जब कैकेयी ने भगवान श्रीराम को वनवास जाने का प्रसंग सुनाया तो वह बहुत ही प्रसन्न होकर बोल पड़े ! उनके मन में कोई भी द्वेष नहीं था , भगवान श्री राम बोले :--
*बोले बचन विगत सब दूषन !*
*मृदु मंजुल जनु बाग बिभूषन !!*
*सुनु जननी सोइ सुत बड़भागी !*
*जो पितु मातु चरन अनुरागी !!*
*तनय मातु पितु तोषनिहारा !*
*दुर्लभ जननि सकल संसारा !!*
(मानस)
*अर्थात:-* वे सब दूषणों से रहित ऐसे कोमल और सुंदर वचन बोले जो मानो बवाणा के भूषण ही थे ! भगवान ने कहा:-; हे माता - सुनो ! वही पुत्र बड़भागी है जो माता पिता के वचनों का अनुरागी हो ,पालन करने वाला हो ! हे जननी ! आज्ञा पालन के द्वारा माता पिता को संतुष्ट करने वाला पुत्र सारे संसार में दुर्लभ है ! *वाह रे भगवान ! वाह रे भगवान की कृपा !* अब तक जो कृपा अवध वासियों पर बरस रही थी अब वह बन में रहने वाले ऋषि-मुनियों पर बरसने के लिए तैयार है ! और भगवान कह पड़े :---
*मुनिगन मिलनु विशेष बन सबहिं भाँति हित मोर !*
*तेहि महँ पितु आयसु बहुरि जननी सम्मत तोर !!*
(मानस)
*अर्थात्:-* वन में विशेष रुप से मुनियों से मिलाप होगा जिसमें मेरा सभी प्रकार से कल्याण है उसमें भी पिताजी की आज्ञा और हे जननी तुम्हारी सम्मति है , और अब भगवान की *अहैतुकी कृपा* भरत के लिए बरस पड़ी , और भगवान कहने लगे :---
*भरत प्रानप्रिय पावहिं राजू !*
*विधि सब बिधि मोहि सन्मुख आजू !!*
(मानस)
*अर्थात:-* प्राण प्रिय भरत राज्य पाएंगे इन सभी बातों को देखकर यह प्रतीत होता है कि आज विधाता सब प्रकार से मेरे सम्मुख है , मेरे अनुकूल है ! *यह श्री राम जी का स्वभाव है* जिसका चिंतन करते करते वियोग-व्यथा से पीड़ित महाराज दशरथ ने अपनी पार्थिव-लीला समाप्त की थी :--
*राम रूप गुन शील सुभाऊ !*
*सुमिरि सुमिरि उर सोचत राऊ !!*
( मानस )
श्री रामचंद्र जी के रूप , गुण ,शील और स्वभाव को याद करके राजा हृदय में सोच करते हैं ! वह अनुग्रह पूर्ण स्वभाव का ही तो लालित्य था जिसने परशुराम जी जैसे क्रोधी और क्षत्रियों के द्रोही को संस्कारी साधु बना दिया ! उनके विषमय कुठार को कुंठित कर डाला ! स्वयं परसराम को कहना पड़ा :---
*बहइ न हाथ दहइ रिस छाती !*
*भा कुठापु कुंठित नृपघाती !!*
*भयउ बाम बिधि फिरेउ सुभाऊ !*
*मोरे हृदयं कृपा कसि काऊ !!*
( मानस )
यह परम प्रभु का हृदय कितना कोमल , स्वभाव कितना मृदुल है ! वे खर - दूषण , ताड़का , कुंभकरण और रावण आदि घोर अत्याचारी राक्षसों को भी अपने दिव्य धाम में भेजते हैं ! *भगवान श्रीराम ने यह सिद्ध कर दिया कि उनकी कृपा केवल भक्तों पर ही नहीं अपितु दुष्टों और अभक्तों पर भी उतनी ही है !*