भगवान की शरण में जाने से क्या होता है ? मानव जीवन भर तमाम प्रकार के माया जाल में फंस कर धर्म के रास्ते से दूर हो जाता है ! अंत समय में उसे प्रभु स्मरण आता है ! प्रभु बड़ा दयालु है , जो भी उसकी शरण में जाता है उसको त्रिविध ताप से मुक्ति मिल जाती है ! भगवत शरण में जाने से उसके सारे पाप मिट जाते हैं ! भगवान की शरण में जाने से *विशेष भगवत्कृपा* प्राप्त होती है ! *भगवान स्वयं कहते हैं :-* मेरे परायण हुआ भक्त तो मेरी कृपा से सनातन अविनाशी पद को प्राप्त हो जाता है , मेरी कृपा से मेरे आश्रित रहने वाला पुरुष समस्त संकटों ( चाहे व्यवहारिक संकट हो अथवा परमार्थिक) से अनायास ही पार हो जाएगा ! यदि तू (हे अर्जुन) अहंकार के कारण मेरी कृपा की बात को नहीं सुनेगा तो नष्ट हो जाएगा ! भगवान के कैसे सुदृढ़ वचन है ! यथा :---
*सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः !*
*मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम् !!*
*मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि !*
*अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि !!*
(श्रीमद्भगवद्गीता)
भगवान के आवाहन भरे आश्वासन को नहीं मानने से ही यह जीव त्रितापानल में जल रहा है ! देव दुर्लभ मानव शरीर और भगवान की अनुकूलता (अनुग्रह प्राप्ति) का स्वर्ण अवसर *भगवत्कृपा* से ही मिला है ! हमें सावधानी से इसका सदुपयोग कर लेना चाहिए !
*नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं ,*
*प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारम् !*
*मयानुकूलेन नभस्वतेरितं ,*
*पुमान् भवाब्धिं न तरेत्स आत्महा !!*
( श्रीमद्भागवत )
*अर्थात्:-* यह मनुष्य शरीर समस्त शुभ फलों की प्राप्ति का मूल है , और अत्यंत दुर्लभ होने पर भी मेरी कृपा से अनायास ही सुलभ हो गया है ! इस संसार सागर से पार जाने के लिए यह एक सुदृढ़ नौका है ! मेरी शरण ग्रहण करने मात्र से गुरुदेव इसके केवट बनकर पतवार का संचालन करने लगते हैं ! स्मरण मात्र से ही मैं अनुकूल कृपा वायु के रूप में इसे लक्ष्य की ओर बढ़ाने लगता हूं ! इतनी सुविधा होने पर भी जो इस शरीर के द्वारा संसार सागर से पार नहीं हो जाता वह तो अपने हाथों अपने आत्मा का हनन अध:पतन कर रहा है !
*इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति ,*
*न चेदिहावेदीन्महती विनष्टि: !*
*भूतेषु भूतेषु विचित्य धीरा: ,*
*प्रेत्यास्माल्लोकादमृता भवन्ति !!*
( केनोपनिषद )
यदि इस जन्म में ब्रह्म को जान लिया , तब तो ठीक और यदि उसे इस जन्म में ना जाना तब तो बड़ी भारी हानि है ! बुद्धिमान लोग उसे समस्त प्राणियों में उपलब्ध करके इस लोक से जाकर (मरकर) अमर हो जाते हैं ! ऐसे लोगों पर *विशेष भगवत्कृपा* होती है ! प्रत्येक मनुष्य को *विशेष भगवत्कृपा* प्राप्त करने का प्रयास अवश्य करते रहना चाहिए !