्कृपा- भाग - ६४ (चौंसठ)

19 जून 2022
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सनातन धर्म में *भगवत्कृपा* प्राप्ति के कई साधन बताये गये हैं ! जैसे कि :- जप , तप , पूजा , पाठ , सतसंग आदि | कभी कभी मनुष्य दिग्भ्रमित हो जाता है कि वह *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए कौन सा मार्ग चुन

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भगवत्कृपा -;भाग - ६५ (पैंसठ)

20 जून 2022
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*भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य निरंतर प्रयास करता है !  कुछ लोग तो नित्य जप , तप , संध्या वंदन एवं अनुष्ठान आदि करके *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का प्रयास करते हैं ! मनुष्य *भगवत्कृपा* का

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भगवत्कृपा - भाग - ६६ (छियासठ)

21 जून 2022
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चौरासी लाख योनियों में दिव्य मानव योनि पाकर के जीव कृतार्थ हो जाता है ,  और उसको मानव जीवन में अनेकों पुरुषार्थ करने को मिलते हैं ! अपने पुरुषार्थ के द्वारा वह अनेकों सफलताएं प्राप्त करता है *परंतु यह

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भगवत्कृपा -भाग - ६७ (सड़सठ)

21 जून 2022
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*भगवत्कृपा* का पात्र बनने के लिए भगवान एवं उनकी कृपा पर विश्वास का होना बहुत आवश्यक है ! जब तक विश्वास नहीं होता है तब तक *भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त हो सकती ! जैसे अरुणोदय मात्र से अमावस्या की घोर निशा

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भगवत्कृपा - भाग ६८ (अड़सठ)

21 जून 2022
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*भगवत्कृपा* तो निरन्तर प्रवाहमान है परंतु इसका अनुभव उसी को होता है जो भगवान का भक्त होता है , जिसका भगवान पर पूर्ण विश्वास होता है , भगवान तो स्वयं घोषणा करते हैं :-- *हम भगतनि के भगत हमारे !*

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भगवत्कृपा - भाग - ६९ (उनहत्तर)

22 जून 2022
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जो *भगवत्कृपा* पर विश्वास करके उसी पर निर्भर रहता है वह किसी काल में दुखी नहीं हो सकता ! वह तो प्रत्येक बात में भगवान का विधान समझता है और भगवान के विधान को उनकी दया से ओतप्रोत देखकर प्रफुल्लित होता र

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भगवत्कृपा - भाग - ७० (सत्तर)

22 जून 2022
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भगवान सदैव मनुष्य के आस-पास ही रहते हैं  मनुष्य के हृदय में भगवान का निवास है , परंतु वह इस बात को भूल जाता है , उसको विश्वास ही नहीं होता ! मनुष्य भगवान को याद नहीं कर पाता और *जब तक याद नहीं करोगे त

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भगवत्कृपा - भाग - ७१ (इकहत्तर)

23 जून 2022
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जब तक साधक को पूर्ण विश्वास नहीं होगा तब तक ना तो *भगवत्कृपा*  प्राप्त होगी और ना ही भगवान का दर्शन ! अनेकों साधक पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं परंतु उनको ना तो *भगवत्कृपा* का अनुभव हो पाता है और ना ही

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भगवत्कृपा - भाग ७२ (बहत्तर)

24 जून 2022
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*भगवत्कृपा*;प्राप्त करने के लिए कुछ अधिक करने की आवश्यकता नहीं है बस भगवान पर एवं उनकी कृपा पर विश्वास तो होना ही *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है ! मनुष्य को सदैव यह विश्वास होना चाहिए कि

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भगवत्कृपा - भाग - ७३ (तिहत्तर)

25 जून 2022
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*भगवत्कृपा* और विश्वास यह दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं ! भगवान एवं *भगवत्कृपा* पर विश्वास करने से ही मनुष्य को इसका अनुभव हो पाता है !  यदि मनुष्य को *भगवत्कृपा* पर भरोसा है तो उसे भगवान का दर्शन करन

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भगवत्कृपा - भाग - ७४ (चौहत्तर)

26 जून 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने का एक साधन और शरणागति को कहा गया है !  शरणागति की व्याख्या नहीं हो सकती !  शरणागति एक प्रकार की ही नहीं होती ,  बल्कि अधिकारी के अनुसार शरणागति में भी भेद होता है ! जहां *भगवत

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भगवत्कृपा - भाग - ७५ (पचहत्तर)

26 जून 2022
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मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह बड़ा उतावला होता है ! कोई भी कर्म करने के बाद तुरंत उसका फल प्राप्त करने की आशा मनुष्य करता रहता है ! *भगवत्कृपा* तुरंत नहीं प्राप्त हो जाती !  लंबे समय तक साधना करने के

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भगवत्कृपा - भाग - ७६ (छिहत्तर)

27 जून 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए भगवान को लोग अनेकों रूप में मानते हैं , उनकी पूजा करते हैं , परंतु सत्य तो यह है की *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए मनुष्य को भगवान को अपनी वात्सल्यमयी माता मानकर उनका

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भगवत्कृपा - भाग - ७७ (सतहत्तर)

29 जून 2022
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जो लोग केवल भोग वस्तुओं की रक्षा और प्राप्ति में ही *भगवत्कृपा* समझते हैं वह बड़ी भूल करते हैं ! यह वस्तुएं तो हमें संसार सागर में डूबाने वाली हैं ! दयालु भगवान हमें संसार समुद्र में धकेलने के लिए इनक

