स्वधर्म के आचरण से शुद्ध सात्त्विक हृदय में आर्त्तभाव का उन्मेष तथा भगवान के नाम रूप चिंतन में भक्तों का घोर परिश्रम --- यह दोनों ही मिलकर *असीम भगवत्कृपा* का उन्मीलन करते हैं ! जिससे साधक कृतकार्य हो जाता है ! *भगवत्कृपा* का यही रहस्य है ! अपार दयार्णव भगवान जीव को संकट से मोक्ष प्रदान करें यही विनम्र प्रार्थना है ! यथा :--
*यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा ,*
*भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति !*
*किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं ,*
*करोतु मे$दभ्रदयो विमोक्षणम् !!*
(श्रीमद्भा०)
*अर्थात्:-* धर्म , अर्थ काम और मोक्ष की इच्छा वाले पुरुष जिनका भजन करते हुए अपनी अभीष्ट गति प्राप्त करते हैं यही नहीं जो उन्हें नाना प्रकार के भोग और स्वस्थ शरीर प्रदान करते हैं ! वे परम दयालु मेरा उद्धार करें ! इस प्रकार *भगवत्कृपा* प्राप्त करने की कामना करनी चाहिए ! *भगवत्कृपा* एक महती शक्ति है ! जैसा कि सभी जानते हैं पांडव पांच ही थे और इधर कौरव सौ थे , और फिर उनके संरक्षक - भीष्म , द्रोण , कर्ण , अश्वत्थामा , कृतवर्मा , कृपाचार्य जैसे महान बलशाली और सुप्रसिद्ध महायोद्धा थे ! पांडवों की सेना ७ औक्षोहिणी थी और कौरवों की सेना ११ औक्षोहिणी ! कौरव दल में नारायणी सेना भा अस्त्र -;शस्त्रों से सुसज्जित थी , जिसे स्वयं दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से आग्रह पूर्वक मांगा था ! इतना होते हुए भी कौरव पांडवों का बाल तक बांका ना कर सके ! यह भगवत कृपा ही थी:--
*सो धों कहा जु न कियो सुजोधन ,*
*अबुध आपने मान जरै !*
*प्रभु प्रसाद सौभाग्य विजय जस ,*
*पाण्डव नै बरिआइ बरै !!*
(विनय पत्रिका)
यही दिव्य शक्ति *भगवत्कृपा* कहलाती है ! यह *कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुम* समर्थ है ! जिसको पुरुष सोच नहीं सकता उसे यह *भगवत्कृपा* चरितार्थ कर देती है ! भगवान *सहज कृपाला* हैं ! उनकी महिमा कोई नहीं जान सकता ! क्योंकि :---
*प्रभु सहज कृपाला दीनदयाला ,*
*सहज कृपा बरसावैं !*
*सबजन हितकारी अघतम हारी ,*
*महिमा वेद सुनावैं !!*
*जब सब बल थाकै तब प्रभु ताकैं ,*
*करहिं कृपा असुरारी !*
*कोई जान न पाया उन कर माया ,*
*मोहैं सुर मुनि झारी !!*
(स्वरचित)
जब मनुष्य आर्त्त होकर उनकी शरण में चला जाता है तो भगवान करुणा करके उसको अपने अंक में भर लेते हैं ! यही *भगवत्कृपा* की महानता है ! यही *भगवत्कृपा* की महती शक्ति है ! प्रत्येक मनुष्य को *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का प्रयास करते रहना चाहिए ! वैसे तो *भगवत्कृपा* प्राप्त करने के एक से बढ़कर एक साधन बताये गये हैं ! परंतु साधारण मनुष्य इन सभी साधनाओं को नहीं साध सकता ! तो क्या साधारण मनुष्य *भगवत्कृपा* नहीं प्राप्त कर सकता ? क्या *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का कोई सरल साधन नहीं है ? *तुलसीदास जी* ने कहा कि मैं तुम्हें सबसे सरल साधन बता रहा हूँ कि :- तुमको यदि *भगवत्कृपा* प्राप्त करने की कामना है तो मन , बचन एवं से चतुराई का त्याग करके भगवान का भजन करो , बस *भगवत्कृपा* मिल जायेगी ! *गोस्वामी जी* ने लिखा :--
*मन क्रम बचन छाँड़ि चतुराई !*
*भजत कृपा करिहहिं रघुराई !!*
(मानस)
भजन करने से *भगवत्कृपा* प्राप्त हो सकती है , परंतु भजन किस प्रकार किया जाय ! यह बताते हुए *गोस्वामी जी* कहते हैं :- मन वचन और कर्म से चतुराई अर्थात सयाना पन छोड़ कर के यदि भगवान का भजन किया जाय तो *भगवत्कृपा* स्वमेव बरसने लगती है ! इससे सरल साधन कोई अन्य नहीं दिखाई पड़ता जिससे कि *भगवत्कृपा* प्राप्त की जा सके ! तो यदि *भगवत्कृपा* की कामना है तो निश्छल मन से भगवान का भजन करना ही पड़ेगा !