चौरासी लाख योनियों में दिव्य मानव योनि पाकर के जीव कृतार्थ हो जाता है , और उसको मानव जीवन में अनेकों पुरुषार्थ करने को मिलते हैं ! अपने पुरुषार्थ के द्वारा वह अनेकों सफलताएं प्राप्त करता है *परंतु यह कभी नहीं विचार करता कि मानव जीवन का परम पुरुषार्थ क्या है ?* मानव जीवन का परम पुरुषार्थ है प्रभु चरणों में पूर्ण समर्पण करके *भगवत्कृपा* प्राप्त करना ! अपने आप को सदा के लिए प्रभु में स्थापित कर देना , *भगवत्कृपा* के भरोसे ही रहना और उनकी आज्ञा का पालन करना आदि ! यथा :--
*एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास !*
*एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास !!*
प्रभु में विश्वास और उनके चरणों का आश्रय स्वीकार करते ही विषयों से विरक्ति होने लगती है और अहंता - ममता के कारण जो भूल हुई है वह *भगवत्कृपा* से मिट जाती है ! अहंता - ममता का अंधकार पूर्ण आवरण *भगवत्कृपा* की शक्ति से छिन्न-भिन्न हो जाता है ! यदि मनुष्य एक बार सच्चे हृदय से प्रभु की शरण में चला जाय तो वह कृपालु उसकी भूल को भी क्षमा कर देते हैं वस्तुतः उनका स्वभाव ही क्षमाशील है ! अपने प्रपन्न की भूल पर ध्यान भी नहीं देते , वह भक्तवत्सल है ! जैसे गाय अपने नवजात शिशु को स्नेह पूर्वक चाट कर उसे शुद्ध निर्मल बना देती है उसी प्रकार वे भी प्रभु अपने भक्तों के अवगुण ध्यान में न लाकर अथवा कृपा पूर्वक नष्ट करके उन्हें (भक्तों को) पवित्र बना देते हैं :--
*चरण शरण में जो गया , हो गया भव से पार !*
*भगवत्कृपा से प्राप्त हो , भगवत्कृपा अपार !!*
*जैसे गैया वत्स को , चाट के करती साफ !*
*वैसे अवगुण भक्त के , प्रभु कर देते माफ !!*
(स्वरचित)
नृसिंह अवतार में भक्त प्रहलाद को जिह्वा से चाट कर अपूर्व कृपा की वर्षा की ! शरणागत के लिए *कृपापरवश* प्रभु जब सेठ तथा दासी का रूप तक बना लेते हैं , उनकी कृपा द्वारा जहर से अमृत बनना तो साधारण सी बात है ! *नरसी मेहता के लिए* वे (माहेरा) भरने सेठ बनकर प्रकट हुए ! *सखूबाई के लिए* दासी भाव से सारा कार्य करते हुए उन्होंने भक्तवत्सलता का अद्भुत स्नेहमय भाव प्रकट किया ! *मीरा के लिए* विष को अमृत बना दिया ! कहां तक गिनाया जाय ! उनकी भक्तवत्सलता के अनंता आख्यान हैं ! संतों ने कहा है :--
*राम भरोसो राखिये , ऊणत नहीं काई !*
*पूरणहारा पूरसी कलपो मत भाई !!*
जब से शरीर मिला है सब व्यवस्था हो रही है अतः संकल्प विकल्प को त्याग कर सबके सहायक श्री राम का भजन करना चाहिए :--
*जब से यह बानक बना सब सूझ बनाई !*
*दरिया विकलप मेट के भजो राम सहाई !!*
सभी प्रकार की व्यवस्था करने वाली हमारी सच्ची मां है *भगवत्कृपा* बच्चा (जीवात्मा) जब माँ *(भगवत्कृपा)* को भूलकर वाह्य विषयों से ही खेलने लगता है और अधिक उत्पात करता है तब कृपामयी मां प्रतिकूल परिस्थितिरूपा लाठी दिखाकर उधर से हटाती है ! पुचकार एवं फटकार दोनों स्थितियों में बालक (भक्त) मां *(भगवत्कृपा)* की गोद में ही जाना चाहता है क्योंकि उसे एकमात्र भरोसा मां अर्थात *भगवत्कृपा* का ही है :---
*"अर्जुन" इस संसार पर , भगवत्कृपा अनन्त !*
*भक्तों के हित के लिए , प्रकट होत भगवन्त !!*
*मिले कृपा फल उसी को , जिसको है विश्वास !*
*जिसे नहीं विश्वास है , रहता वहीं निराश !!*
(स्वरचित)
संसार में भगवान और उनकी कृपा पर विश्वास रखने वाले ही *भगवत्कृपा* का अनुभव करके उसके पात्र बन पाते हैं !