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भगवत्कृपा - भाग - ७८ (अठहत्तर)

3 जुलाई 2022
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इस धरा धाम पर जब से सृष्टि का संचालन हुआ तब से लेकर आज तक *सनातन धर्म* विद्यमान है और *सनातन धर्म* पर *भगवत्कृपा* की अमिट छाप देखने को मिलती है ! *सनातन धर्म को सनातन क्यों माना जाता है और इस पर विशेष

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भगवत्कृपा - भाग - ७९ ( उन्यासी )

3 जुलाई 2022
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*सनातन धर्म और भगवत्कृपा* के संबंध पर यदि विचार किया जाय तो जो चिंतन *सनातन धर्म* में प्राप्त होता है वह अन्य कहीं देखने को नहीं मिलता ! जो *भगवत्कृपा* सनातनधर्मावलंबियों को प्राप्त है वह किसी अन्य को

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भगवत्कृपा - भाग - ८० (अस्सी)

3 जुलाई 2022
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*सनातन धर्म पर विशेष भगवत्कृपा है* इसका अनुभव करने की आवश्यकता है ! *सनातन धर्म पर भगवत्कृपा* के कुछ उदारहरण प्रस्तुत है :-- वेदों में एकमात्र *सनातन धर्म* का ही प्रतिपादन हुआ है ! यह *निर्हेतुकी कृपा

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भगवत्कृपा - भाग - ८१ (इक्यासी)

4 जुलाई 2022
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*सनातन धर्म पर विशेष भगवत्कृपा है* यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हू बल्कि सनातन ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर ही ऐसा कहा जा सकता है ! यत्र तत्र सर्वत्र सनातन धर्म के प्रत्येक धर्म ग्रंथ में *भगवत्कृपा* के

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भगवत्कृपा - भाग - ८२ (बयासी)

4 जुलाई 2022
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जैसा जिसका भाव पता है उसको वैसी ही *भगवत्कृपा* प्राप्त होती है ! जो भगवान भक्तों के लिए *कृपामय* होते हैं वही असुरों के लिए कालरूप हुये हैं !  जिसका जैसा भाव होता है भगवान उसको उसी रूप में दर्शन देते

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भगवत्कृपा - भाग - ८३ (तिरासी)

4 जुलाई 2022
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भारतीय वांग्मय में सर्वत्र *भगवत्कृपा* के दर्शन होते हैं ! वेद , उपनिषद , पुराणों में *भगवत्कृपा* के दर्शन सहज ही हो जाते हैं ! *श्रीमद्भागवत महापुराण*  तो साक्षात *कृपावतार* भगवान श्रीकृष्ण का ही स्व

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भगवत्कृपा - भाग - ८४ (चौरासी)

5 जुलाई 2022
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वास्तव में *भगवत्कृपा* के दर्शन करने हों तो सनातन धर्म के धर्मग्रंथों में ही होते हैं ! कोई भी धर्मशास्त्र ऐसा नहीं है जिसमें *भगवत्कृपा* की स्पष्ट झलक न दिखाई पड़े ! श्रीमद्भागवत तो भगवान की *महती कृ

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भगवत्कृपा भाग - ८५ (पचासी)

5 जुलाई 2022
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श्रीमद्भागवत में बताया गया है कि आत्ममार्जन करके ही *भगवत्कृपा* को प्रा्प्त किया जा सकता है ! यथा :-- *यथा यथा$$त्मा परिमृज्यते$सौ ,*                  *मत्पुण्यगाथाश्रवणाभिधानै: !* *तथा तथा पश्यत

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भगवत्कृपा - भाग - ८६ (छियासी)

5 जुलाई 2022
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यह अकाट्य है कि *सनातन धर्म पर विशेष भगवत्कृपा है* सनातन के धर्मग्रन्थ पग पग पर मनुष्य को *भगवत्कृपा* प्राप्ति के सरल से सरल साधन उपलब्ध कराते रहे हैं ! श्रीमद्भागवत पर *विशेष भगवत्कृपा* के दर्शन करने

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भगवत्कृपा - भाग - ८७ (सत्तासी)

5 जुलाई 2022
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अर्जुन भगवान के समक्ष ना तो पूरी तात्विक विवेचन सुनने की इच्छा व्यक्त की और ना ही धर्म संबंधी कोई जिज्ञासा की की उन्होंने तो भगवान से इतना ही कहा था :-- *यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् !

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भगवत्कृपा - भाग - ८८ (अट्ठासी)

5 जुलाई 2022
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गीता$मृतरूपा *भगवत्कृपा* का प्रत्येक अध्याय के अनुसार अवलोकन किया जाय तो *कृपापूर्वक* भगवान का अर्जुन के सामने अपने आप को विशेषता से प्रकट करना और अर्जुन के मन में क्रमश: भगवान के प्रति विशेष आदर एवं

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भगवत्कृपा - भाग - ८९ (नवासी)

5 जुलाई 2022
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*कृपामयी भगवद्गीता* भगवान के श्री मुख से निकले हुए दिव्य वचन हैं ! यह *विशेष भगवत्कृपा* अर्जुन पर इसलिए हुई क्योंकि अर्जुन भगवान के *कृपाभाजन* थे ! श्रेष्ठ पुरुष अपने हृदय का गोपनीय से गोपनीय रहस्य भी

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भगवत्कृपा - भाग - ९० ( नब्बे )

5 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए मनुष्य को दृष्टिदोष रहित होना चाहिए ! कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन  दृष्टिदोष रहित है इसीलिए भगवान उनके बिना पूछे ही *विशेष कृपा* करके   उन्हें ध्यान और भक्ति की विश

