यह संसार स्वार्थ का है , बाबाजी मानस में लिखते हैं :--
*सुर नर मुनि सब कर यह रीती !*
*स्वारथ लाइ करहिं सब प्रीती !!*
(मानस)
जहां स्वार्थ है वहां प्रेम नहीं हो सकता , यही कारण है कि संसार में किसी की किसी के प्रति हेतु रहित कृपा का प्रश्न ही नहीं होता , किंतु इस अनंत विश्व ब्रह्मांड की विलक्षण रचना पर ध्यान देने से पूर्व ब्रह्मांड नायक की *अहैतुकी कृपा* स्पष्ट रूप से सर्वत्र विद्यमान दिखाई देती है !
*देव और दैत्य होय पण्डित या मूर्ख होय ,*
*सज्जन - दुर्जन चाहे राजा हो या भिखारी हो !*
*भक्त हो या द्रोही होय कामी हो या क्रोधी होय ,*
*संत साधु होवे चाहे पापी व्यभिचारी हो !!*
*सब पे समान कृपा करते कृपा निधान ,*
*कोई दुराग्रही हो या श्रेष्ठ व्रतधारी हो !*
*मिलती उसी को कृपा जिसने कृपा को चाहा ,*
*"अर्जुन" की भाँति चाहे निपट अनारी हो !!*
(स्वरचित)
उनकी सर्व समर्थ सर्वव्यापक कृपा देव - दानव , पंडित - मूर्ख , सज्जन - दुर्जन , राजा - रंक , भक्त - अभक्त सभी पर समान रूप से बरस रही है ! सूर्य का प्रकाश , वायु की शीतलता , जल की तरलता तथा अन्न की प्राणदायिनी शक्ति का लाभ समस्त प्राणियों को समान रूप से प्राप्त हो रहा है ! पृथ्वी , चंद्रमा एवं सौरमंडल में नियमित रूप से होने वाली विभिन्न गतिविधियों का संसार के प्राणियों की उत्पत्ति , स्थिति एवं उनके भरण-पोषण तथा संरक्षण में समान रूप से सहायता मिल रही है ! मनुष्य , पशु - पक्षी , सर्प , कीट-पतंगादि विविध प्राणी अपने अपने स्वभाव के अनुसार जन्मते और मरते हैं ! *प्रश्न होता है कि यह सब किसकी अध्यक्षता में और किसकी सत्ता में हो रहा है ?* कठोपनिषद बताता है :--
*भयादस्याग्निस्तपति भयात्तपति सूर्य: !*
*भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चम: !!*
( कठोपनिषद )
*अर्थात :-* "इस परमेश्वर के भय से अग्नि तपता है , इसी के भय से सूर्य तपता है और इसी के भय से इंद्र , वायु और पाँचवाँ मृत्यु दौड़ता है !" उस अनंत सामर्थ्यशाली भगवत-सत्ता की सार्वभौम व्यवस्था पर जरा सूक्ष्म दृष्टि से एवं सूक्ष्म बुद्धि से विचार करें तो हमें संसार के प्राणिमात्र के प्रति उनकी अनंत *अहैतुकी कृपा* का विस्तार दिखाई देगा !
*वर्षा के हेतु वन - पर्वत प्रगट कीन्ह ,*
*औषधि - खनिज मानव हित प्रकटायो है !*
*भिन्न भिन्न वृक्षन में खाटे मीठे फल दीन्ह ,*
*मानव के सहायक रूप पशु भी बनायो है !!*
*जीवन प्रदान कियो साधन अनेक दीन्ह ,*
*ईश्वर ने कहीं कोई कर न लगायो है !*
*"अर्जुन" कृपा के गार दीनबन्धु हैं उदार ,*
*सब पे समान रूप कृपा बरसायो हैं !!*
(स्वरचित)
बड़े-बड़े पर्वतों एवं वनों के कारण संसार में वर्षा की नियति व्यवस्था , वनस्पतियों , औषधियों एवं खनिज वर्ग की उत्पत्ति , अनेक प्रकार के वृक्षों से भिन्न भिन्न प्रकार के स्वादिष्ट फल की उत्पत्ति , भिन्न-भिन्न देशों की जलवायु के अनुसार अन्न एवं वनस्पतियों की उत्पत्ति , गाय , भैंस , बकरी आदि से दूध की उत्पत्ति , *किसके लिए किस उद्देश्य की गई है ? परमात्मा इनके बदले हमसे क्या मूल्य ले रहे हैं ?* यदि वे परम कृपालु ईश्वर महासागरों के खारे जल सूर्य की गर्मी से वाष्प के रूप में परिवर्तित कर बादलों के माध्यम से मीठा कर वर्षा द्वारा पृथ्वी पर गिराने तथा नदी एवं झरनों में प्रवाहित करने की व्यवस्था न करते तो सृष्टि की क्या दशा होती ? क्या चंद्रमा एवं सूर्य के समान शीतलता , प्रकाश एवं ऊर्जा संसाधन को निशुल्क देने की व्यवस्था कोई बड़े से बड़ा बिजली घर कर सकता है ? यदि आधुनिक नगर निकायों के नियमानुसार संसार के निवासियों पर उपर्युक्त सुख - सुविधा पूर्ण व्यवस्था के लिए टैक्स लगा दिया जाता तो क्या हमारी जीवन यात्रा सुलभ एवं सुखद हो सकती थी ? यह तो समष्टि जगत पर उनकी नित्य *अहैतुकी कृपा* का ही प्रसाद है , जिनका लाभ देश-काल , जाति-धर्म , ऊंच-नीच की भेद भावना से रहित होकर समस्त संसार उठा रहा है ! उन विश्वंभर की अनंत *अहैतुकी कृपा* की माप तोल का अनुमान करने योग्य पैमाना संसार में किसी के पास नहीं है ! यही इस सृष्टि पर *विशेष भगवत्कृपा* है !