*भगवत्कृपा*;प्राप्त करने के लिए कुछ अधिक करने की आवश्यकता नहीं है बस भगवान पर एवं उनकी कृपा पर विश्वास तो होना ही *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सबसे सरल साधन है ! मनुष्य को सदैव यह विश्वास होना चाहिए कि जो हुआ *भगवत्कृपा* से ठीक हुआ , जो हो रहा है उस पर भी *भगवत्कृपा* है और जो होगा *भगवत्कृपा* से ठीक ही होगा ! जिस दिन मनुष्य को यह पूर्ण विश्वास हो जाता है कि हम तो कठपुतली मात्र हैं नचाने वाला तो कोई और है ! उसी दिन से भगवान पर पूर्ण विश्वास का फल *असीम भगवत्कृपा* के रूप में प्राप्त होता है ! बालक प्रहलाद ने माता के गर्भ में ही *श्री राम के नाम की महिमा* को सुना था ! जन्म लेने के बाद उसको कोई गुरु नहीं मिला , किसी ने राम नाम की दीक्षा नहीं दी परंतु उसको पूर्ण विश्वास था की राम ही सर्वत्र व्याप्त है , उनकी कृपा ही सब पर निरंतर बरस रही है ! इसी *भगवत्कृपा* का पूर्ण विश्वास करके प्रहलाद ने एकमात्र साधन भगवान्नाम उच्चारण का प्रारंभ किया ! छोटे से बालक प्रहलाद ने और कोई तपस्या नहीं की , गुरुकुल में जाकर भी वे भगवन्नाम उच्चारण ही करते रहे :--
*गुरु की चटशाला में कुमार ,*
*प्रभु नाम की रटन लगाने लगे !*
*अपनी कक्षा के बच्चों में ,*
*बस नाम की अलख जगाने लगे !!*
*सब भगवत्कृपा से होत यहाँ ,*
*सबको विश्वास दिलाने लगे !*
*जय राम राम श्री राम राम ,*
*गा गाकर कुंवर सुनाने लगे !!*
(स्वरचित)
हिरणाकश्यप प्रहलाद की भक्ति भाव से बहुत ही रुष्ट हुआ और उसने अपने पुत्र को प्राण दंड देने का विचार किया , परंतु प्रहलाद को इसकी चिंता ना हुई *क्योंकि प्रहलाद को भगवन नाम किस शक्ति पर भगवत्कृपा पर पूर्ण विश्वास था* और जिसे पूर्ण विश्वास होता है वह कभी किसी से भयभीत नहीं होते ! क्योंकि :--
*बात करते, काम करते, बैठते उठाते समय !*
*राह चलते, नाम लेते, विचरते हैं वे अभय !!*
*साथ मिलकर, प्रेम से, हरिनाम करते गान जो !*
*मुक्त होते मोह से, कर प्रेम अमृत पान सो !!*
(संकलित)
जब प्रहलाद को *भगवत्कृपा* पर पूर्ण विश्वास हो गया तो बालक प्रहलाद पर *भगवत्कृपा* बरसने लगी ! दैत्यराज हिरणाकश्यप के सारे प्रयास असफल हो गए परंतु भक्त प्रहलाद का बाल बांका ना हुआ ! अंत में हिरणाकश्यप ने स्वयं उसको मारने का बीड़ा उठाया :--
*दैत्य गरजि कर बचन सुनावा !*
*एहि पापिहिं मैं बहुत खेलावा !!*
*दिग्गज देव सकल मोहिं डरहीं !*
*केहि के बल तैं गरजन करहीं !!*
*अबहीं काटि लेंव तव शीशा !*
*हमहिं बताव कहाँ जगदीशा !!*
(स्वरचित)
पिता ने पूछा तेरा हरि पर कहां है ? पूर्ण विश्वास के साथ भक्त प्रहलाद ने कहा :- *कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां ईश्वर ना हो* दैत्य ने अपने पुत्र को खंभे से बांध लिया और जैसे ही अपने पुत्र को मारना चाहता है ! वाह रे अकारण करुणावरुणालय , दीनदयाल भगवान भक्तों के लिए अनेकों प्रकार के रूप धारण करके प्रकट हो जाते हैं ! आज *भगवत्कृपा* प्रहलाद पर बरस पड़ी और भगवान ने नरसिंह का अवतार धारण करके आतताई हिरणाकश्यप का वध किया ! यह *भगवत्कृपा* पर पूर्ण विश्वास का ही फल है कि नारायण को बैकुंठ छोड़करके करके अपने भक्तों के प्राण बचाने के लिए आना पड़ा ! कोई साधन करें या ना करें *भगवान एवं उनकी कृपा पर पूर्ण विश्वास करके भी भगवत्कृपा प्राप्त किया जा सकता है* बिना विश्वास कुछ भी प्राप्त कर पाना सम्भव नहीं है !