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भगवत्कृपा - भाग - ९१ (इक्यानबे)

6 जुलाई 2022
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*कृपामयी भगवद्गीता* के प्रत्येक अध्याय में *भगवत्कृपा* स्पष्ट झलकती है ! मानव जीवन के लिए जितना सुंदर संदेश *भगवद्गीता* में मिलता है वह अन्य कहीं भी दृष्टव्य  नहीं है *आठवें अध्याय* में भगवान ने *कृपा

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भगवत्कृपा - भाग - ९२ (बानबे)

6 जुलाई 2022
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*श्रीमद्भगवद्गीता* के माध्यम से भगवान ने अपने श्री मुख से प्रत्येक अक्षर के साथ *कृपा* को परोसा है !  समझने वाले इससे भगवान की *महती कृपा* समझते हैं और ना समझने वाले एक पुस्तक या ग्रन्थ समझ कर उसको दे

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भगवत्कृपा - भाग - ९३ (तिरानबे)

6 जुलाई 2022
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अर्जुन पर *भगवत्कृपा* हुई और भगवान ने अर्जुन से कहा:-  हे पार्थ ! तुम मेरे सैकड़ों हजारों नाना प्रकार के नाना वर्ण और आकृति वाले अलौकिक रूपों को देखो ! *यह अर्जुन पर विशिष्ट भगवत्कृपा का एक प्रमुख उदा

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भगवत्कृपा - भाग - ९४ (चौरानबे)

6 जुलाई 2022
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विराट रूप का दर्शन करा कर भगवान ने अर्जुन पर *अभूतपूर्व कृपा* की ! *विचार कीजिए* किसी नाटक में भी पात्र अपना असली रूप नहीं बताता ! यदि वास्तविक रूप प्रकट कर दिया जाय तो नाटक की सफलता ही संदिग्ध हो जाय

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भगवत्कृपा - भाग ९५ (पंचानबे)

6 जुलाई 2022
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*जैसे भगवान अदभुत है वैसे भगवत्कृपा का रहस्य भी बड़ा अद्भुत है !* असीम भगवान की कृपा भी असीम ही है ! उनका न कहीं ओर है न छोर , न आदि है न अंत ! वह अनंतकोटिब्रह्माडनायक , करुणावरूणालय , परमैश्वर्य संपन

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भगवत्कृपा - भाग - ९६ (छियानबे)

11 जुलाई 2022
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आर्त्त भाव से पुकारने पर भगवान बिना पल भर की देरी किये दौड़े चले आते हैं और भक्त पर *अपनी कृपा* लुटा देते हैं ! श्रीमद्भागवत के गज-ग्राह प्रसंग में गज के आर्त्त भाव का मार्मिक चित्रण किया गया है :---

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भगवत्कृपा - भाग - ९७ (सत्तानबे)

11 जुलाई 2022
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स्वधर्म के आचरण से शुद्ध सात्त्विक हृदय में आर्त्तभाव का उन्मेष तथा भगवान के नाम रूप चिंतन में भक्तों का घोर परिश्रम --- यह दोनों ही मिलकर *असीम भगवत्कृपा* का उन्मीलन करते हैं ! जिससे साधक कृतकार्य हो

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भगवत्कृपा - भाग - ९८ (अट्ठानबे)

11 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास तो करना चाहिए परंतु यह भी सत्य है कि इस संसार में *भगवत्कृपा* निरंतर है इसके बिना पता तक नहीं हिलता ! देवता , दानव ,  मानव , यक्ष , किन्नर , गंधर्व जो भी

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भगवत्कृपा - भाग ९९ (निन्यानबे)

14 जुलाई 2022
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यह सारा संसार स्वार्थमय है ! बिना स्वार्थ के इस संसार में कोई भी कार्य नहीं होता ! इसकी घोषणा *गोस्वामी तुलसीदास जी* करते हैं :-- *सुर नर मुनि सब कर यह रीती !* *स्वारथ लाइ करहिं सब प्रीती !!*  

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भगवत्कृपा - भाग - १०० (सौ)

14 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* पाँच रूपों में विद्ममान है जो हमें *पञ्चदेवों* से प्राप्त होती है ! *पञ्चदेवों* के विषय में हमारे पुराणों में कहां गया है :-- *आदित्यं गणनाथं त देवीं रुद्रं च केशवम् !*  *पञ्चदैवत्यमित

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भगवत्कृपा - भाग - १०१ (एक सौ एक)

14 जुलाई 2022
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भगवत कृपा से इस सृष्टि का संचार हुआ और यह सृष्टि पल-पल परिवर्तनशील है साधक जो आज है वह कल नहीं था जन्म से मरण तक प्रतिक्षण उसके स्वरूप में परिवर्तन होता रहता है यह एक वैज्ञानिक तथ्य है इस परिवर्तन को

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भगवत्कृपा - भाग - १०२ (एक सौ दो)

14 जुलाई 2022
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सनातन धर्म पर कैसी *भगवत्कृपा* है इसका वर्णन पूर्व में अनेक उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया जा चुका है ! सनातन धर्म की ही शाखाओं के रूप में आज अनेकों धर्म संसार में विद्यमान हैं ! *शाखायें सब धर्म है

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भगवत्कृपा - भाग - १०३ (एक सौ तीन)

