जीव को निरंतर *भगवत्कृपा* का अनुभव करते रहना चाहिए ! *भगवत्कृपा* पर विश्वास बनाए रखकर मनुष्य को सदैव अपना पुरुषार्थ करते रहना चाहिए ! ईश्वर जो भी करता है अच्छा ही करता है उसकी कृपा सदैव जीव के लिए सकारात्मक ही होती है यह दृढ़ विश्वास मन में सदैव बना रहना चाहिए ! क्योंकि *भगवत्कृपा* कभी भी नकारात्मक नहीं हो सकती ! आवश्यकता है *भगवत्कृपा* को पहचानने एवं अनुभव करने की:--
*भगवत्कृपा अमोघ है कर इसकी पहचान !*
*कर्म किये जा फल की चिन्ता मत कर तू नादान !!*
*करके कर्म समर्पित कर दे प्रभु चरणों में आन !*
*मिल जायेगी एक दिन भगवत्कृपा महान !!*
(स्वरचित)
पुरुषार्थ करने वाले को यदि असफलता मिलती है तो वह अपने कर्म में त्रुटि तथा दूसरों को बाधक मानकर दुखी होता है असफलता में अपने भाग्य को कोसकर रोता है , परंतु जो प्रत्येक फल में *भगवत्कृपा* से भरा हुआ भगवान का मंगलमय विधान देखता है वह न तो प्रचुर संपत्ति में हर्षित होता है और ना ही भारी विपत्ति में रोता है वह शांतिपूर्ण चित्त से निरंतर अनुकूलता-प्रतिकूलता दोनों में भगवान का मंगलमय विधान मानकर उसी में कल्याण मानता हुआ आनन्दमग्न रहता है ! वह हर अवस्था में भगवान की सुहृदता तथा *भगवत्कृपा* के दर्शन करता है ! पर यह स्थिति किसी कारणवश नहीं बन पाती है तो इसका एक उपाय अपने शास्त्रों ने बताया है और वह है भगवान के नाम का स्मरण एवं भगवान्नाम का आश्रय | यथा :--
*वेदानां सारसिद्धान्तं सर्वसौख्यैककारणम् !*
*रामनाम परं ब्रह्म सर्वेषां प्रेमदायकम् !!*
*तस्मात् सर्वात्मना रामनाम मांगल्यकारणम् !*
*भजध्वमवधानेन त्यक्त्वा सर्वदुराग्रहान् !!*
*अर्थात्:-* यदि कोई साधन ना हो पावे तो *भगवत्कृपा* प्राप्त करने का सबसे सरल साथ भगवान्नाम का स्मरण एवं भगवन्नाम का आश्रय ! चारों वेदों का सार सिद्धांत , सब सुखों का एकमात्र कारण और सबको प्रेम प्रदान करने वाला भगवान राम का नाम ही परब्रह्मरूप है ! मन , वचन और कर्म से सावधानी पूर्वक सारे दुष्ट अभिनिवेशों को त्याग कर भगवान राम के नाम का भजन करो ! यह औषधि अत्यंत गुणकारी है जिसके सेवन का अधिकारी प्रत्येक व्यक्ति है इस सरल साधन को जो अपने जीवन में अपनाता है उसे निश्चित रूप से *भगवत्कृपा* के दर्शन प्राप्त होते हैं ! प्रत्येक मनुष्य को सदैव निश्चय रखना चाहिए , बार-बार यह निश्चय करना चाहिए कि मुझ पर *विशेष भगवत्कृपा* है और यह *भगवत्कृपा* क्षण-क्षण हो रही है ! ऐसा दृढ़निश्चय होने पर क्षण-क्षण में *भगवत्कृपा* का अनुभव होने लगता है ! यह कल्पना नहीं है ! यह तो सत्य में सत्य का दर्शन है ! यह कृपा आपकी अपनी निजी संपत्ति है ! जैसे माता का वात्सल्य बच्चे की अपनी निजी संपत्ति है वैसे ही *भगवत्कृपा* को ना जानने और ना मानने के कारण हम दीन और दुखी हो रहे हैं ! वस्तुत: हमारे पास *भगवत्कृपा* की अमोघ संपत्ति है ! उस *भगवत्कृपा* का आश्रय लेकर यदि हम मन को वश में करना चाहे तो मन वश में हो जाएगा ! विघ्न बाधाओं से बचना चाहेंगे तो उससे रक्षा हो जाएगी ! दोष और पापों से छूटना चाहेंगे तो दोष और पाप छूट जाएंगे ! यदि हम इस बात को जान लें , मान ले कि हम पर निरन्तर *भगवत्कृपा* हो रही है तो आप अभी सुखी हो जायं , अभी निहाल हो जायं इसमें कोई संदेह नहीं है | सत्य तो यह है कि अपना कल्याण चाहने वाला व्यक्ति नाम का आश्रय पकड़ ले और साधन हो सके तो अवश्य करे ,किसी का विरोध नही है परन्तु और कुछ भी न हो सके तो केवल जीभ से निरन्तर नाम जप करता रहे ! इस जीवन में जो कुछ भी अच्छा पन है वह केवल भगवन्नाम और *भगवत्कृपा* की महिमा है। मनुष्य क् पास अगर कोई धन है तो वह है भगवन्नाम और *भगवत्कृपा* का ! भगवान के मंगलमय नाम से ऐसा कौन सा कार्य है जो सिद्ध नहीं हो सकता , ऐसा कौनसा महापाप है जिसका नाश नही हो सकता ! ऐसी कौन सी परम गति या मुक्ति है जो नाम से नहीं मिलती ! जब तुम विश्वास की दृष्टि प्राप्त कर लोगे तब तुम्हें यह प्रत्यक्ष दिखलायी देगा कि तुम्हें प्राप्त होने वाले प्रत्येक पदार्थ और परिस्थिति में *भगवत्कृपा* का मंगलमय कार्य हो रहा है !