15 जुलाई 2022
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*कृपा* करके ईश्वर ने जो सृष्टि बनाई है उसमें प्रत्येक जड़ - चेतन स्वयं में उत्कृष्ट परंतु इन सब में यदि सर्वोत्कृष्ट है तो वह *भगवत्कृपा* क्योंकि मनुष्य चाहे जितना विकास कर ले परंतु उसकी शक्ति सीमित ह

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भगवत्कृपा - भाग - १०४ (एक सौ चार)

15 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* निरंतर सब पर है परंतु *कर्म एवं पुरुषार्थ* करने पर ही *भगवत्कृपा* का अनुभव एवं प्राप्ति होती है ! *जैसे:-* तैरना जानते हुए भी जब कोई जल की धारा में कूदकर हाथ पांव नहीं हिलाता तो वह डूब जात

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भगवत्कृपा - भाग - १०५ (एक सौ पाँच)

15 जुलाई 2022
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आध्यात्मिक क्षेत्र में *भगवत्कृपा* की वर्षा को ही *शक्तिपात* कहा गया है वह *शक्तिपात* सब पर समान रूप से होता है ! तांत्रिक आचार्यों के मत से जीव की स्वरूप - स्थिति के उपाय का नाम ही *शक्तिपात* है ! भग

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भगवत्कृपा - भाग - १०६ (एक सौ छ:)

15 जुलाई 2022
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बिना *भगवत्कृपा* के पौरुष की सफलता में भी संदेह ही रहता है इसीलिए पौरुष और *भगवतकृपा* को अन्योन्याश्रित मानकर ही अविश्रांत भाव से कर्म में प्रवृत्त रहना चाहिए ! *भगवत्कृपा* उसी पर होती है जिसे कर्तृत्

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भगवत्कृपा - भाग - १०७ (एक सौ सात)

15 जुलाई 2022
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साधक तोसअपने जीवन में सदैव *भगवत्कृपा* की कामना करता है परंतु साधारण जीव सदैव किसी न किसी की *कृपा* के लिए लालायित रहता है , तथा किसी न किसी की *अकृपा* का विचार करके आशंकित रहता है ! *कृपाओं* की उपलब्

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भगवत्कृपा - भाग - १०८ (एक सौ आठ)

15 जुलाई 2022
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आज की आधुनिकता की चकाचौंध में मनुष्य *भगवान एवं भगवत्कृपा* के प्रति अनेकानेक प्रश्न उठाया करता है !  *क्या भगवत्कृपा नित्यसिद्ध है ?* यह आज के युग का एक तर्कपूर्ण प्रश्न है ! यदि वह नित्यसिद्ध है तो स

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भगवत्कृपा - भाग - १०९ (एक सौ नौ)

20 जुलाई 2022
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*भगवतकृपा* प्राप्त करने के लिए लोग भगवान से संबंध बनाने का प्रयास करते हैं उनको शायद यह नहीं पता है कि भगवान और भक्त के बीच दयालु - दीन , दानी - भिखारी , पतितपावन - पातकी , नाथ - अनाथ आदि

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भगवत्कृपा - भाग - ११० (एक सौ दस)

21 जुलाई 2022
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चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ मानव योनि पाकर मनुष्य परमात्मा का युवराज कहां गया है ! यह मानव जीवन पाकर मनुष्य जीवन भर मांगता ही रहता है और कुछ पा जाने पर उसे ही उपलब्धि मानने लगता है ! परंतु मानव

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भगवत्कृपा - भग - १११ (एक सौ ग्यारह)

22 जुलाई 2022
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सुंदर जीवन निर्माण की आधारशिला भावशुद्धि है भावशुद्धि के बिना कर्म शुद्धि असंभव है ! भावअशुद्धि से भ्रांति तथा भावशुद्धि से शांति और परम पद की प्राप्ति होती है ! हीरे की प्राप्ति के पश्चात कांच के मनक

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भगवत्कृपा - भाग - ११२ (एक सौ बारह)

22 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* के कई रूप हैं ! कई रूपों में *भगवत्कृपा* हमको प्राप्त होती रहती है ! *भगवत्कृपा* अपने आप में विचित्र भी है यह मनुष्य को भ्रमित कर देती है ! साधना मार्ग के कुछ पथिक अभ्युदय अथवा भौतिक उत्कर

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भगवत्कृपा - भाग - ११३ (एक सौ तेरह)

22 जुलाई 2022
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संसार के लोग जिसे काव्य समझते हैं वह सारी वस्तुएं उन साधनों के लिए त्याज्य हैं ! यहां जो कुछ श्रेष्ठ माना जाता है उस मन:स्थिति को प्राप्त जन के लिए वे सभी हानिकर ही है ! लोक में जिसे उन्नति समझा जाता

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भगवत्कृपा - भाग - ११४ (एक सौ चौदह)

22 जुलाई 2022
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अध्यात्म साधना का इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिनमें विषम तथा विपरीत परिस्थितियां ही भोगमय जीवन से वितृष्ण में बनाकर विषयी जीवो को जीवन्मुक्त महापुरुष बनाने में सहायक हुईं ! उदात्तीकरण की मनोवै

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भगवत्कृपा - भाग - ११५ (एक सौ पन्द्रह)

26 जुलाई 2022
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यह संपूर्ण जगत भगवतद्विभूति के द्वारा जीवन धारण कर रहा है ! *भगवत्कृपा* की धारा - प्रपात वर्षा हो रही है ! एक औंधे प्याले के समान मनुष्य का क्षुद्र मन उस *कृपा की* पूर्णता का अनुभव करने में असमर्थ है

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भगवत्कृपा - भाग - ११६ (एक सौ सोलह)

26 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्ति स्वत:सिद्ध मानकर पुरुषार्थ ना करना एक बड़ी भूल है ! योग शास्त्र के अनुसार मनुष्य के पुरुषार्थ को चार प्रकार के उद्देश्य में अभिव्यक्त किया गया है ! *धर्म:-* (जीवन आचार संबंधी

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भगवत्कृपा - भाग - ११७ (एक सौ सत्रह)

26 जुलाई 2022
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एक साधक या साधारण मनुष्य के मस्तिष्क में एक प्रश्न प्राय: होता है कि *आखिर भगवत कृपा कैसे प्राप्त की जाय ?* बिना ज्ञान के मनुष्य अंधकार में पड़ा रहता है ! *भगवत्कृपा कैसे प्राप्त की जाय ?* इसके विषय म

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भगवत्कृपा - भाग - ११८ (एक सौ अठारह)

26 जुलाई 2022
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समस्त विश्व में *विशेष भगवत्कृपा* हमारे देश भारत पर हुई है क्योंकि भारतवर्ष में समय समय पर अवतार लेकर भगवान ने मानवमात्र को सदमार्ग पर चलना सिखाया है ! भारतवर्ष पर भी यह *विशेष भगवत्कृपा* इसलिए हुई क्

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भगवत्कृपा - भाग - ११९ (एक सौ उन्नीस)

30 जुलाई 2022
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अयोध्या पर भगवान की *विशेष भगवत्कृपा* हुई क्योंकि वहां पर परमात्मा श्री राम का अवतार हुआ ! श्री राम कौन है ???:---*रमते हैं रोम रोम में श्रीराम वही है !**व्यापक है शब्द ब्योम में श्री राम वही है !!*श्

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भगवत्कृपा - भाग - १२० (एक सौ बीस)

30 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* तो जगत में बिना भेदभाव के निरंतर सचराचर प्राणिमात्र पर बरसती ही रहती है , परंतु आर्त्त होकर उसका अनुसंधान करके आनंद रससिन्धु में मगन रहने वाले इस जगत में विरले ही है ! अनादिकाल से मोहनिद्र

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भगवत्कृपा - भाग - १२१ (एक सौ इक्कीस)

30 जुलाई 2022
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*भगवत्कृपा* सरल एवं सहज है तो उसका कारण है कि भगवान स्वयं *कृपानिधान* है ! दया दुखितों पर , वात्सल्य दोष युक्त अल्पज्ञों पर , सुशीलता दीन हीन भक्तजनों पर तथा उदारता सत्कृतों पर ही सुशोभित होती ह

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भगवत्कृपा - भाग - १२२ (एक सौ बाईस)

7 अगस्त 2022
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मनुष्य भौतिक समृद्धि में शाश्वत सुख , शांति और आनंद करने का प्रयास करता है , परंतु भौतिक सुख अपूर्ण एवं नाशवान हैं अतः उयसे स्थाई सुख नहीं मिल सकता ! अपनी इस चेष्टा में निष्फल मनुष्य स्वत: भगवान की ओर

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भगवत्कृपा - भाग - १२३ (एक सौ तेईस)

7 अगस्त 2022
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श्री भगवान *अहैतुकी कृपा* करते हैं , यह बात सच्ची होने पर भी साधक को सिद्धि के प्रलोभन में न पड़कर साधन मार्ग में आने वाले अधिभौतिक और अधिदैविक विघ्नों से क्षुब्ध ना होकर इस मार्ग का दृढ़ता पूर्वक अनु

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भगवत्कृपा - भाग - १२४ (एक सौ चौबीस)

7 अगस्त 2022
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मनुष्य जाने - अनजाने में अनेक प्रकार के पाप करता रहता है ! इन पापों का विनाश *भगवत्कृपा* से ही सम्भव है ! *भगवत्कृपा* का पाप नाशक होना भी उसका वैशिष्ट्य है कहा जाता है कि *भगवत्कृपा* पापहारिणी शक्ति ह

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भगवत्कृपा - भाग - १२५ (एक सौ पच्चीस)

7 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* बड़ी रहस्यमई है ! *भगवत्कृपा* भक्तिवेदांत का प्रमुख अंग है ! भगवदनुकम्पा , भगवदनुग्रह आदि इसके अनेक नाम है ! *भगवत्कृपा* की अमृतामयी वृष्टि जब तक भक्तों के भाव एवं हृदय जगत में नहीं होती त

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भगवत्कृपा - भाग - १२६ (एक सौ छब्बीस)

8 अगस्त 2022
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भगवान की सतत प्रवाहशीला सहज कृपा सर्वकालिक है ! ना वह कालसापेक्ष है और ना साधनों पर ही निर्भर करती है ! वह *अहैतुकी* है ! अतएव अकारण ही सब पर बरसती रहती है ! *भगवत्कृपा* देश , काल , वस्तु और व्य

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भगवत्कृपा - भाग -;१२७ (एक सौ सत्ताईस)

8 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* निसंदेह सर्वज्ञ , सर्वशक्तिमान , स्वाधीन ,परम प्रेमास्पद एवं परम कृपालु *परमेश्वर की कृपा* एवं उनका ही एक सहज स्वभाव है जो कभी किसी निमित्त के बिना ही भागवत आनंद का तरल से तरल पावन प

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भगवत्कृपा - भाग - १२८ (एक सौ अट्ठाईस)

15 अगस्त 2022
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सामान्य जीवन में अनुकंपा , दया , कृपा , करुणा आदि शब्द प्राय: एक ही अर्थ में बोले जाते हैं परंतु भक्ति सिद्धांत की दृष्टि से देखने पर इन शब्दों में भेद है ! *अनुकंपा करुणा दया कृपा आदि सब एक !**म

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भगवत्कृपा - भाग - १२९ (एक सौ उनतीस)

24 अगस्त 2022
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इस सृष्टि के कण-कण में भगवान व्याप्त हैं ! कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां पर भगवान की व्यापकता ना हो ! गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज लिखते हैं :--*हरि व्यापक सर्वत्र समाना !**प्रेम तें प्रकट होइं मैं जान

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भगवत्कृपा - भाग - १३० (एक सौ तीस)

24 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* सर्वव्यापक है कोई भी मर्यादा *भगवत्कृपा* को सीमित नहीं कर सकती ! *भगवत्कृपा* के अधिकारी पापी - पुण्यात्मा , राक्षस + देवता सभी है ! यथा:---*सर्वाचारविवर्जिता: शठधियो व्रात्या जगद्वञ्चक: !*

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भगवत्कृपा - भाग - १३१ (एक सौ इकतीस)

24 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* सदैव समस्त जड़ चेतन पर बरस रही है ! ईश्वर समदर्शी हैं वह कभी भेदभाव नहीं करते ! सब पर समभाव रखते हैं ! *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है :- भगवान की शरण में जाना ,शरणागत हो जाना

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भगवत्कृपा -;भाग - १३२ (एक सौ बत्तीस)

26 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* प्राप्त करने के लिए जीव की (अविद्या रूपी) हृदयंग्रन्थि का टूटना परम आवश्यक है ! *भगवत्कृपा* की उपादेयता एवं महत्व तभी समझ में आता है जब हम अपने सदग्रंथों का अध्ययन करते हैं ! जब तक हृदय मे

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भगवत्कृपा - भाग - १३३

28 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* से मनुष्य को *संत कृपा* प्राप्त होती है और *संत कृपा* प्राप्त होने से मनुष्य सत्संग का भागी बनता है ! सत्संग का भागी बनते ही मनुष्य के हृदय में भक्ति का प्राकट्य होता है और भक्ति का प्राकट

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भगवत्कृपा - भाग - १३४ (एक सौ चौतींस)

29 अगस्त 2022
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इस संसार में बिना कारण की कोई कार्य नहीं होता ! हर कार्य का कोई न कोई तात्पर्य होता है ! *तात्पर्य क्या है ?* इस विषय में हमारे शास्त्र बताते हैं कि तात्पर्य विषय में ही शब्द का प्रमाण होता है :-&nbsp

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भगवत्कृपा - भाग - १३५ (एक सौ पैंतींस)

29 अगस्त 2022
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*भगवत्कृपा* का तात्पर्य साधारण नहीं हो सकता ! श्रीमद्भगवतगीता के माध्यम से स्वयं भगवान अर्जुन से कहते हैं :--*मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्* &nb

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भगवत्कृपा - भाग - १३६ (एक सौ छत्तींस)

29 अगस्त 2022
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पापी से पापी व्यक्ति भी यदि आर्त्त हो करके उनकी शरण में आ जाए तो भगवान उसका भी उद्धार कर देते हैं ! भगवान इसकी घोषणा करते हुए स्वयं कहते हैं :--*सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज !**अहं त्वा

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भगवत्कृपा - भाग - १३७ (एक सौ सैंतीस)

5 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* की पहचान करने के लिए भी *भगवत्कृपा* की आवश्यकता होती है क्योंकि मनुष्य अपने अनुसार , अपनी सोच के अनुसार *भगवत्कृपा* मानने लगता है , परंतु यह सत्य है कि स्त्री , पुत्र , धन , संपत्ति आदि अन

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भगवत्कृपा - भाग - १३८ (एक सौ अड़तीस)

5 सितम्बर 2022
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इस संसार पर निरंतर *भगवत्कृपा* की वर्षा हो रही है आवश्यकता है उसे प्राप्त करने के लिए उद्योग करने की ! *विचार कीजिए* वर्षा के समय यदि किसी पात्र को खुले स्थान में सीधे रखें तो वह जल्द से पूर्ण हो जाएग

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भगवत्कृपा - भाग - १३९ (एक सौ उनतालीस)

5 सितम्बर 2022
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भारतीय वांग्मय के अनुसार सृष्टि से लेकर संहार पर्यंत समस्त क्रियाकलाप *भगवत्कृपाप्रसूत* ही है ! समस्त कल्याण गुणों की आश्रयभूता एवं हेय गुणों से सर्वथा रहित *भगवत्कृपा* समस्त प्राणियों पर सदैव बरसती र

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भगवत्कृपा - भाग - १४० (एक सौ चालीस )

5 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* की महिमा का वर्णन करते हुए शास्त्र थकते नहीं हैं ! शास्त्रों में अपवर्ग प्राप्त करने के लिए कर्म , ज्ञान , भक्ति और जितने भी साधन बताए गए हैं वह साध्य को प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र

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भगवत्कृपा - भाग - १४१ (एक सौ इकतालीस)

5 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* में कर्म सहायक होते हैं ऐसा कहा जाता है ! इस पर विचार किया जाय कि कर्मादि किस प्रकार *भगवत्कृपा* प्राप्ति में सहायक होते हैं ! *भगवत्कृपा की प्राप्ति में साधन प्रमुख हैं तीन !**ज्ञान

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भगवत्कृपा - भाग - १४२ (एक सौ बयालीस)

6 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* की चर्चा करते हुए प्राय: एक प्रश्न मन में उठना स्वाभाविक है कि आखिर *भगवत्कृपा* का स्वरूप क्या है ? *भगवत्कृपा* विश्वव्यापी है या एक देशीया है ? अर्थात प्राणिमात्र *भगवत्कृपा* का पात्र है

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भगवत्कृपा - भाग - १४३ (एक सौ तिरालीस)

6 सितम्बर 2022
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बिना प्रभु परायण बने *भगवत्कृपा* नहीं हो सकती ! *अब प्रश्न ये उठता है कि प्रभु परायण कैसे बना जाय ?* और संतमत से यह तो निर्विवाद सिद्ध है कि मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र और फल भोगने में परतंत्र है !

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भगवत्कृपा-भाग-१४४ (एक सौ चौरालीस)

8 सितम्बर 2022
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भगवान परात्पर ब्रह्म होते हुए भी सर्वथा निर्वैयक्तिक ,लोकातीत , निरासक्त तथा जीवो के परम सुहृद हैं ! वे इस सृष्टि रूप पुरी को रच कर इसमें अनुप्रविष्ट हुए हैं ! इसी में उत्पन्न होकर विश्वात

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भगवत्कृपा - भाग - १४५ (एक सौ पैंतालीस)

8 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* भगवान के अनुग्रह का ही स्वरूप है ! बिना *भगवत्कृपा* के , बिना उनके अनुग्रह के इस संसार में कुछ भी नहीं होता ! जीव का कल्याण तो कदापि नहीं हो सकता ! जब ईश्वर की अनुग्रह होती है तो :--

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भगवत्कृपा - भाग - १४६ (एक सौ छियालीस)

11 सितम्बर 2022
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ईश्वरीय अनुग्रह *(भगवत्कृपा)* का रहस्य सदा अज्ञात ही रहेगा ! कब ? कहां ? कैसे ? और किस पर ईश्वर का अनुग्रह हुआ इसकी व्याख्या मानवीय बुद्धि के तर्कणा से संभव नहीं है *भगवत्कृपा* अपनी रहस्यमयी दृष्टि से

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भगवत्कृपा - भाग - १४७ (एक सौ सैंतालीस)

11 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* के कार्यों का पता उनके परिणामों से लगता है !संतों एवं भक्तों के चरित्र तथा शास्त्र इसके प्रमाण हैं ! कब ? किसके ऊपर *भगवत्कृपा* होगी ! किस प्रकार की *भगवत्कृपा* हुई है , इसे देखने के लिए ,

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भगवत्कृपा - भाग - १४८ (एक सौ अड़तालीस)

11 सितम्बर 2022
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जीव संसार में अपने कर्मबंधनों से बंधा हुआ है ! इन कर्मबंधनों का मूल मंत्र ममता एवं कामना में है ! *जब हो पूर्ण समर्पण मन से ,*

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भगवत्कृपा - भाग - १४९ (एक सौ उनचास )

12 सितम्बर 2022
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ईश्वर का अनुग्रह या *भगवत्कृपा* तब प्राप्त होती है जब हम उसको प्राप्त करना चाहते हैं ! भगवान हमको तभी देखते हैं जब हम भगवान को हृदय से देखने का प्रयास करने लगते हैं !जब तक मनुष्य भगवान को याद नहीं करत

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भगवत्कृपा - भाग - १५० (एक सौ पचास)

13 सितम्बर 2022
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इस सृष्टि का एक भी कण , संपूर्ण काल का एक ही क्षण ऐसा नहीं है जिस पर भगवत कृपा ना हो:--*सचराचर में व्याप्त है , भगवत्कृपा महान !**भगवत्कृपा से शून्य न कोई भी स्थान !!*

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भगवत्कृपा - भाग - १५१ (एक सौ इक्यावन)

13 सितम्बर 2022
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विकास की कसौटी यही है की प्रेरणा से हम कहां तक लाभ उठा सकते हैं और हमारी चेतना से इसका कहां तक सायुज्य स्थापित हो सकता है ! अपनी पसंद और *भगवत्कृपा* इन दोनों में से किसी एक को चुनने में हम सदैव स्वाधी

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भगवत्कृपा - भाग - १५२ (एक सौ बावन)

14 सितम्बर 2022
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प्राय: सभी पौरस्त्य और पाश्चात्य ईश्वरवादियों में धर्मों में कृपा के हस्तक्षेप एवं कार्य को ही आध्यात्मिक जीवन की सफलता - सिद्धि का सर्वोच्च साधन माना है , किंतु लोगों की धारणा है कि यह हस्तक्षेप रहस्

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भगवत्कृपा - भाग - १५३ (एक सौ तिरपन)

14 सितम्बर 2022
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हमें अपने आप को पूर्णरूप से *भगवान की कृपा* पर आश्रित कर देना चाहिए , क्योंकि भगवान ने कृपा और प्रेम का प्रसार कर के ही जगत को ऊपर उठाने का भार स्वीकार किया है ! भगवान का प्रेम ही जगत के कल्याण

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भगवत्कृपा - भाग - १५४ (एक सौ चौव्वन)

15 सितम्बर 2022
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किसी भी वस्तु के संबंध में हमारा मूल्यांकन अत्यंत छिछला और अज्ञानमूलक होता है ! जिसे हम भला - बुरा , शुभ - अशुभ , प्रसन्न - विपन अथवा सहायक - बाधक मानते हैं ! हम सब दयालु विधाता के काम की ही वस्तु है&

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भगवत्कृपा - भाग - १५५ (एक सौ पचपन)

15 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* क्या है ? हम *भगवत्कृपा* को कैसे समझ सकते हैं ! *आईये इस पर सूक्ष्मता से विचार करके समझने का प्रयास किया जाय:-* जब हम अपने को भ्रान्त और निराश्रित अनुभव करते हैं और आगे बढ़ने का रास्ता नही

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भगवत्कृपा - भाग - १५६ (एक सौ छप्पन)

16 सितम्बर 2022
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यह संसार का नियम है कि जो जैसा बीज बोएगा वैसा ही काटने को पाएगा ! इसी बात को मानस में बाबा जी ने लिखा है :---*करम प्रधान विश्व रचि राखा !**जो जस करइ सो तस फल चाखा !!*

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भगवत्कृपा - भाग - १५७ (एक सौ सत्तावन)

16 सितम्बर 2022
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*भगवान की कृपा* कहने से सामान्यतः यही समझ में आता है कि भगवान अलग है और उनकी कृपा कोई अन्य वस्तु या शक्ति है ! पर बात वस्तुतः ऐसी नहीं है ! जैसे शीतल चांदनी और चंद्र दो कहलाने पर भी एक ही है इसी प्रका

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भगवत्कृपा - भाग - १५८ (एक सौ अट्ठावन)

16 सितम्बर 2022
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*भगवत्कृपा* से ही शरणागति प्राप्त होती है ,और जीव माया मुक्त भी हो जाता है ! *भगवत्कृपा* से ही साधन - भजन की प्रवृति सहज सुलभ होती है ! गीता में भजन करने की चार विधियां बताई गई है :--*चतुर्विधा

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भगवत्कृपा - भाग - १५९ (एक सौ उनसठ)

16 सितम्बर 2022
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विश्व ब्रह्मांड का संचालन कृपाशक्ति की महिमा से ही हो रहा है ! यह अनंत रूप धारण करके विश्व का कल्याण कर रही है ! सूर्य में यही दीप्तिरूप है तथा विश्व में सबको समान रूप से प्रकाश और ऊष्मा प्रदान करके ज

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भगवत्कृपा - भाग - १६० ( एक सौ साठ )

16 सितम्बर 2022
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भगवान की शरण में जाने से क्या होता है ? मानव जीवन भर तमाम प्रकार के माया जाल में फंस कर धर्म के रास्ते से दूर हो जाता है ! अंत समय में उसे प्रभु स्मरण आता है ! प्रभु बड़ा दयालु है , जो भी उसकी शरण में

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भगवत्कृपा - भाग - १६१ (एक सौ इकसठ)

18 सितम्बर 2022
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वैसे तो समस्त प्राणी रात दिन अपने अपने कार्यों में लगे हैं , परंतु मनुष्य सबसे अधिक व्यस्त प्राणी माना जा सकता है , क्योंकि अन्य प्राणियों की अपेक्षा उसकी बुद्धि अधिक विकसित है ! समस्त जड़ चेतनवर्ग की

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भगवत्कृपा - भाग - १६२ (एक सौ बासठ)

18 सितम्बर 2022
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यह संसार स्वार्थ का है , बाबाजी मानस में लिखते हैं :--*सुर नर मुनि सब कर यह रीती !**स्वारथ लाइ करहिं सब प्रीती !!* (मानस) जहां

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भगवत्कृपा - भाग - १६३ (एक सौ तिरसठ)

18 सितम्बर 2022
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हम बात *भगवत्कृपा* की करते हैं किसी - किसी को इसका अनुभव भी नहीं हो पाता , परंतु अब हम अपने जीवन पर *भगवत्कृपा* का दर्शन करने का प्रयास करेंगे जो हमारे जन्म काल से लेकर जीवन पर्यंत हमारे साथ छाया के स

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भगवत्कृपा - भाग - १६४

12 अक्टूबर 2022
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*भगवत्कृपा* चिरकाल से ही सृष्टि के प्राणियों के हित की दृष्टि से क्रियाशील हो रही है , परंतु मनुष्य इतना स्वार्थी है कि वह अपने क्षुद्र अहंकार का आश्रय लेकर जीवन में घटित होने वाली परिस्थितियों का निर

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भगवत्कृपा - भाग - १६५ (एक सौ पैसठ

17 अक्टूबर 2022
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यदि ध्यान से देखा जाए तो भगवान का स्वभाव ही *अहैतुकी कृपा* करना है ! भगवान सदैव कृपा बरसाते रहते हैं कोई भी क्षण *भगवत्कृपा* के बगैर तो होता ही नहीं ! होता तुलसीदास जी लिखते हैं*तुलसी उराउ होत र

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भगवत्कृपा - भाग - १६६ (एक सौ छियासठ )

17 अक्टूबर 2022
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गोस्वामी तुलसीदास जी की पवित्र दैवी अनुभूति में श्री राम रम गए ! वे उनके हृदय और तत्व प्रेरित अप्रतिहत वाणी के अधिष्ठान हैं ! उनके सात्विक भावों की साकार सजीव मूर्ति हैं श्रीराम ! जिनके अंग में अनुग्र

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भगवत्कृपा - भाग - १६७ (एक सौ सड़सठ )

17 अक्टूबर 2022
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जब कैकेयी ने भगवान श्रीराम को वनवास जाने का प्रसंग सुनाया तो वह बहुत ही प्रसन्न होकर बोल पड़े ! उनके मन में कोई भी द्वेष नहीं था , भगवान श्री राम बोले :--*बोले बचन विगत सब दूषन !**मृदु मंजुल जनु बाग ब

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